रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान
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रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान: कोर एरिया में मवेशियों की आवाजाही, लंपी रोग से कैसे सुरक्षित रहेंगे वन्यजीव!

ग्रामीणों ने रणथम्भौर के प्रतिबंधित वन क्षेत्र में मवेशी घुसाने का किया प्रयास, वनकर्मियों ने रोका तो विरोध में किया हाइवे जाम। रणथम्भौर बाघ परियोजना क्षेत्र के लिए हैं एक चिकित्सक व दो कम्पाउंडर

जयपुर। राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले में विश्वप्रसिद्ध रणथम्भौर राष्ट्रीय टाइगर रिजर्व (Ranthambore National Tiger Reserve) है, जिसमें टाइगर के अलावा तमाम वन्यजीव निवास करते हैं, लेकिन इन वन्यजीवों का स्वास्थ्य खतरे में है। इस समय लंपी रोग फैला हुआ है। वहीं वनक्षेत्र के प्रतिबंधित इलाके में पशुपालक अपने मवेशी चराने के लिए ले जा रहे है। वन्यजीव विशेषज्ञ मवेशियों से यह संचारक रोग वन्यजीवों को लगने की आशंका जता रहे हैं। इधर रणथम्भौर बाघ परियोजना (Ranthambore Tiger Project) क्षेत्र एक चिकित्सक व दो कम्पाउंडरों के भरोसे चल रहा है। इससे चिंता और बढ़ गई है।

पशु पालक व वनकर्मियों में संघर्ष

उद्यान क्षेत्र में मवेशी चराने को लेकर पशु पालकों व वनकर्मियों के बीच टकराव आम बात है, लेकिन इस बार लंपी रोग ने इस घटना को खास बना दिया है। बीते गुरुवार को रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान (Ranthambore National Park) की आरओपीटी रेंज के बोदल एरिया में ग्रामीणों ने मवेशी घुसाने का प्रयास किया तो वनकर्मियों ने बाहरी मवेशियों को जंगल में घुसने से रोक दिया। हर बार की तरह इस बार भी पशुपालक व वनकर्मी आमने-सामने हो गए। हालांकि, किसी तरह यह टकराव टल गया। गुस्साए ग्रामीणों ने टोंक-शिवपुरी नेशनल हाईवे-552 पर जाम लगा दिया। जाम की सूचना पर वन विभाग व पुलिस के आलाधिकारी मौके पर पहुंचे। समझाइश के बाद ग्रामीणों ने जाम खोल दिया, लेकिन जंगल में बाहरी पशुओं के प्रवेश का सवाल अनुतरित रहा। अब लोग जानना चाहते हैं कि रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान प्रशासन के पास प्रतिबंधित क्षेत्र में बाहरी पशुओं को रोकने के क्या पुख्ता इंतजाम हैं?

वन्यजीव संरक्षण के लिए रणथम्भौर सहित राजस्थान के अन्य वन्यजीव अभयारण्य व राष्ट्रीय उद्यानों में काम कर रही पथिक लोक सेवा समिति के संस्थापक व सचिव मुकेश सीट बताते हैं कि, रणथम्भौर बाघ परियोजना (Ranthambore Tiger Project) बहुत बड़े क्षेत्र में है। प्रतिबंधित क्षेत्र में बाहरी पशु घुसते हैं, यह कड़वा सच है। शिवपुरी हाइवे की तरफ काफी खुला एरिया है। सुरक्षा दीवार भी टूटी मिल जाएगी। वन्यजीव व गोवंश भी हाइवे या आस-पास एक साथ देखे जा सकते हैं। वनाधिकारी भी इस बात को जानते हैं। बोदल के पास से बाहरी मवेशियों को राष्ट्रीय उद्यान में घुसने की बात को लेकर विवाद हुआ है। रणथम्भौर जैसे राष्ट्रीय उद्यान में एक चिकित्सक व दो पशुधन सहायकों के भरोसे वन्यजीवों की स्वास्थ्य व्यवस्था है।

उन्होंने कहा कि, "वन विभाग लंपी रोग को लेकर नियमित मानीटरिंग का दावा कर रहा, लेकिन पर्याप्त चिकित्सा टीम व उपकरणों के साथ सर्वे कराया जाए तो वन्यजीवों में लंपी के लक्षण आने की बात से इनकार नहीं किया जा सकता।"

सवाईमाधोपुर शहर निवासी एवं वन्यजीव प्रेमी मोइन खान ने द मूकनायक को बताया कि, "रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान (Ranthambore National Park) में बाघों के अलावा हिरण, चीतल, सांभर व नील गाय जैसे वन्यजीव स्वछंद विचरण करते हैं। वन्यजीव जंगल से दीवार फांद कर किसानों के खेतों तक भी पहुंच जाते हैं। वन विभाग को बाहरी पशुओं को जंगल के अंदर घुसने से रोकने के साथ ही वन्यजीवों को खेतों में आने से रोकने के प्रबंध भी करना चाहिए।"

रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में पशु चिकित्सक डॉ. चंद्रप्रकाश ने द मूकनायक को बताया कि, यहां एक चिकित्सक व दो पशु कम्पाउंडर हैं। "रणथम्भौर में सहायक वन संरक्षक मानसिंह के नेतृत्व में रेपिड एक्शन फोर्स का गठन किया गया है। मैं भी इसका सदस्य हूं। हमारी टीम रणथम्भौर में नियमित भ्रमण कर वन्यजीवों की लगातार मॉनिटरिंग कर रही है।" उन्होंने दावा किया कि, "रणथम्भौर में अभी तक वन्यजीव पूरी तरह लंपी रोग के संक्रमण से सुरक्षित है। श्चिमी राजस्थान में हिरणों में लंपी रोग के लक्षणों की खबरे आई है, लेकिन इनमे क्या वास्तव में लंपी रोग था, इसकी पुष्ठी नहीं हुई है। रणथम्भौर में बाहरी मवेशियों के प्रवेश पर रोक है।"

क्षेत्रीय वनाधिकारी महेश शर्मा ने कहा कि, "हमने डीएफओ रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान के आदेशों का पालन किया है। मवेशियों को कोर एरिया में जाने से रोका था। गांव वालों ने जाम लगाया था, लेकिन बाद में जाम खोल दिया। हम किसी भी कीमत पर कोर एरिया में बाहरी पशुओं को नहीं घुसने देंगे"

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