उत्तरकाशी टनल हादसे में फंसे मजदूरों को बचाने का प्रयास जारी, कमजोर पहाड़ों के जोखिम पर बढीं चिंताएं

टनल हादसे को 48 घंटे से ज्यादा हो गए हैं। जिसमें फंसे 40 श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकालने का प्रयास जारी है.
उत्तरकाशी टनल हादसा
उत्तरकाशी टनल हादसा फोटो साभार- इंटरनेट

उत्तराखंड: उत्तरकाशी जिले में बीते रविवार को ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिलक्यारा से डंडालगांव के बीच निर्माणाधीन सुरंग धंसने के बाद से फंसे मजदूरों को सुरक्षित निकालने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है। टनल हादसे को 48 घंटे से ज्यादा हो गए हैं। अधिकांश मलबे को काट कर हटा दिया गया है। हालांकि अभी भी मलबा बचा हुआ है, जिसके चलते मजदूरों की जान मुसीबत में फंसी हुई है। करीब 60 मीटर मलबे को काट दिया गया है और 30 से 35 मीटर का मलबा बचा हुआ है। पूरा देश प्रार्थना कर रहा है कि जल्द ही सभी 40 श्रमिक सुरक्षित तरीके से बाहर निकाल लिए जाएं। हालांकि उत्तराखंड में यह ऐसी पहली घटना नहीं है। 7 फरवरी 2021 को भी ग्लेशियर टूटने के बाद चमोली का तपोवन-विष्णुगढ़ प्रोजेक्ट बुरी तरह से तबाह हो गया था। एक सुरंग में फंसने के कारण 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी।

उत्तरकाशी में जिस जगह हादसा हुआ है वह ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिलक्यारा और डंडालगांव के बीच है। 900 मिमी व्यास के स्टील पाइप को सुरंग में डालने के लिए सिंचाई विभाग के विशेषज्ञों की एक टीम भी पहुंच गई है। अंदर फंसे लोगों को लगातार पानी, खाना, ऑक्सीजन और बिजली उपलब्ध कराई जा रही है। उत्तरकाशी में 4,531 मीटर लंबी सिलक्यारा सुरंग सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की चारधाम सड़क परियोजना का हिस्सा है। इसका निर्माण 853.79 करोड़ रुपये की लागत से नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी से कराया जा रहा है। हर मौसम के अनुकूल बन रही इस साढ़े चार किमी लंबी सुरंग का निर्माण पूरा होने के बाद उत्तरकाशी से यमुनोत्री धाम तक की दूरी 26 किमी कम हो जाएगी।

मजदूरों को पहुंचाया जा रहा है जरूरत का सामान

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अधिकारियों ने कहा कि लोगों के पास ऑक्सीजन सिलेंडर तक पहुंच है, और उन्हें पानी की आपूर्ति के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पाइप के माध्यम से अतिरिक्त ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है। सुरंग ढहने से ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाली एक बड़ी पाइप क्षतिग्रस्त हो गई थी। राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) पुलिस और स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर मलबे को हटाने के लिए जेसीबी और भारी उत्खनन मशीनों का इस्तेमाल करके बचाव अभियान चला रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने किया था घटनास्थल का दौरा

ये हादसा दिवाली के दिन रविवार को हुआ था. राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस घटना की पल-पल की जानकारी ले रहे हैं। पीएम मोदी ने भी सीएम से हादसे की जानकारी ली है, और हरसंभव मदद का आश्वासन दिया है। मुख्यमंत्री धामी ने सोमवार सुबह खुद सिलक्यारा पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया था और अधिकारियों से बचाव एवं राहत कार्यों की लगातार निगरानी करने और किसी भी प्रकार की कोताही न करने को कहा था।

टनल को ब्लॉक करने वाले लगभग 21 मीटर स्लैब को हटाया गया

अधिकारियों ने कहा कि टनल को ब्लॉक करने वाले लगभग 21 मीटर स्लैब को हटा दिया गया है और 19 मीटर मार्ग को साफ किया जाना बाकी है. रेस्क्यू टीम शुरू में 30 मीटर चट्टानों को काटने में सक्षम थी,लेकिन कुछ मिट्टी फिर से गिर गई, इसलिए टीम सिर्फ 21 मीटर की दूरी को साफ करने में ही सक्षम हो पाए हैं। ढीले मलबे की वजह से बचाव कार्यों में देरी हो रही है, इसको स्थिर किया जा रहा है और 40 मीटर तक शॉटक्रेटिंग के साथ खुदाई की जा रही है। ढही हुई टनल का काम शुरू हो गया है।

