पड़ताल: आयुष्मान भारत कार्ड क्या दे रहा है देश के जरूरतमंदों को एक नई उम्मीद!

केंद्र सरकार का ये दावा हमेशा से रहा है कि आयुष्मान भारत देश की ही नहीं विश्व की सबसे बड़ी हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम है.
आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना.
आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना.फोटो- मीना कोटवाल, द मूकनायक
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देश का सबसे बड़ा अस्पताल एम्स जहां इलाज के लिए देश के सभी हिस्सों से लोग आते हैं. कई परिवार ऐसे हैं जिनका इलाज कई दिनों तक चलता है लेकिन न केवल परिवार या सगे संबंधी को बल्कि मरीज़ तक को अस्पताल में जगह नहीं मिल पाती. ऐसे में कई परिवार अस्पताल के बाहर, मेट्रो के पास, कुछ मेट्रो स्टेशन के अंदर परिसर में, तो कुछ अस्पताल के ही अंदर परिसर या जहां जगह मिल जाए वहाँ अपनी रात और दिन का समय निकालते हैं.

स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बनाने के रास्ते में ‘मील का पत्थर’ समझने वाली केंद्र सरकार ने आयुष्मान भारत योजना शुरू की, जिसके तहत हर गरीब परिवार के सदस्य को प्रत्येक साल पाँच लाख का इलाज फ़्री में दिया जायेगा. लेकिन इसकी कुछ शर्तें भी हैं. इसका दूसरा नाम आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना भी है. वहीं दिल्ली सरकार ने इस योजना को लेने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि उन्हें अपनी दी हुई व्यवस्था पर ज़्यादा विश्वास है.

“मुझे एपिलेप्सी (मिर्गी) है. मेरा कई सालों से इलाज चल रहा है. लाखों रुपए मेरे परिवार ने मेरे इलाज में लगा दिए. आज अस्पताल आया और पता करने की कोशिश की अगर मेरा इलाज भी आयुष्मान के तहत हो जाए तो… लेकिन कई बार पूछने के बाद भी निराशा ही हाथ लगी.”

अभय बैनर्जी दिल्ली के रहने वाले हैं.
अभय बैनर्जी दिल्ली के रहने वाले हैं.फोटो- मीना कोटवाल, द मूकनायक

वेस्ट दिल्ली के रहने वाले अभय बैनर्जी काफ़ी परेशान हैं. वे अकेले ही अपना चेकअप करवाने हॉस्पिटल के चक्कर काट रहे हैं. लाखों का इलाज करवाने के बाद भी दिल्ली के एम्स में बने आयुष्मान भारत के केंद्र पर इसलिए पहुँचे ताकि इलाज के खर्चे में कुछ मदद मिल सके. लेकिन वे दिल्ली सरकार से थोड़ा नाराज़ दिखाई दिए. वे कहते हैं, “जब आयुष्मान योजना हमें पाँच लाख का सपोर्ट दे रही है तो दिल्ली के मुख्यमंत्री क्यों नहीं लेना चाहते!”

वहीं पास में एक महिला बुर्के में अकेली बैठी है. वे शायद अपने पति का इंतज़ार कर रही हैं जो आयुष्मान भारत के केंद्र में कुछ जानकारी लेने पहुँचे हैं. इन्हें दूसरे स्टेज का ब्रेस्ट कैंसर है. वे उत्तर प्रदेश के रामपुर से हैं. उनका कहना है कि उन्होंने आयुष्मान कार्ड बनवाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो नहीं बन पाया. अधिकारियों का कहना है कि उनका नाम लेबर कार्ड में होना ज़रूरी है और जब अपना नाम लेबर कार्ड में जुड़वाना चाहा तो वे ये कह कर भेज देते हैं कि इसकी साइट काम नहीं कर रही है. और ऐसा कई बार हो चुका है.

कुछ ही देर में उनके पति अनिश भी वहाँ पहुँच जाते हैं. वे भी अपनी पत्नी की बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि इनका इलाज चल रहा है और एक इंजेक्शन ही सोलह-सोलह हज़ार का होता है. आयुष्मान कार्ड की कई बार कोशिश की, यहाँ भी उसी की कोशिश कर रहा था. लेकिन इनका कहना है कि हमारा नाम सूची में नहीं है.

