दिल्लीः करावल नगर बादाम फैक्ट्री की श्रमिक महिलाएं क्यों कर रही हैं धरना-प्रदर्शन?

करावल नगर में बादाम गोदाम में काम करने वाले महिला एवं पुरुष श्रमिकों को न्यूनतम वेतन से भी कम वेतन दिया जा रहा है।
प्रदर्शन करते महिला एवं पुरुष श्रमिक।
प्रदर्शन करते महिला एवं पुरुष श्रमिक।The Mooknayak

नई दिल्ली। सर्दियां जाने की तैयारी में है। सर्दियों में शरीर को गर्म रखने और पोषक तत्वों के लिए बादाम खाए जाते हैं, अब गर्मियों में भीगे बादाम खाए जाएंगे। हर तरह से बादाम शरीर को फायदा ही पहुँचाते हैं। चमकदार बादाम बगीचे से हमारे पास तक पहुंचते है। इन चमकदार बादाम के पीछे श्रर्मिकों की मेहनत और लगन होती है। बादामों को रोलर और सिफ्टर से गुजारा जाता है। बाहरी आवरण, भीतरी आवरण और बगीचे से किसी भी तरह का मलबा, जैसे कि कंकड़ या लकड़ी के छोटे टुकड़े हटा दिए जाएं। बादाम को आकार के आधार पर भी छांटा जाता है और फिर बाजार में बेचने के लिए पैक किया जाता है। बादामों की सफाई, ग्रेडिंग और पैकजिंग तक श्रमिकों को खूब मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन क्या यह मजदूर अपने बच्चो को यह बादाम खिला पाते होंगे।

यह सवाल ही नहीं और भी बहुत सारे सवाल है, जिनके जवाब के लिए करावल में 1 मार्च 2024 से 5000 से ज्यादा श्रमिक, जिसमें ज्यादातर महिलाएं हैं। धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। यह सब अपनी सैलरी की बढ़ोत्तरी की मांग कर रहे हैं।

बादाम गोदाम में काम करने वाली एक महिला श्रमिक का परिवार।
बादाम गोदाम में काम करने वाली एक महिला श्रमिक का परिवार।The Mooknayak

द मूकनायक ने कुछ महिला श्रमिकों से बात करके उनके दर्द को जानना चाहा। इन मजदूरों में एक रज्जो देवी है जो इसी प्रदर्शन से जुड़ी हुई है। अभी वह वहां काम नहीं कर रही हैं। क्योंकि उनकी बेटी की तबीयत खराब है।

द मूकनायक से बात करने के दौरान रज्जो ने बताया, कि- "मैं इस फैक्ट्री में काम करती थी। मेरे पति भी इसी फैक्ट्री में बादाम तोड़ने का काम करते थे। यहां पर अच्छी सैलरी ना मिलने की वजह से उन्होंने यहां से काम छोड़ दिया। मैं यहां 15 साल से काम कर रही हूं। मेरे चार बच्चे हैं। तीन लड़की और एक लड़का है। पैसे की व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं है कि मैं उनको अच्छे स्कूल में पढ़ा सकूं।"

"मेरी बड़ी लड़की 16 साल की है। मझली लड़की 13 साल की है। उससे छोटी लड़की 11 साल की है। लड़का 10 साल का है। 15 साल से हम यही काम कर रहे हैं। हम बिहार से हैं। यहां पर मजदूर बिहार से ही हैं। घर का किराया ही इतना है कि हम अपनी गुजर-बसर नहीं कर पा रहे हैं।"-रज्जो ने कहा।

"बेटी है बीमार"

रज्जो बताती है कि -"मेरी बड़ी बेटी बहुत बीमार है। किडनी संबंधी परेशानी है। उसकी देख-रेख की वजह से काम छोड़ रखा है। आय का और कोई सहारा नहीं है। मुझे मेरी बेटी का इलाज भी करना है। आप समझिए हमें पैसे की कितनी जरूरत है। हम मेहनत का पैसा मांग रहे हैं।"

बना रहता है बीमारी का खतरा

रज्जो बताती है कि -"बादाम छंटाई, सफाई इतना आसान काम नहीं है। इतनी धूल मिट्टी होती है कि सांस लेना भी बहुत मुश्किल होता है। मेरी बड़ी बेटी ने यहां पर एक दो महीना काम किया था। जिसकी वजह से उसे टीबी भी हो गई है।"

बादाम गोदाम में काम।
बादाम गोदाम में काम।The Mooknayak

"2012 से 1 किलो बादाम पर 2 रूपए मिलते थे। पहले 1 रुपए ही था। 2012 में धरना प्रदर्शन हुआ तो फैक्ट्री मालिकों ने 1 किलो बादाम पर 2 रूपए कर दिए। उस समय फैक्ट्री मालिकों ने कहा था कि हर साल हम 1 रूपए की बढ़ोतरी करेंगे पर आज 2024 आ गया है। हर चीज पर महंगाई बढ़ गई है। परंतु बादाम की छंटाई, सफाई का दाम उतना ही है, जितना पहले था। हमें तो कोई मेडिकल इंश्योरेंस नहीं मिलता। हमारे ही बादाम छंटाई की बदौलत यह फैक्ट्री मालिक गाड़ी, बंगले और पैसे वाले बन गए हैं। क्या इनको हमारे लिए नहीं सोचना चाहिए।"- रज्जो ने कहा।

