सबसे ज्यादा प्रदूषित नदी की श्रेणी में आया कान्ह नदी [फोटो- अंकित पचौरी, द मूकनायक]
सबसे ज्यादा प्रदूषित नदी की श्रेणी में आया कान्ह नदी [फोटो- अंकित पचौरी, द मूकनायक]

मध्यप्रदेश: प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में सबसे ज्यादा प्रदूषित नदी की श्रेणी में क्यों आया कान्ह नदी!

करोड़ो रुपए सरकारी खर्च के बाद भी नही सुधर सकी नदी के जल की गुणवत्ता। नदी के तटीय इलाकों में सबसे ज्यादा संख्या दलितों और आदिवासियों की है।

भोपाल। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक सर्वे में खुलासा हुआ है की प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के सीमा क्षेत्र में बहने वाली कन्हा नदी सबसे ज्यादा प्रदूषित है। पानी की गुणवत्ता खराब होने के कारण अब नदी का पानी पीने योग्य नहीं है। आपको बता दें कि इंदौर संभाग में नर्मदा सहित 12 नदियों के सर्वे की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। इस नदी के ग्रामीण तटीय इलाकों में बसने वाले सबसे ज्यादा संख्या आदिवासी दलित समाज के लोगों की है, और वह लोग कान्ह नदी के पानी को उपयोग कर रहे हैं। यह नदी सांवेर से उज्जैन की ओर जाती है। इसी बीच के ग्रामीण नदी के पानी का उपयोग कर रहे हैं। 

पहले हम कान्ह नदी को समझते हैं

कान्ह नदी, सरस्वती नदी के साथ, स्मार्ट सिटी इंदौर परियोजना का एक हिस्सा है। नदी के किनारे 3.9 किलोमीटर तक फैले रिवरफ्रंट को पहले ही विकसित किया जा चुका है। स्मार्ट सिटीज मिशन के तहत दोनों नदियों का कायाकल्प किया जा रहा है।

कान्ह एक सीवेज डंपयार्ड में बदल गया है, जहां 70 के दशक में तेजी से औद्योगिकीकरण के बाद से कई उद्योग ठोस और साथ ही तरल कचरे को डंप कर रहे हैं।

अतिरिक्त भार के रूप में, घरेलू जल निकासी को भी बिना किसी शुद्धिकरण या सफाई के कान्ह में फेंक दिया जाता है। 1985 के बाद से नदी को साफ करने के कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन उनमें से कोई भी आज तक सफल नहीं हुआ है।

2015 में, भारत सरकार ने स्मार्ट सिटीज मिशन की घोषणा की। एमओयूडी द्वारा जारी सूची में ग्यारहवें स्थान पर है, और स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित होने वाले पहले बीस शहरों में से एक है। स्मार्ट सिटी इंदौर मिशन को सरकार द्वारा नागरिक जुड़ाव में किए गए प्रयासों के लिए व्यापक रूप से सराहा गया। मिशन के तहत, कान्ह और सरस्वती रिवरफ्रंट विकास पर 2020 तक 660 करोड़ रुपये की राशि खर्च की गई है, जो रिवरफ्रंट के विकास के आठ चरणों में से पांच को पूरा करती है।

कान्ह काकरी बाड़ी पहाड़ियों से निकलती है जो शिप्रा नदी का स्रोत भी है। कान्ह बाद में शिप्रा से मिलती है, जो आगे चलकर चंबल, फिर यमुना और अंत में गंगा नदी में मिल जाती है। और इन नदियों के तटीय इलाके ग्रामीण क्षेत्रों पर हैं। 

सबसे ज्यादा प्रदूषित नदी की श्रेणी में आया कान्ह नदी [फोटो- अंकित पचौरी, द मूकनायक]
सबसे ज्यादा प्रदूषित नदी की श्रेणी में आया कान्ह नदी [फोटो- अंकित पचौरी, द मूकनायक]

ट्रीटमेंट पर करोड़ों फूंके, फिर भी नही सुधरी जल की गुणवत्ता

राज्य सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च कर नदियों के पानी को साफ रखने की कोशिश की लेकिन इसका फायदा नही हुआ। ट्रीटमेंट के बाद भी कान्ह का पानी पीने में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, जबकि स्वच्छता सर्वेक्षण के तहत पिछले साल ही इंदौर को शहर को वाटर प्लस का तमगा मिल था। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नाला टैपिंग व एसटीपी लगाने पर 650 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। बावजूद इसके सीवरेज और कुछ स्थानों पर इंडस्ट्रियल व केमिकल वेस्ट मिलने से कान्ह के पानी की ग्रेड खराब मिली है। नदी का पानी कतई पीने योग्य नही है। 

मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ताजी जांच रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है कि ओंकारेश्वर, मंडलेश्वर, मोरटक्का, हनुवंतिया और खलघाट सहित संभाग के 11 स्थानों पर नर्मदा का पानी शुद्धता के पैमाने पर खरा पाया गया है। गंभीर, कुंदा व चंबल का पानी शुद्धता के मापदंड में बी ग्रेड पाया गया है। झाबुआ की अनास, बदनावर की माही, सेंधवा की गोरी, मनावर की मन, बुरहानपुर की ताप्ति व चोरल का पानी भी ए ग्रेड है।

अरबों खर्च फिर भी नदी दूषित

स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कान्ह और सरस्वती शुद्धिकरण के लिए सिर्फ नाला टैपिंग व सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) पर 650 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं। निगम ने 416 एमएलडी पानी की क्षमता वाले 10 एसटीपी व 1 सीईटीपी (कॉमन इफ्यूलेंट ट्रीटमेंट प्लांट) लगाया है। कबीटखेड़ी (3 प्लांट), बिजलपुर, प्रतीक सेतु, नहर भंडारा, राधा स्वामी, आजाद नगर, पीपल्याहाना व सीपी शेखर नगर में एसटीपी हैं।

सर्वे में कान्ह का पानी सबसे निम्न ई ग्रेड पाया गया

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नर्मदा के 11 पॉइंट सहित कुल 12 नदियों की जांच की है। नर्मदा का पानी सभी स्थान पर ए ग्रेड का मिला है। वहीं रिपोर्ट में इंदौर की कान्ह का पानी ई ग्रेड का पाया गया। ए,बी और सी ग्रेड के पानी को ट्रीट कर पीने में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन ई ग्रेड के पानी को पीने के लिए उपयोग नही किया जा सकता। 

पानी के ग्रेड का पैमाना और गुणवत्ता क्या है?

ए ग्रेड : 100 एमएल पानी में कोलीफॉर्म की मात्रा 50 या कम, घुलित ऑक्सीजन 6 एमजी से अधिक, बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) 2 एमजी या कम होना चाहिए।

बी ग्रेड : कोलीफॉर्म की मात्रा 500 या कम। पीएच 6.5 से 8.5 तथा बीओडी 3 एमजी या कम।

सी ग्रेड : कोलीफॉर्म की मात्रा 100 एमएल में 5000 या इससे कम। पीएच 6 से 9 तक तथा बीओडी 3 एमजी या उससे कम होना चाहिए।

डी ग्रेड : पीएच 6.5 से 8.5 तक। घुलित ऑक्सीजन 4 एमजी या उससे अधिक। अमोनिया की मात्रा 1.2 एमजी प्रति लीटर या उससे कम।

ग्रेड ई : पीएच 6 से 8.5, सोडियम अवशोषण अनुपात 26। बोरोन 2 एमजी प्रति लीटर।

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