जंगलों में खनन से बेघर छत्तीसगढ़ के हाथियों ने मध्यप्रदेश में बनाया नया ठिकाना

हाथी
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भोपाल। छत्तीसगढ़ के जंगलों में तेजी से बढ़ते खनन से परेशान हाथियों ने अब अपना नया ठिकाना मध्यप्रदेश को बना लिया है। एक्सपर्ट के अनुसार, 100 साल बाद प्रदेश में हाथियों की वापसी हुई है। इससे पहले तक हाथी मध्यप्रदेश की सीमा में घूमकर चले जाते थे। जंगलों और जानवरों के जीवन के जानकार मानते हैं कि जो लौटे हैं, उन हाथियों का असल ठिकाना मध्यप्रदेश ही है। हाथियों को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराने के लिए वन विभाग ने अनूपपुर, सिंगरौली, सीधी और शहडोल के बीच सेफ कॉरिडोर बनाया है। यहां पर आमजन का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया है।

द मूकनायक ने इस संबंध में प्रदेश के सीधी जिले के वन मंडल अधिकारी क्षितिज कुमार से बातचीत की। उन्होंने बताया कि, अक्सर छतीसगढ़ से हाथी यहाँ आते-जाते रहे हैं। हाथियों की सुरक्षा के लिए हमने सेफ कॉरिडोर भी तैयार किया है। हाथियों के आने-जाने वाले रास्ते पर विशेष निगरानी की जाती है।

2002 से मध्यप्रदेश की सीमा में आते रहे हैं हाथी

स्थानीय लोगों के अनुसार, 2002 में हाथियों ने छत्तीसगढ़ से मध्यप्रदेश में आना शुरू किया था। यह बारिश के कुछ महीने रहकर वापस चले जाते थे। जानकार मानते हैं कि प्रदेश में पड़ोसी राज्य से अच्छा और सुरक्षित वातावरण मिलने के कारण हाथी यहीं रुक रहे हैं। मध्यप्रदेश के वन अधिकारियों का कहना है कि छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड में जंगल के भीतर हो रहे खनन से हाथी परेशान हो रहे हैं। यही वजह है कि वे अपने लिए ज्यादा सुरक्षित स्थान खोज रहे हैं। अब उनको मध्यप्रदेश के जंगलों में ज्यादा सहूलियत महसूस हो रही है।

प्रदेश के बांधवगढ़ में बढ़ रहा हाथियों का कुनबा

टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश में 1920 के बाद 2022 में सरकार ने आधिकारिक ऐलान कर दिया है कि अब मध्यप्रदेश भी एलिफेंट स्टेट बनने की कैटेगरी में है। बाघों के लिए मशहूर बांधवगढ़ अब हाथियों के कुनबे को बढ़ाने में लगा है। यहां प्रदेश के सबसे ज्यादा 50 हाथी हैं। इसके बाद सीधी के संजय राष्ट्रीय उद्यान में 10 हाथी हैं। खासबात यह है कि सीधी के क्षेत्र में हाथियों ने डेरा जमाया है।

हाथियों का भी किया गया था बंटवारा

जानकारों के अनुसार, 1920 के बाद मध्यप्रदेश में हाथी नहीं थे। 1987 में सरगुजा के जंगलों में पहली बार देविभाजन के बाद सरगुजा छत्तीसगढ़ में चला गया। यहां 1993 में मध्यप्रदेश में 18 हाथी पकड़े गए थे। 2001 में छत्तीसगढ़ गठन के बाद इन हाथियों का भी बंटवारा हुआ। आधे मध्यप्रदेश को मिले और आधे छत्तीसगढ़ को दिए गए। वर्तमान में वह हाथी टाइगर ट्रैकिंग के काम आ रहे हैं।

5 साल पहले थोड़ा-थोड़ा रुकना शुरू किया

द मूकनायक से बातचीत करते हुए सीधी के संजय गांधी टाइगर रिजर्व के सीसीएफ वायपी सिंह ने बताया कि मध्यप्रदेश में 2002 से ही हाथियों का आने-जाने का सिलसिला जारी रहा है। वर्तमान में 10 हाथी यहाँ बने हुए हैं। जिनमें 4 नर हाथी है, 3 बच्चें है और 3 मादा हाथी हैं। उन्होंने बताया कि, इनमें से एक हाथी झुंड से अलग हो गया है। जो शहडोल के जंगलों में चला गया है।

