मध्य प्रदेश: नदियों के स्वच्छता और संरक्षण का मुद्दा चुनाव से गायब, जानिए क्या है कारण?

मध्य प्रदेश: नदियों के स्वच्छता और संरक्षण का मुद्दा चुनाव से गायब, जानिए क्या है कारण?

लोकसभा चुनाव 2024: राजनीतिक दल चुनावी घोषणा पत्र में पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे को शामिल तो करते हैं लेकिन इस महत्वपूर्ण विषय पर कोई खास काम नहीं होता।

भोपाल। मध्य प्रदेश की प्रमुख नदियों में लगातार प्रदूषण बढ़ रहा है। चुनाव के समय नदियों के स्वच्छता को लेकर कई वादे मंचों से राजनीतिक पार्टियां करती हैं। मगर सरकार में आने के बाद इस ओर प्रभावी काम दिखाई नहीं देता। राजनीतिक दलों का घ्यान पर्यावरण के संरक्षण की ओर नहीं है। कुछ राजनीतिक दल चुनावी घोषणा पत्र में पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे को शामिल तो करते हैं लेकिन इस महत्वपूर्ण विषय पर कोई खास काम नहीं होता। 

पिछले 15 सालों के लोकसभा, विधानसभा और नगरीय निकायों के चुनावों में नर्मदा, क्षिप्रा, बेतवा जैसी प्रमुख नदियों की स्वच्छता का मुद्दा रहा है। सीएम से लेकर महापौर, सांसद विधायक सभी ने यह कहा था कि नदियों में शहरों का गंदा पानी नहीं मिलने देंगे, लेकिन चुनाव के बाद इस पर कोई खास काम नहीं हुए। कहने भर को कुछ जगह सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं, लेकिन यह प्लांट भी गंदा पानी नदी में जाने से रोक नहीं पा रहे।

केंद्र सरकार द्वारा नमामि गंगे मिशन, राष्ट्रीय नदी संरक्षण और रिवर फ्रंट डेवलपमेंट जैसी कई योजनाएं संचालित की जा रही है। लेकिन क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि और जिम्मेदार अफसर की रुचि नहीं होने से नदियों में प्रदूषण का स्तर कम होने के बजाय बढ़ ही रहा है। मध्य प्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा नदी की हालत प्रदूषण के मामले में सबसे ज्यादा खराब है। 

मध्य प्रदेश में नर्मदा, माही और ताप्ती पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं। वहीं काली सिंध, चंबल, पारबती, धसान, केन, सिंध, कूनो, शिप्रा और बेतवा दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हुई गंगा बेसिन में गिरने वाली नदियाँ हैं। सोन नदी जो मध्य प्रदेश से निकलती है, दक्षिण से गंगा में मिलने वाली सबसे बड़ी सहायक नदी है। इन सभी नदियों में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। 

नर्मदा नदी में मिल रहा गंदा पानी

खंडवा जिले की तीर्थ नगरी ओंकारेश्वर में ही नाले-नालियों का गंदा पानी सीधे नर्मदा में मिल रहा है। जिले में 45 किमी क्षेत्र में बहने वाली नदी को गंदगी और प्रदूषण से मुक्त करने के लिए ओंकारेश्वर में सीवरेज प्लांट बनाए गए, लेकिन तकनीकी गड़बड़ी और संचालन में लापरवाही के चलते यह कुछ खास काम नहीं कर रहे हैं। जबलपुर में शहर की नालियों से और अन्य दूषित पानी एक बड़े नाला का आकार लेता है, और यही गन्दा पानी गौरी घाट के आगे से नर्मदा नदी में मिल रहा है। यहां फिलहाल तीन सीवरेज प्लांट बनाए जा रहे हैं, लेकिन अभी इनका काम पूरा नहीं हुआ है।

इधर, खरगोन जिले के महेश्वर, मंडलेश्वर में सीवरेज का पानी नर्मदा में मिलता है। महेश्वर क्षेत्र में नर्मदा मंदिर, बड़घाट, काशी विश्वनाथ मंदिर और नरसिंह मंदिर के पास से गंदा पानी नर्मदा में मिल रहा है। यहां छह साल से सीवरेज ट्रीटमेंट का काम चल रहा है। लेकिन अभी तक सिर्फ 40 प्रतिशत काम ही पूरा हुआ है। इसके अलावा मंडलेश्वर में तीन जगह से गंदा पानी नर्मदा में पहुंच रहा है। 