वॉकी-टॉकी के जरिये मजदूरों से सफलतापूर्वक कम्युनिकेशन स्थापित

जानकारी के मुताबिक, टनल में फंसे सबी मजदूर सुरक्षित हैं और उन्हें पाइपलाइनों के माध्यम से भोजन और ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है। एक अधिकारी ने कहा कि रेस्क्यू टीम ने वॉकी-टॉकी के जरिये मजदूरों के साथ सफलतापूर्वक कम्युनिकेशन स्थापित किया है। उन्होंने बताया कि शुरुआत में रेस्क्यू टीम कागज के एक टुकड़े पर एक नोट के माध्यम से किया गया था, लेकिन बाद में रेडियो हैंडसेट का उपयोग करके जुड़ने में कामयाब रहे।

एसडीआरएफ और फिर NDRF की टीमें लगीं

सुरंग के हिस्से का ढहने के बाद इमरजेंसी राहत और बचाव का मिशन जारी है। ये हादसा दरअसल ब्रह्मखाल और यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिलक्यारा से डंडालगांव के बीच निर्माणाधीन सुरंग में हुआ। हादसे के बाद से ही एसडीआरएफ और फिर NDRF की टीमें फंसे हुए मजदूरों को बचाने के काम में जुटी हुई हैं। लेकिन ये काम इतना आसान है भी नहीं क्योंकि हादसे वाली जगह पर मलबा हटाना और सुरंग का मुंह दोबारा खोलना सबसे बड़ी प्राथमिकता है।

इस साल भी मॉनसून के दौरान भारी बारिश और उसके कारण आई आपदाओं ने जमकर कहर बरपाया। केदारनाथ और बदरीनाथ राजमार्गों पर दरारें आईं। चारधाम ऑल वेदर सड़क परियोजना को भी गढ़वाल क्षेत्र में कई जगह नुकसान हुआ। इसरो के भूस्खलन-क्षेत्र मानचित्र में रूद्रप्रयाग जिले को आपदाओं की दृष्टि से बहुत संवेदनशील दिखाया गया है लेकिन सरकार ने इन्हें कम करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाए हैं। आपको बता दें कि, केदारनाथ धाम रूद्रप्रयाग जिले में है।

जोशीमठ में भूधंसाव का मामला सामने आया तो लोगों ने इस समस्या के लिए एनटीपीसी की 520 मेगावाट तपोवन विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना को जिम्मेदार ठहराया था। वे कह रहे हैं कि भूमिगत सुरंग के कारण शहर के भवनों और रास्तों में दरारें आईं। सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद चमोली के मुताबिक हिमालय की संवेदनशीलता को देखते हुए विकास परियोजनाओं को अनुमति दिए जाने से पहले उनकी हर पहलू से जांच की जानी चाहिए। जल्दबाजी में बेतरतीब विकास किया जाएगा तो आपदाएं आएंगी।

द मूकनायक ने परिस्थितिविज्ञानशास्री, ख़तरा केंद्र के निदेशक दुनु रॉय से बात की जो देहरादून में रहते हैं। पहाड़ों की संवेदनशीलता पर वह बताते हैं कि, "पहाड़ बहुत ही संवेदनशील होते हैं। पहले वहां इतनी आवा- जाही ही नहीं थी। परंतु अब वहां पर इतने लोग आते जाते हैं। तो बताइए कैसे पहाड़ इतना बोझ झलेंगे। यह सब सरकार की नीति है। जिसे सरकार विकास कहती है. पहले के समय में सिर्फ यहां पर खेती हुआ करती थी। फलों की खेती, सब्जियों की खेती और भी बहुत सारी खेती यहां पर हुआ करती थी। धीरे-धीरे सारी खेतीयों का सत्यानाश हो गया। यह आज की सरकार की बात नहीं है। यह सभी सरकारों की बात है। क्योंकि सभी सरकारें उत्तराखंड के विकास के बारे में ही सोचती हैं। और विकास का मतलब है पहाड़ के हर क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियां बढ़े। जैसे पक्की सड़कें, घर-घर पानी, बिजली, चौड़ी सड़कें आदि। परंतु नल लगाने के लिए पानी के लिए खुदाई करनी होगी, पाइप बिछाने होंगे, पंप लगाना होगा और भी बहुत कुछ किया जाता है पहाड़ों के साथ। जिससे पहाड़ कमजोर हो रहे हैं."

आगे राय कर बताते हैं कि, "पहले चार धाम की यात्रा पैदल की जाती थी. मेरे दादा-दादी ने यहां यात्रा पैदल ही की है, और बचपन में मैं भी यह यात्राएं पैदल की थी. यमुनोत्री, गंगोत्री ,बद्रीनाथ और केदारनाथ यह उत्तराखंड के चार धाम हैं. पहले इनको तीर्थ यात्रा के रूप में किया जाता था परंतु अब यह लोगों के लिए घूमने की जगह बन गया है. जब यह घूमने की जगह बनाई जाएगी तो पर्यटकों के लिए होटल की व्यवस्था, खाना जैसी मूलभूत सुविधाएं भी पहाड़ों में करी जाएगी। सारी व्यवस्थाएं करने में पहाड़ों को खोदना, छीलना और भी बहुत कुछ पहाड़ों के साथ किया जाता है। यह सब होने से अब पहाड़ पहले जैसे नहीं रहे हैं".