हाथी मित्र दल बनाए

सीसीएफ ने बताया कि, हाथी व्यावहारिक रूप से काफी समझदार होते हैं, और झुंड में रहना पसंद करते हैं। साल में कभी ऐसी कोई सूचना मिलती है जब हाथी गाँव के आस-पास मूवमेंट करते हैं। ऐसी स्थिति में हमनें गाँव में वाट्सएप ग्रुप बनाया हुआ है जिसमें सरपंच सहित अन्य लोग हैं जो गाँव के आस-पास हाथियों के पाए जाने की सूचना देते हैं। उन्होंने बताया कि, गाँव के लोगों के साथ मिलकर हाथी मित्र दल बनाया गया है, उन्हें समय-समय पर ट्रेनिंग दी जाती है। उन्होंने बताया कि, हाथी खतरा भांपने के बाद ही इंसानों पर हमला करते हैं।

'प्रोजेक्ट एलिफेंट' में मध्यप्रदेश को भी शामिल किया

मध्यप्रदेश में हाथियों के ठिकाने बनने की खबर के बाद केंद्र सरकार ने प्रोजेक्ट एलिफेंट में अब मध्यप्रदेश को भी शामिल कर लिया है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक प्रारंभिक तौर पर हाथियों की देखरेख के लिए केंद्र की ओर से करीब 15 लाख रुपए भी दिए गए हैं, हालांकि ये नाकाफी हैं। वन विभाग ने राज्य सरकार से इसके लिए अतिरिक्त राशि की मांग की है।

महुए और धान की गंध से आकर्षित होते है हाथी

संजय गांधी टाइगर रिजर्व सीसीएफ ने बताया कि, हम गांव में हाथी मित्र दल बना रहे हैं। इन्हें सिखाया जाएगा कि हाथियों के आने के दौरान किन-किन बातों का ध्यान रखना होगा। उनका कहना है कि हाथियों के हमलों की केस स्टडी में पाया गया कि वन क्षेत्र से लगे गांवों के लोग घर के बाहरी हिस्से में महुआ रखते हैं। हाथी महुए की गंध सूंघकर आते हैं और कच्चे मकानों को भी जमींदोज कर देते हैं। हमारी कोशिश है कि गांव वाले जागरूक रहें, ताकि हाथी मानव क्षेत्र में प्रवेश नहीं करें।

मध्यप्रदेश के 11 जिलों में पहुँच चुके हैं हाथी

मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के विभाजन से पहले हाथी संजय टाइगर रिजर्व के उस हिस्से में आते-जाते थे, जो वर्तमान में छत्तीसगढ़ (गुरु घासीदास नेशनल पार्क) में है। वर्ष 2008 में इसी रास्ते से हाथी प्रदेश में दाखिल हुए और सीधी जिले तक पहुंच गए। वन विभाग ने रोक-टोक की तो हाथियों ने दूसरा रास्ता बिलासपुर से अनूपपुर खोल लिया। फिर डिंडौरी से मंडला और बालाघाट के लांजी से सिवनी, लखनादौन होते हुए नरसिंहपुर तक पहुंच गए। हाथी मंडला, सिवनी, सिंगरौली, अनूपपुर, शहडोल, सीधी, जबलपुर, उमरिया, छिंदवाड़ा तक उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। वर्तमान में हाथी बांधवगढ़, कान्हा और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व व उनके आस-पास सक्रिय हैं। बताया जाता है कि इनमें से सबसे बड़ा 45 हाथियों का झुंड बांधवगढ़ के जंगल में है, जबकि सीधी जिले में भी आठ हाथी हैं। इस तरह प्रदेश में 68 हाथी मौजूद हैं।

मध्यप्रदेश में हाथियों का क्या रहा इतिहास

स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यहाँ हाथियों की संख्या में कमी नहीं थी। ग्वालियर के अशोक मोहिते कहते हैं कि शिवपुरी जिसे पूर्व में शिप्री नाम से जाना जाता था। वहां के जंगलों में हाथियों के पाए जाने की बात आइना ए अकबरी में भी लिखी है। लेखक अबुल फजल ने इसमें लिखा है कि, 1564 में अकबर ने यहां रात्रि विश्राम किया था। लौटते हुए भी अकबर यहां ठहरा था। यहां विश्राम के दौरान उसने जंगलों में शिकार किया था। जाते हुए वह अपने साथ यहां से हाथियों का पूरा बेड़ा लेकर गया था। अकबर मालवा की लड़ाई के लिए यहां से होकर गुजरा था।

अकबर की सेना में मध्यप्रदेश के हाथी

बताया जाता है कि, इन हाथियों का उपयोग अकबर ने अपनी सेना में भी किया था। शिवपुरी के वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद भार्गव कहते हैं कि शिवपुरी के जंगलों में हाथियों के शिकार की बात ग्वालियर गजेटियर में भी लिखी है। संख्या की बात करने पर वे कहते हैं कि इस बात का उल्लेख नहीं है कि अकबर यहां से कितने हाथी अपने साथ लेकर दिल्ली गया था।

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