अलर्टः लम्पी फैला तो राजस्थान के वन्यजीवों पर भी होगा संकट

बाघ
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रिपोर्ट- अब्दुल माहिर

जोधपुर में हिरणों में देखे गए लंपी रोग के लक्षण।

सवाईमाधोपुर। वन्यजीवों में फैला लंपी (चर्म रोग) कोरोना काल की याद दिला रहा है। पश्चिमी राजस्थान के जिलों से निकल कर यह रोग पूर्वी राजस्थान के जयपुर व अजमेर जिले में भी दस्तक दे चुका है। अब यह रोग वन्यजीवों को भी अपना शिकार बना रहा है। समय रहते रोग पर नियंत्रण नहीं किया गया तो वो दिन दूर नहीं जब प्रदेश भर का पशुधन व वन्यजीव इसकी चपेट में होंगे।

नहीं सम्भले तो वन्यजीवों पर भी संकट

गौवंशीय पशुधन में तेजी से फैल रहे लंपी (चर्म रोग) पर शीघ्र नियन्त्रण नहीं किया गया तो प्रदेश में लगभग 34 से अधिक राष्ट्रीय उद्यान, बाघ परियोजना व अभयारण्य में स्वछंद विचरण करने वाले वन्यजीव भी इसकी चपेट में होंगे। जोधपुर जिले में हिरणों में रोग के लक्षण देखे गए हैं। यह वन्यजीव प्रेमियों के लिए बुरी खबर तो होगी ही, साथ ही वन्यजीवों पर लंपी का असर हुआ तो सरकारी आय पर भी संकट खड़ा होने की बात से इनकार नहीं कर सकते हैं।

व्यस्त है वन विभाग!

द मूकनायक ने राजस्थान के वन एवं पर्यावरण सचिव वेंकटेश शर्मा से वन्यजीवों को लंपी रोग से बचाने को लेकर किए गए उपायों के बारे में बात की तो उन्होंने जानकारी होने की बात से इनकार कर दिया। वन एवं पर्यावरण मंत्री हेमाराम चौधरी से बात करने के प्रयास किए, लेकिन सम्पर्क नहीं हो सका। रणथम्भौर बाघ परियोजना के जिला वन अधिकारी से बात की तो उन्होंने खुद को देहरादून में किसी प्रशिक्षण में व्यस्त होने की बात कही।

बाघ
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बाघ परियोजना पर खतरा

सवाई माधोपुर जिले में रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान है एवं बाघ पतियोजना में मुख्य रूप से बाघ, सांभर, चीतल, रीछ, नीलगाय, जरख एवं चिंकारा पाए जाते हैं। यह भारत का सबसे छोटा बाघ अभयारण्य है, लेकिन इसे भारतीय बाघों का घर कहा जाता है। इसके बाहरी इलाके में चारों तरफ गांव बसे हैं। यहां के रहवासियों का मुख्य रोजगार खेती के साथ पशुपालन है। बरसात के समय खेतों में फसल होने से मवेशियों के साथ वन्यजीवों के विचरण क्षेत्र में प्रवेश करने के मामले सामने आते रहते हैं। यदि बाघ परियोजना में लंपी से संक्रमित पशु ने प्रवेश किया तो वन्यजीवों पर संकट की आशंका से इनकार नहीं कर सकते हैं।

पक्षी उद्यान भी सुरक्षित नहीं

भरतपुर जिले में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान या केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान में हजारों की संख्या में दुर्लभ और विलुप्त जाति के पक्षी पाए जाते हैं, जैसे साईबेरिया से आए सारस, जो यहाँ सर्दियों के मौसम में आते हैं। कोटा जिले के दर्रा अभयारण्य एवं जवाहर सागर अभयारण्य को मिलाकर मुकुंदरा हिल्स नेशनल पार्क घोषित किया गया है। इसके पास में सांभर, नीलगाय, चीतल हिरण, जंगली सूअर पाए जाते हैं। मुकुन्दरा राष्ट्रीय उद्यान या राष्ट्रीय चम्बल वन्यजीव अभयारण्य कोटा में घडि़यालों (पतले मुंह वाले मगरमच्छ) के लिए बहुत लोकप्रिय है। यहां जंगली सुअर, तेंदुए और हिरन पाए जाते हैं।

पर्यटक
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ब्लैक बक हिरण में मिला संक्रमण

जैसलमेर में मरुभूमि उद्यान है। यहां काले रंग के चिंकारा को संरक्षण दिया गया है। राजस्थान का राज्य पक्षी गोडावण (ग्रेट इंडियन बर्ड) यहां बहुत पाया जाता है। चूरू जिले का ताल छापर अभयारण्य हिरणों के लिए प्रसिद्ध है। बूंदी में रामगढ़ विषधारी अभयारण्य है। यहां बाघ, बघेरे, रीछ ,गीदड़, चीतल, चिंकारा, नीलगाय, जंगली सूअर, नेवला, खरगोश और भेडि़या विचरण करते हैं।

उदयपुर का कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य में रीछ, भेडि़यों एवं जंगली सूअर विचरण करते हैं। यह मुर्गों के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। अजमेर का टोडगढ़ – रावली वन्यजीव अभयारण्य में प्रमुख वन्यजीवों में तेंदुआ, जंगली सूअर, चिंकारा, आम लंगूर, सुस्त भालू और भारतीय भेडि़या शामिल हैं। प्रतापगढ़ का सीतामाता अभयारण्य की वन्यजीव प्रजातियों में उड़न गिलहरी और चौसिंघा (विनत भ्वतदमक ।दजमसवचम) हिरण पाया जाता हैं।

माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य में मुख्य रूप से तेंदुए, स्लोथबियर, वाइल्ड बोर, साँभर, चिंकारा और लंगूर पाए जाते हैं। चित्तौड़गढ़ के भैंसरोडगढ़ अभयारण्य में घड़ियाल इसकी अनुपम धरोहर है। यहां तेंदुआ, चिंकारा और चीतल काफी संख्या में हैं।

मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से मांगी मदद

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बयान जारी कर कहा कि राज्य के विभिन्न जिलों के गौवंशीय पशुओं में फैल रहे लम्पी स्किन रोग चिंतनीय है, राज्य सरकार गौवंशीय पशुओं के प्रति सजगता एवं संवेदनशीलता बरतते हुए रोग नियंत्रण के सभी संभावित उपाय कर रही है। केन्द्र सरकार से गौवंश को बचाने के लिए आर्थिक एवं आवश्यक सहायता उपलब्ध कराने और बीमारी के प्रभावी नियंत्रण में सहयोग करने के लिए आग्रह है।

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