धार जिले के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के साथ औद्योगिक क्षेत्र का दूषित पानी नर्मदा में जाता है। कुक्षी, मनावर, निसरपुर, धामनोद जैसे नगरों का गंदा पानी मान, उरी, बाघनी आदि सहायक नदियों से सीधे नर्मदा में मिल रहा है। नर्मदा को प्रदूषण से बचाने के लिए यहां अब तक कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए हैं। इधर, बड़वानी जिले से गुजर रही नर्मदा नदी के सभी किनारों से दूषित जल पानी मे घुल रहा है। जिले के ब्राह्मणगांव, छोटा बड़दा, छोटा कसरावद, राजघाट, भवती बिजासन सहित अन्य घाटों पर नर्मदा नदी प्रदूषित है। राजघाट के बैक वाटर में सबसे अधिक गंदगी है। बीते दिनों हुई एक रिसर्च के अनुसार बैक वाटर का पानी पीने योग्य नहीं है।

नर्मदा में प्रदूषण की स्थिति को देखते हुए मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ओंकारेश्वर सहित नर्मदा किनारे की छह नगर परिषदों, जिनमें सनावद, बड़वाह, मंडलेश्वर, महेश्वर व बड़वानी पर 42.50 करोड़ की पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति की मांग के साथ स्थानीय न्यायालय में परिवाद भी दायर किया है। 

क्षिप्रा नदी के अस्तित्व पर संकट

इंदौर जिले के ग्राम मुण्डला दोस्तदार से निकली क्षिप्रा नदी 195 किमी लंबी है, और यह रतलाम जिले में शिपावरा नामक स्‍थान पर चम्बल नदी में मिल जाती है। इस नदी को मध्य प्रदेश की गंगा भी माना जाता है। नदी के उद्द्गम स्थल मुंडला दोस्तदार गांव से संगम स्‍थल उज्‍जैन तक गर्मी के मौसम में पानी नहीं रहता। यह नदी सिर्फ बारिश में ही बहती है। नदी के में कुछ स्थानों पर पानी का भराव है, मगर वह पानी पूरी तरह से प्रदूषित है। मुण्‍डला दोस्‍तदार के निकट सूखे पड़े प्रवाह मार्ग पर कुछ जगह कांक्रीट की पक्‍की नहर बना दी गई है, ताकि उसमें लिफ्ट कर डाला गया नर्मदा का पानी बहाया जा सके। लेकिन वह पानी भी प्रदूषित हो रहा है। 

कान्ह नदी का पानी पड़ा कला और बदबूदार

क्षिप्रा की तरह इंदौर की कान्ह नदी की सफाई के नाम पर भी सिर्फ पैसा बहाया जा रहा है। विगत 15 सालों में इस नदी पर 1,157 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद हालात जस के तस बने हुए हैं। केंद्र सरकार की नमामि गंगे योजना से हाल ही में 598 करोड़ रुपये फि‍र से स्‍वीकृत किए गए हैं। इस राशि का उपयोग कान्ह नदी को डायवर्ट करने, स्टापडेम बनाने, जल उपचार संयंत्र स्थापित करने में किया जाएगा। लेक्जन आज कान्ह नदी एक बड़े नाले के रूप में दिखाई देती है। आस-पास गंदगी का अंबार और शहर के गंदे पानी मिलने के कारण इसका पानी पूरी तरह काला पड़ चुका है। 

ग्वालियर स्वर्ण रेखा नदी नाले में तब्दील 

ग्वालियर शहर के बीचों-बीच बहने वाली स्वर्ण रेखा नदी लगभग 29 किमी लंबी कभी शहर की जीवन रेखा हुआ करती थी और इस नदी से इतिहास भी जुडा हुआ है। यह वह नदी है जिसके किनारे वीरांगना लक्ष्मीबाई ने अंतिम सांस ली थी और वर्तमान में वीरांगना का समाधि स्थल बना हुआ है। यह नदी कभी शहर की शान हुआ करती थी लेकिन अब स्वर्ण रेखा नदी का नाम सरकारी कागजों में ही है और निगम व प्रशासन की लापरवाही से यह एक नाला बन चुकी है। 

