भारत में गिद्धों के संरक्षण की क्या है स्थिति?

नेचर गाइड कहते हैं कि गिद्धों को संरक्षित करना बहुत जरूरी है। यह उन चीजों का सेवन करते हैं, जो पर्यावरण के लिए बेकार हैं। इनके संरक्षण की चिंता ना सरकार को है, ना केंद्र को है. कोई भी अवेयरनेस कैंप इनके लिए नहीं चलाए जाते।
भारत में गिद्धों के संरक्षण की क्या है स्थिति?

नई दिल्ली: 1980 के दशक में भारत में सफेद पूंछ वाले गिद्धों की संख्या करीब 80 मिलियन (800 लाख) थी। लेकिन अब इनकी संख्या मात्र हजारों में ही रह गई है। डोडो समेत यह दुनिया में किसी भी पक्षी प्रजाति की सबसे तेजी से हुई कमी है। जैसा कि हम जानते हैं कि गिद्ध स्वच्छता के काम में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। गिद्धों के विलुप्त होने से नतीजा यह हुआ कि चूहों की संख्या में अचानक बहुत बढ़ोतरी हो गई है। ऐसे ही कई और परिणाम देखे गए हैं। गिद्धों की संख्या में हुई कमी की वजह से वर्ष 2015 तक पर्यावरण स्वच्छता के लिए करीब 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च हुआ है।

भारतीय गिद्ध की पहचान

गिद्ध मुर्दाखोर पक्षी होते हैं जो बड़े पशुओं के शवों को खाते हैं और इसलिए पर्यावरण को साफ करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह इंसानी आबादी के नज़दीक या जंगलों में मुर्दा पशु को ढूंढ लेते हैं और उनका आहार करते हैं। इनके चक्षु (आँखें) बहुत तेज होते हैं और काफ़ी ऊँचाई से यह अपना आहार ढूंढ लेते हैं। यह प्रायः समूह में रहते हैं। भारतीय गिद्ध का सर गंजा होता है, उसके पंख बहुत चौड़े होते हैं तथा पूँछ के पर छोटे होते हैं.

गिद्धों से लाभ

गिद्ध पर्यावरण के प्राकृतिक सफाईकर्मी होते हैं। ये मृत और सड़ रहे पशुओं के शवों को भोजन के तौर पर खाते हैं और इस प्रकार मिट्टी में खनिजों की वापसी की प्रक्रिया को बढ़ाते हैं। इसके अलावा, मृत शवों को समाप्त कर वे संक्रामक बीमारियों को फैलने से भी रोकते हैं। गिद्धों की अनुपस्थिति में चूहे और आवारा कुत्तों जैसे पशुओं द्वारा रेबीज जैसी बीमारी के प्रसार को बढ़ाने की संभावना बढ़ जाएगी।

भारत में पारसी धर्म (पारसी समुदाय) के अनुयायी अपने मृत शवों के निराकरण के लिए परंपरागत रूप से गिद्धों पर निर्भर हैं। इसलिए, कई सदियों से भारत के गिद्ध पारसी धर्म के लोगों के लिए महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र में सेवा प्रदान कर रहे हैं.

1993 से नेचर गाइड और पक्षी शिक्षक और संरक्षण वादी के रूप में काम कर रहे राजेश द मूकनायक को बताते हैं कि गिद्ध हमारे लिए कितने जरूरी हैं। "हर साल इनका कोई ना कोई झुंड यहां आता रहता है। लेकिन इनकी संख्या बहुत कम ही दिखती है। इनके संरक्षण के लिए एक प्रोजेक्ट चलाया गया था। लेकिन वह प्रोजेक्ट सिर्फ प्रोजेक्ट बनकर ही रह गया। उस पर कोई काम नहीं हुआ। जबकि गिद्ध संरक्षित करवाना बहुत जरूरी है। यह उन चीजों का सेवन करते हैं। जो पर्यावरण के लिए बेकार हैं। इनके संरक्षण की चिंता ना सरकार को है, ना केंद्र को है, ना किसी डिपार्टमेंट को है। कोई भी अवेयरनेस कैंप इनके लिए नहीं चलाए जाते।"

"कुछ समय पहले एक दवाई बैन हुई थी, जो पशुओं को दी जाती थी। उन मरे हुए पशुओं को खाकर गिद्ध मर जाते थे। क्योंकि वह दवाई इनकी किडनी खराब कर देती थी। लेकिन फिर दोबारा से बैन की हुई दवाई की जगह दूसरी दवाई पशुओं को दी जाने लगी। वह दवाई थोड़ी महंगी होती हैं। तो कुछ लोगों ने अभी भी बैन की ही दवाई अपने पशुओं को देते हैं। जिससे इनकी संख्या कम होती जा रही है। गिद्धों के लिए कुछ भी नहीं हो पा रहा है। क्योंकि जब आप गिद्धों को बचाने के लिए सोच ही नहीं रहे हैं तो संरक्षण तो दूर की बात है", राजेश ने कहा.

भारत में गिद्धों को कैसे संरक्षित करें:

गिद्धों का समाप्त होता जाना गंभीर चिंता का विषय है और इन विलुप्तप्राय होते पक्षियों को बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई की जाने की आवश्यकता है। भारत में गिद्धों को संरक्षित करने के लिए निम्नलिखित रणनीति के अपनाए जाने की जरूरत है।

1. डिक्लोफेनाक का कारगर विकल्प विकसित करने और उपलब्ध विकल्प मेलॉक्सिकैम पर सब्सिडी देने की जरूरत है।

2. जंगलों में गिद्धों की, खास कर गिद्ध के विलुप्तप्राय और संकटग्रस्त प्रजातियों की फिर से वापसी के उद्देश्य से Caxtive-breeding programme को बड़े पैमाने पर शुरु करने की आवश्यकता है।

3. गिद्धों के लिए विषमुक्त भोजन, स्वच्छ पानी, बोन चिप्स और सुरक्षा एवं स्वतंत्रता हेतु तार से घेरे हुए खुली छत वाले बसेरों के माध्यम से गिद्ध फीडिंग स्टेशन की स्थापना करने की जरूरत है।

4. सरकार को पारसी शवदाहगृहों के पास शवों के अपवहन हेतु गिद्ध अभयारण्य बनाने चाहिए। पर्याप्त भोजन की उपलब्धता से गिद्धों की आबादी को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।

5. डी.डी.टी. जैसे क्लोरीनयुक्त हाइड्रोकार्बन्स के प्रयोग पर तत्काल प्रतिबंध लगाए जाने की आवश्यकता

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