वे बताते हैं, “गाँव में भी बनवाने की कोशिश की लेकिन वे कहते हैं कि लेबर कार्ड में नाम होना चाहिए, लेबर कार्ड वाला कहता है, राशन कार्ड में होना चाहिए और राशन कार्ड वाला कहता है कि इसमें छह यूनिट होनी चाहिए. यानि परिवार के छह सदस्यों के नाम होने चाहिए जबकि हमारे परिवार में हम चार ही सदस्य हैं दो हम और दो हमारे बच्चे.”

आयुष्मान स्वास्थ्य योजना से जुड़ी जानकारी।
आयुष्मान स्वास्थ्य योजना से जुड़ी जानकारी।

केंद्र सरकार का ये दावा हमेशा से रहा है कि आयुष्मान भारत देश की ही नहीं विश्व की सबसे बड़ी हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम है. सितम्बर, 2018 में इस योजना को झारखंड के रांची से लॉन्च किया गया था. इस योजना के तहत ग़रीब परिवार वालों के हर सदस्य का आयुष्मान कार्ड बनता है. वे सदस्य पाँच लाख का इलाज फ़्री में करवा सकते है लेकिन इसके लिए उसका अस्पताल में एडमिट होना अनिवार्य है.

ये योजना देश की सभी राज्यों में लागू है, लेकिन दिल्ली, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में ये लागू नहीं है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस योजना को शुरू से ही लागू न करने की बात कही है. उनका मानना है कि प्रदेश सरकार दिल्लीवासियों को पहले से ही अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था दे रही है इसलिए इसे दिल्ली में लागू करने की कोई वजह नहीं है. कई बार अरविंद केजरीवाल ने इसे एक स्कैंडल का नाम भी दिया है.

मूलत: बिहार के वैशाली की रहने वाली विनिता अपनी माँ का इलाज करवाने अस्पताल आई हैं. वे शादी के बाद से दिल्ली रह रहीं हैं. उनके ससुर की सरकारी नौकरी है जिस वजह से उनका तो आयुष्मान कार्ड नहीं है, लेकिन उनकी माता का इलाज इसी कार्ड से चल रहा है.उनकी माता के घुटने और रीढ़ की हड्डी काफ़ी कमजोर हो गई है जिस वजह से उनके चलने में व सीधा रहने में दिक़्क़त है. वे हमेशा पीठ से कमर तक एक बेल्ट पहने रहती हैं.

बिहार से पहली बार आयुष्मान कार्ड के तहत इलाज करवाने आए नजरूल.
बिहार से पहली बार आयुष्मान कार्ड के तहत इलाज करवाने आए नजरूल.फोटो- मीना कोटवाल, द मूकनायक

वे कहती है कि मैं आयुष्मान भारत योजना से खुश हूँ. क्योंकि इसकी वजह से काफ़ी मदद मिली है. अगर ये नहीं होता तो हम महँगा इलाज करवाने में असमर्थ थे. गरीब के लिए दो वक़्त की रोटी मिल जाए वही बहुत है, तो वो कहां से महँगा इलाज करवा पाएगा. इसकी अच्छी बात ये है कि इलाज के साथ दवाइयाँ भी मुफ़्त मिल जाती हैं.

बिहार में ही इलाज ना करवाने के जवाब में विनिता बताती हैं कि बिहार में हम पटना में भी मम्मी को दिखाए थे, लेकिन वहाँ के डॉक्टर ने दिल्ली रेफर कर दिया. उन्होंने कहा कि इसका बेहतर इलाज वहीं से होगा. लेकिन इसमें ख़राबी ये है कि एडमिट होना ज़रूरी है, जैसे जिन लोगों का इलाज बिना एडमिट हुए भी हो सकता है उसका इलाज फ़्री नहीं हो पाता.

मोतिबिंद का ऑपरेशन करवाने आई सविता,
मोतिबिंद का ऑपरेशन करवाने आई सविता,फोटो- मीना कोटवाल, द मूकनायक

साथ ही में सविता अपनी बेटी के साथ बैठी हैं. वो बुलंदशहर से हैं और अपने मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए आई हैं. उनका इलाज भी आयुष्मान भारत योजना से ही हुआ है.

