मध्य प्रदेशः चिकित्सकों की लापरवाही ने छीनी बच्ची की आंखों की रोशनी, 85 लाख का जुर्माना!

उपभोक्ता आयोग ने 19 साल बाद सुनाया आदेश, पीड़ित परिवार को दी बड़ी राहत।
 साक्षी अपने परिवार के साथ।
साक्षी अपने परिवार के साथ।The Mooknayak
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भोपाल। मध्यप्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग ने जबलपुर के एक अस्पताल को इलाज में लापरवाही बरतने के मामले में 85 लाख रुपए पीड़िता को दिए जाने का आदेश दिया है। मामला जबलपुर स्थित आयुष्मान चिल्ड्रन अस्पताल का है। यहां इनक्यूबेटर ऑपरेटिंग में लापरवाही के चलते एक बच्ची की आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई थी। मामला दिसम्बर साल 2002 का है जब कटनी निवासी शैलेन्द्र जैन ने हाल ही में जन्मी अपनी नवजात प्रीमेच्योर बेटी को अस्पताल में भर्ती कराया था।

इस मामले में पीड़िता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता दीपेश जोशी ने बताया कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है। अभी तक इतनी बड़ी कंपनसेशन राशि किसी भी अस्पताल पर लापरवाही के चलते नहीं लगाई गई है। यह फैसला 14 सितंबर को राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग के सदस्य एके तिवारी, श्रीकांत पांडे और डीके श्रीवास्तव की बैंच ने सुनाया। इससे पहले एक स्टोन क्लीनिक के मामले में आयोग ने 15 लाख का जुर्माना लगाया था।

द मूकनायक से बातचीत करते पीड़िता के पिता शैलेन्द्र ने बताया कि 11 दिसंबर 2002 को हमारे यहाँ बेटी ने जन्म लिया। बेटी प्रीमेच्योर थी बजन भी कम था। डॉक्टर्स की सलाह पर हमने उसे जबलपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया। यहाँ बेटी के स्वस्थ्य होने के बाद हम कटनी अपने घर वापस आ गए। एक दिन सुबह जब में अखबार में समाचार पढ़ रहा था, तब एक आलेख में पढ़ा कि प्रीमेच्योर बच्चों में आँखों से सम्बंधित समस्या हो सकती है। इसके बाद जब हमने बेटी डॉक्टर्स को दिखाया तो उन्होंने बताया कि हमारी बेटी देख नहीं सकती। हमें बेटी के जन्म के ढाई महीने बाद पता चला कि बेटी देख नहीं सकती।

बेटी के इलाज के लिए हम कई डॉक्टर्स के पास गए। इलाज की उम्मीद थी की शायद कोई तो डॉक्टर होगा बेटी की आँखों की रोशनी वापस ला सके। मेरी पत्नी और मैं अपने बेटी के भविष्य के लिए चिंतित थे। इसी बीच मुझे पता लगा कि अस्पताल की लापरवाही के कारण बेटी साक्षी की आँखों की रोशनी गई है। हमने इस न्याय के लिए साल 2004 में राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग में शिकायत दर्ज कराई।

 साक्षी अपने पिता के साथ।
साक्षी अपने पिता के साथ।The Mooknayak

आयोग में शिकायत दर्ज होने के बाद के बाद प्रकरण में शुरू हुई कार्यवाही में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जबलपुर से भोपाल जाकर पेशी करना मेरे सामने बड़ी चुनौती थी। इसी बीच हमने साक्षी की परवरिश की। हम बहुत उलझनों में थे कि आखिर हम साक्षी को शिक्षा कैसे दिलाए बहुत स्कूल तलाशने के बाद हमारे परिवार ने कटनी से जबलपुर शिफ्ट होकर बेटी को पढ़ाने का फैसला किया एक तरफ साक्षी को न्याय मिले इसकी लड़ाई जारी थी। दूसरी तरफ बेटी प्रतिकूल परिस्थितियों में पढ़ाई जारी राखपाना यह भी चुनौती थी। फिलहाल साक्षी जबलपुर में बीए सेकेण्ड ईयर की छात्रा है। पढ़ाई में उसकी रुचि है इसके साथ संगीत में भी वह रुचि रखती है। द मूकनायक से बातचीत में साक्षी ने बताया कि वह अपनी तकलीफ के लिए अब कुछ नहीं कर सकती। वह पढ़ाई पर ध्यान दे रही है। संगीत के साथ शासकीय सेवा में जाने के लिए तैयारी कर रही है।

एडवोकेट दीपेश जोशी ने बताया कि साल 2004 में शेलेंद्र जैन की बेटी साक्षी जब एक साल की थी, तब उन्होंने आयोग में अस्पताल की लापरवाही को लेकर शिकायत की थी। साक्षी जन्म के समय प्रीमेच्योर बच्ची थी। उसे डॉक्टर्स की सलाह पर आयुष्मान चिल्ड्रन अस्पताल में इनक्यूबेटर में रखा गया। हालांकि कुछ दिन बाद बच्ची ठीक हो गई और उसे माता-पिता घर ले गए। कुछ समय बाद समझ आया कि उसे कुछ दिखाई नहीं देता है। इसे लेकर कई आंख के डॉक्टर को दिखाया गया, लेकिन साक्षी की आँखों की रोशनी हमेशा के लिए जा चुकी थी।

दीपेश जोशी ने बताया कि बच्ची के सभी परीक्षण कराए गए तो पता चला कि बच्ची को रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी है। यह इनक्यूबेटर में ऑक्सीजन के अत्याधिक डोज के कारण हुई। इसको लेकर अस्पताल की लापरवाही सामने आई है। बता दें, रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी में आंख रेटिना के पीछे छोटी रक्त वाहिकाएं असामान्य रूप से बढ़ जाती हैं।

साक्षी की बचपन की तस्वीर।
साक्षी की बचपन की तस्वीर।The Mooknayak

अस्पताल के द्वारा की गई लापरवाही के मामले में मध्यप्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग ने कहा- पीडि़त बच्ची साक्षी जैन को अस्पताल एवं चिकित्सकों की उपेक्षा के कारण ही उसकी दृष्टि आजीवन समाप्त हो जाने का निष्कर्ष निकाला गया है तथा वह अंधी हो गई है। उसके भावी जीवन पर कथित रूप से प्रभाव पड़ने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। सामाजिक दृष्टि से भी उसे, उस रूप में स्थान व सम्मान प्राप्त नहीं हो पाएगा, जैसा कि वह सामान्य दृष्टि रखते हुए समाज में अपना स्थान बना पाती। उसे बहुत से कार्यों के लिए सहयोगी की आवश्यकता भी पड़ती रहेगी तथा उसकी आजीविका अर्जित करने की क्षमता भी आंखों की कमी के कारण प्रभावित रहेगी।

आयोग ने अस्पताल की लापरवाही पाते हुए प्रबंधन को 60 दिन के भीतर 40 लाख रुपए की क्षतिपूर्ति राशि का भुगतान करने को कहा है। इस रकम पर 12 अप्रैल 2004 से भुगतान दिनांक तक 6 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज का भुगतान करने को भी कहा गया है। यह भी चेतावनी दी है कि 60 दिन के अंदर अगर राशि नहीं दी जाती है तो इस पर आदेश से भुगतान दिनांक तक 8 प्रतिशत का ब्याज देना होगा।

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