"पहले सिर्फ ऋषिकेश और श्रीनगर तक ही बसें चला करती थी। बाकी आगे जाने के लिए छोटे-छोटे वाहन के द्वारा और पैदल जाना पड़ता था। अब अगर बस को पहाड़ों पर घूमना है, तो सुरंग भी बनानी होगी। क्योंकि बस सीधी सड़कों पर ही चलती हैं। इसके लिए सुरंगे बनानी पड़ती है। और सड़के चौड़ी भी की जाती है। ऐसे में कुछ ना कुछ दुर्घटनाएं होती रहती हैं। क्योंकि पहाड़ यह सब झेलने के लिए बहुत कम तैयार होते हैं", उन्होंने कहा.

मजबूर होकर यहां मजदूरी करते हैं लोग

गरीबी के कारण या और किन्ही कारणों से यहां पर मजदूरों की जिंदगी हमेशा ही खतरे में होती है। पहाड़ हमेशा से ही संवेदनशील है। यहां पर काम करने वाले मजदूरों की जिंदगी भी पहाड़ों के साथ-साथ संवेदनशील हो गए हैं। पहले भी कितने सारे मजदूर कितने हादसों के शिकार हो चुके हैं। उनके साथ ऐसी घटनाओ में टूरिस्ट भी अपनी जान फंसा लेते हैं।

हिमालय की संवेदनशीलता को समझना होगा: रवि शेखर

द क्लाइमेट एजेंडा के सह-संस्थापक रवि शेखरद मूकनायक को बताते हैं कि, "पहाड़ इतने कमजोर कर दिए हैं, कि लगातार हिमालय के क्षेत्र में भूस्खलन की घटनाएं पहले से ज्यादा हो रही हैं। भारत सरकार की तरफ से जो विकास की रणनीति है, उसका खामियाजा लगातार उत्तराखंड के पहाड़ों को भुगतना पड़ रहा है। सरकार यहां काम करने के जोर देने पर मजदूरों की जान जोखिम में डाल रही है। इन सारी घटनाओं से सीख लेने की जरूरत है। आए दिन मजदूरों के दबने या फंसे होने की खबरें आती रहती हैं। कैसे एक इंसान की जान आप विकास के लिए खतरे में डाल सकते हैं। यह एक घटना नहीं है, पूरा का पूरा जोशीमठ इस घटना से गुजर रहा है। जोशीमठ ऊपर से नीचे की ओर जा रहा है। जोशीमठ ही नहीं और भी पहाड़ी इलाके हैं। जो नीचे की ओर जा रहे हैं। उस पर इतनी बड़ी घटनाएं होने के बाद भी ऐसे खतरनाक कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है। अगर हमारी सरकार, मंत्रालय इनको लेकर संवेदनशील नहीं हो रही है तो इसका खामियाजा खतरनाक हो सकता है। पहाड़ों के साथ जो हमारा बर्ताव रहा है, उसे सुधारने की सख्त जरूरत है। पहले जो सड़कें बनाई जाती थी। वह मजदूरों के हाथ की मदद से बनाई जाती थी। परंतु अब मशीन के आने से, विस्फोट करने से पहाड़ खोखले हो गए हैं। सरकार को इसको गंभीरता से लेना चाहिए। तभी हम पहाड़ों पर जिंदगी को बचा पाएंगे."

देहरादून में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि घटना की जानकारी मिलने के बाद से वह लगातार अधिकारियों के संपर्क में हैं। धामी ने कहा कि ईश्वर से कामना है कि जल्द ही सभी लोग सकुशल बाहर आ जाएं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मुख्यमंत्री को फोन करके उनसे घटना के संबंध में जानकारी ली तथा हर संभव मदद का आश्वासन दिया। धामी ने कहा कि हिमाचल प्रदेश के लेप्चा से लौटते ही प्रधानमंत्री ने उन्हें फोन कर सुरंग में फंसे श्रमिकों की स्थिति तथा राहत एवं बचाव कार्यों के संबंध में विस्तृत जानकारी ली।

उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री जी को श्रमिकों को सकुशल बाहर निकालने के लिए जारी बचाव कार्यों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई और उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया गया।’’ धामी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने इस दुर्घटना से निपटने के लिए हर संभव मदद का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि भारत सरकार द्वारा केंद्रीय एजेंसियों को राहत एवं बचाव कार्यों में सहयोग करने के लिए निर्देशित कर दिया गया है।

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