दरअसल, स्वर्ण रेखा नदी जब से कंक्रीट की बनी है तब से नगर में भूजल स्तर तेजी से गिरता जा रहा है। जिसका परिणाम यह हुआ कि आसपास के क्षेत्र में लगे हैंडपंप तक सूख चुके हैं और बोरिंगे भी फेल होती जा रही हैं। वहीं शहरवासियों की प्यास बुझाने के लिए तिघरा पर लगातार लोड बढ़ता जा रहा है। निगम अधिकारियों ने स्वर्ण रेखा में साफ पानी बहाने के नाम पर शहरवासियों को नदी में नाव चलाने का सपना दिखाते हुए इसमें करोड़ों रुपए खर्च कर इसे कंक्रीट कर दिया, लेकिन इसमें नाव तो नहीं चली उल्टा शहर का भूजल स्तर तेजी से गिरने के साथ ही नदी नाला में बदल गई। शहर के कई इलाकों का गंदा पानी नदी में पहुँच रहा है। जिसके कारण अब यह नदी एक बड़े नाले की तरह दिखाई देती है। 

चंबल नदी भी प्रदूषित 

34 वर्ष पहले मध्य प्रदेश के ग्वालियर-मुरैना क्षेत्र में बहने वाली चंबल नदी, स्वच्छ पानी के लिए जानी जाती थी, लेकिन वर्ष 1990 में चंबल के पानी से हैजा फैला तो इसे दूषित नदी घोषित कर दिया गया। तब से वर्षभर बहने वाली चंबल में प्रदूषण का स्तर बढ़ ही रहा है। जिससे चंबल में अथाह जल होेने के बावजूद वह शहरवासियों के लिए सिर्फ देखने के काम आ रही है। चंबल नदी में भी सीवरेज का पानी मिलने से यह स्थिति निर्मित हुई है। 

बेतवा नदी में मिल रहा सीवेज का पानी

मध्य प्रदेश के विदिशा जिले से निकलने वाली बेतवा नदी धीरे-धीरे प्रदूषित हो रही है। जिस कारण यह हरे भरे खेत की तरह नजर आने लगी है। यदि, समय रहते इस पर ध्यान नही दिया गया तो यह नदी अपना अस्तित्व भी खो सकती है। बेतवा नदी जिन-जिन शहरों से होकर गुजरती है, उन्हीं जगहों का गंदा पानी नदी में मिल रहा है। 

मध्य प्रदेश की नदियों के प्रदूषित हो रहे पानी के कारण जलीय जीवजंतु और वनस्पतियों पर भी असर पड़ रहा है। नदियों में ज्यादातर साफ पानी मे रहने वाले जीव ही रहते हैं। पानी की गुणवत्ता खराब होने के कारण मछलियां और अन्य जीवों की प्रजातियां तेजी से खत्म हो रही है। 

द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए पर्यावरणविद डॉ. सुभाष सी पांडेय ने बताया कि पर्यावरण और नदियों के संरक्षण के लिए सरकारें गंभीर नहीं है। प्रदेश की सभी नदियां लगभग प्रदूषित हो चुकी हैं। इसके अलावा अब तालाबों का पानी भी पीने योग्य नहीं रह गया है। डॉ. पांडेय ने कहा- "नदियों के आसपास कांक्रीट का निर्माण और पेड़ पौधों की कटाई के कारण नदियों का पानी प्राकृतिक रूप से साफ नहीं हो रहा है। जहां से यह गुजर रहीं हैं उन शहरी इलाकों से सीवेज का गंदा पानी मिल रहा है।" 

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता रवि वर्मा राहुल ने द मूकनायक से बातचीत करते हुए कहा कि कांग्रेस हर एक मुद्दें को गंभीरता से लेती है, और उसपर काम भी करती है। जब देश में कांग्रेस की सरकार थी तब सरकार ने पर्यावरण के संरक्षण के लिए काम किया। भाजपा की सरकार में जंगलों की कटाई तेजी सी हो रही है। हमने अपने घोषणा पत्र में पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे को भी शामिल किया है। 

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