रजो बताती है कि- "3 मार्च की को जंतर.मंतर पर धरना देने गए थे। सभी मजदूर वहां थे। वहां पर भी गोदाम मालिक ने पैसा देकर, हमें वहां से उठा लिया था। हरियाणा की तरफ जहांपुर थाना है। वहां हम सबको छोड़ दिया। हम वहां से कैसे आए हैं हमें पता है।"

हम पर हमला भी हुआ

"कुछ दिन पहले हमारे लोगों पर हमला किया गया। जिसमें किसी का सर फूटा। दो चार महिलाओं को चोट भी आई है। अभी रात को ही दो लोग घर में घुस गए थे। कभी रात में डंडा, रोड लेकर उनको बजाते हुए हमें डरने आ जाते हैं। कभी हर जगह पर या हमारे घर के सामने एक आदमी खड़ा रखते हैं। हमें डराने की कोशिश की जा रही है। लेकिन हम पीछे नहीं हटेंगे। जब तक हमें न्याय नहीं मिलता और हमारी सैलरी नहीं बढ़ती। तब तक हम प्रदर्शन जारी रखेंगे।"- रज्जो ने कहा।

द मूकनायक ने दूसरी महिला ललिता देवी से बात की, जिनके दो बच्चे हैं। एक बेटा और एक बेटी। उनके पति ट्रक ड्राइवर हैं। दोनों ही बच्चे पढ़ाई करते हैं। ललिता फैक्ट्री में 20 सालों से काम कर रही हैं। ललिता देवी अपने जीवन के बारे में बताती हैं कि- "घर में पैसे की दिक्कत को लेकर मुझे काम करना पड़ रहा है। वरना कौन बाहर जाकर काम करना चाहता है। गरीबी बहुत है तो काम तो करना ही पड़ेगा। इतनी महंगाई में घर कैसे चला पाएंगे।"

श्रमिकों के स्वास्थ्य से लेना देना नहीं

ललिता आगे बताती है कि-"हमारे फैक्ट्री मालिक हमारे स्वास्थ्य को लेकर भी गंभीर नहीं हैं। हम सुबह 6 बजे घर से निकल जाते हैं। रात को 9, 10 बजे तक घर आते हैं। ऊपर से हमारी सुरक्षा को लेकर भी कोई इंतजाम नहीं है। फैक्ट्री में काम करने की जगह पर इतनी धूल, मिट्टी, बुरादा होता है कि वहां थोड़ी देर भी रहना मुश्किल होता है, जिससे हमें कई तरह की बीमारियां भी लग सकती हैं। लेकिन ना हमारे पास मास्क होता है, ना ग्लव्स होते हैं, ना टोपी होती है, और ना ही कुछ और जो हमे थोड़ा बचाव दे सके। अगर हम गोदाम मालिक को बोलते हैं तो वह लोग हमें बोलते हैं कि घर से लेकर आओ। अगर तुमको कोई बीमारी लग भी जाती है। तो उसकी जिम्मेदारी तुम्हारी ही होगी।"

बादाम गोदाम में काम करने के बाद हाथों की स्थिति।
बादाम गोदाम में काम करने के बाद हाथों की स्थिति।The Mooknayak

ललिता दुखी होकर बोलती है कि बस हम हर साल अपनी सैलरी पर कुछ रुपए मांग रहे हैं। 2012 से लेकर 2024 तक हर साल जितना रुपया बढ़ा है। बस वह दे दीजिए। वह लोग हमें डराने के लिए रातों को गुंडे भेज रहे हैं। मारने पीटने की धमकी दिलवा रहे हैं। यहां फैक्ट्री 100 से 200 संख्या में है। फैक्ट्री की इतना मुनाफा कमाने के बावजूद ये लोग हमारे पैसे नहीं बढ़ा सकते। इन लोगों ने अपने घरों में छोटी-बड़ी फैक्ट्रियां चला रखी हैं। यह हमें महीने के केवल 5 से 6 हजार रुपए ही देते हैं।

और भी कई समस्याएं हैं

ललिता बताती है कि "फैक्ट्री में कहीं भी शौचालय की अच्छी व्यवस्था नहीं है। पुरुष महिला दोनों के लिए एक ही शौचालय दिया हुआ है। वह भी बहुत गंदा होता है। हमारी मजबूरी होती है, वहां जाना क्योंकि 13 से 14 घंटे कैसे शौचालय न जाया जाए। पीने का पानी भी नहीं होता। अगर पीने का पानी होता भी है, तो वह पीने लायक नहीं होता है। समस्या बहुत सारी है। यहां तक की हमारी सैलरी भी समय से नहीं मिलती है। हम गरीब कैसे घर चलाएंगे। अगर हम बोलते हैं, तो वह लोग घर पर आकर मार-पिटाई करते हैं। अगर काम करते वक्त किसी मजदूर के साथ दुर्घटना भी हो जाती है तो वह उसकी भी जिम्मेदारी नहीं लेते और पैसे भी नहीं देते हैं। हम सब मजदूर नर्क की जिंदगी जी रहे हैं।"

द मूकनायक प्रतिनिधि ने इस मामले में कुछ बादाम फैक्ट्री मालिकों से दूरभाष पर सम्पर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनसे सम्पर्क नहीं हो सका।

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