एम्स के आयुष्मान भारत केंद्र पर उन लोगों को भी तलाशने की कोशिश की जो एक से ज़्यादा बार अपना इलाज आयुष्मान के तहत करवा रहे हों. लेकिन यहां ज़्यादातर आए लोग पहली बार ही अपना इलाज इस स्कीम के तहत करवा रहे थे. इसलिए उनका अनुभव इसमें ज़्यादा नहीं. कोई जम्मू से तो कोई पंजाब. देश के लगभग हर कोने से अपने इलाज के लिए लोग आए हुए थे. दिल्ली में ये स्कीम लागू नहीं है इसलिए दूसरा कोई भी मरीज़ जो दिल्ली के हों वहाँ नहीं मिले.

आयुष्मान भारत केंद्र.
आयुष्मान भारत केंद्र. फोटो- मीना कोटवाल, द मूकनायक

मिंट की एक खबर के अनुसार सरकार फ़रवरी 2024 से पाँच की जगह इसकी राशि दस लाख करने जा रही है. यानि अब जरूतमंद दस लाख तक का इलाज मुफ़्त करवा पाएँगे. खबर में ये भी बताया गया है कि स्कीम का फायदा अब तक 600 मिलियन यानि 60 करोड़ लोगों को हो चुका है. मई, 2020 में जब एक करोड़ लोग लाभार्थी हुए तो पीएम मोदी ने गर्व करते हुए एक ट्वीट शेयर किया.

लेकिन बीबीसी ने इस ख़बर की हक़ीक़त की पड़ताल की तो सच्चाई कुछ और थी. ख़बर में आयुष्मान भारत के तत्कालिक सीईओ इंदु भूषण ने ही बताया कि पीएम के मुताबिक़, एक करोड़ बार इस योजना का लाभ लोगों ने उठाया है ना कि एक करोड़ लोगों ने. उनके मुताबिक़ लोगों की संख्या कम है. एक करोड़ संख्या इस स्कीम के तहत जितनी बार इलाज हुआ है उसकी है." दोनों में एक बड़ा अंतर है.

हालाँकि कई रिसर्च में ऐसा पाया गया है कि हाशिए पर खड़े लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाएँ या सरकारी योजनाएँ का लाभ सबसे अंत में पहुँचता है. वंचित तबके से आने वाले समाज के लिए बुनियादी सुविधाओं को हासिल करना कठिन रहा है. जब सोशल जस्टिस टास्क फोर्स (एसजेटीएफ) ने ग्लोबल कॉल टू एक्शन अगेंस्ट पॉवर्टी (जीसीएपी) के साथ मिलकर वैक्सीन इक्वलिटी पर काम किया तो पाया कि वंचित-शोषितों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएँ हासिल करना चुनौतिपूर्ण है साथ ही मौजूद विसंगतियाँ भी उभर कर सामने आई. इसी पहल के मद्देनज़र यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज को वरीयता दी गई है.

ऑक्सफैम इंडिया द्वारा छपे एक पेपर के मुताबिक़, भारत के स्वास्थ्य संरचना में अब निजी बुनियादी ढांचे की हिस्सेदारी लगभग 62 फ़ीसदी है. जिसमें महज़ 4 फ़ीसदी आदिवासी और 15 फ़ीसदी दलित ही प्राइवेट हेल्थकेयर का इस्तेमाल कर पाते हैं. भारत की आबादी में 25 फ़ीसदी से ज़्यादा हिस्सेदारी दलित-आदिवासियों की है लेकिन प्राइवेट हेल्थकेयर उनके पहुँच से दूर है क्योंकि यह वर्ग सबसे कम आय वर्ग की श्रेणी में आता है. लगातार ऐसे न्यूज़ रिपोर्ट्स आते रहते हैं कि एम्स जैसे बड़े अस्पताल में जाँच और सर्जरी का नंबर महीनों बाद आता है. सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर अधिक निर्भरता की वजह से वंचित और शोषित तबका ख़राब गुणवत्तापूर्ण और छोटा जीवन जीने के लिए मजबूर है.

यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, सवर्ण महिलाओं की तुलना में दलित महिलाएँ लगभग 14 साल कम जीती हैं और इसकी सबसे बड़ी वजह समुचित स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है. इस शोध में कहा गया है कि जहां एक ऊंची जाति की महिला की औसत उम्र 54.1 वर्ष है, वहीं एक दलित महिला औसतन 39.5 वर्ष ही जीती है. हाशिए पर खड़े समुदायों को प्रणालीगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है और बुनियादी सेवाओं तक पहुंच से वंचित कर दिया गया है जिसमें स्वास्थ्य सुविधाएँ भी हैं.

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