छत्तीसगढ़: ”कोई भी अडानी की खदानों को हटाना नहीं चाहता है, इसीलिए हसदेव अरण्य खतरे में है” - आलोक शुक्ला

हसदेव अरण्य को बचाने के लिए दस सालों से आंदोलन कर रहे आलोक शुक्ला ने केन्द्र और राज्य सरकार पर लगाया आरोप, कहा- कांग्रेस और बीजेपी दोनों सरकारें है अरण्य की तबाही की जिम्मेदार।
हसदेव अरण्य
हसदेव अरण्य

नई दिल्ली। ”कोई भी अडानी की खदानों को हटाना नहीं चाहता है। केंद्र और राज्य सरकार दोनों की ही अनुमति से हसदेव अरण्य की कटाई हो रही है। हम कैसे भूल सकते हैं कि छत्तीसगढ़ की विधानसभा में 26 जुलाई 2022 को सबकी सहमति से हसदेव कोल ब्लाक को निरस्त करने का प्रस्ताव पारित किया गया था।” यह कहना है हसदेव अरण्य को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे आलोक शुक्ला का।

द मूकनायक से शुक्ला ने कहा, ”वह 10 सालों से इस आंदोलन से जुड़े हैं। यह आंदोलन 2012 में शुरू हुआ था और अभी तक चल रहा है। अरण्य क्षेत्र इतना बड़ा इलाका है। यहां जंगल काटने का दूसरा चरण शुरू हुआ है। अब यह पूरा जंगल खत्म होने वाला है। बिना सहमति के जंगल नहीं काटे जा सकते हैं। अभी जो पेड़ कटाई हो रही है। पिछले दिनों स्थानीय लोगों ने भी आपत्ति जताई थी, जिससे जंगल का बड़ा हिस्सा सुरक्षित हुआ है जो क्षेत्र अडानी के लाभ के लिए छोड़ दिया था। इन सारी चीजों के लिए आंदोलन जारी है।”

कांग्रेस-बीजेपी एक दूसरे को दे रहे दोष

आगे वह कहते हैं, ”सरकार तो इसको लेकर कोई बात ही नहीं करती है। सरकारें एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाती रहती हैं। जब कांग्रेस की सरकार थी तो वह कहती थीं कि बीजेपी ने अनुमति दी थी। यह सब करवाने के लिए। जब बीजेपी की सरकार है तो वह कह रही है कि सब कांग्रेस का किया धरा है। केंद्र और राज्य सरकार दोनों की ही अनुमति से सब हो रहा है। कोई भी अडानी की खदानों को हटाना नहीं चाहता है।”

यह है विरोध की असली वजह

हसदेव अरण्य का पूरा क्षेत्र पांचवीं अनुसूची में आता है। ऐसे में वहां खनन के लिए ग्राम सभा की मंजूरी जरूरी है। आंदोलन कर रहे लोगों का कहना है कि ग्राम सभा ने मंजूरी नहीं दी है। वजह यह है कि परसा ईस्ट केते बासेन खदान के लिए कुल 1136 हेक्टेयर जंगल काटा जाना है, जिसमें से 137 हेक्टेयर काटा जा चुका है। इसके साथ ही परसा कोल ब्लॉक के 1267 हैक्टेयर काटा जाएगा। लगभग 9 लाख पेड़ काटे जाएंगे। इससे वन्यजीवों और वनस्पति के साथ हसदेव नदी का कैचमेंट भी प्रभावित होगा।

छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य को बचाने के लिए बड़ी मुहिम चल रही है। हसदेव अरण्य (वन क्षेत्र) छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में है। इस वन क्षेत्र में कोयला के करीब 23 भंडार हैं। वैसे तो छत्तीसगढ़ में कोरिया से लेकर कोरबा जिला तक कई खदानों से कोयला निकाला जा रहा है, लेकिन हसदेव में कोयला खदानों के आवंटन और खनन का स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। हसदेव में कोयला खदान आवंटन और कोयला खनन के लिए वनों की कटाई का विरोध करीब 10 साल से चल रहा है। इस दौरान केंद्र व राज्य में सरकारें बदल गईं, लेकिन मामला अब तक नहीं सुलझा है। विपक्ष में रहते राजनीतिक दल और उनके नेता आंदोलन का समर्थन करते हैं, लेकिन सत्ता में आते ही खदान के पक्ष में खड़े हो जाते हैं।

हसदेव वन में कोयला खदान और पेड़ों की कटाई के विरोध में चल रहे आंदोलन को समर्थन देने एक दिन पहले पूर्ववर्ती सरकार में डिप्टी सीएम रहे टीएस सिंहदेव पहुंचे थे, जब 43 हेक्टेयर में फैले पेड़ों की कटाई हुई तब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से उस समय जब मीडिया ने सवाल किया तो बघेल ने इसे देशहित के लिए जरूरी बताया था। गौर करने वाली बात यह भी है कि 2015 में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी इस आंदोलन को समर्थन देने पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने जंगल नहीं कटने देने का वादा किया था, जबकि खदान का आवंटन कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र की यूपीएस सरकार ने किया था।

2010 में हुआ था कोयला खदानों का आवंटन

जानकारों के अनुसार केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीएस सरकार के दौरान 2010 में राजस्थान सरकार को छत्तीसगढ़ में 3 कोयला खदानों का आवंटन किया गया था। लेकिन वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हसदेव अरण्य में खनन प्रतिबंधित रखते हुए इसे नो - गो एरिया घोषित कर दिया। इसके बाद में वन मंत्रालय के वन सलाहकार समिति ने अपने ही नियम के खिलाफ जाकर यहां परसा ईस्ट और केते बासेन कोयला परियोजना को वन स्वीकृति दे दी।

2012 में पहले चरण की खुदाई के लिए मंजूरी दे दी गई। केंद्र ने पहले फेज के लिए 762 हेक्टेयर में फैले 137 मिलियन टन कोयले की खुदाई की मंजूरी दी थी। राज्य की तत्कालीन भाजपा सरकार ने भी पहले चरण की खुदाई के लिए सभी मंजूरी दे दी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने खनन पर रोक लगाई, लेकिन 2015 में खनन फिर से शुरू हो गया। इस खदान से कोयला निकालने का काम अभी चल रहा है। इसके बाद दूसरे चरण की खुदाई को लेकर विरोध शुरू हो गया।

जमकर हो रही है राजनीति

एक तरफ स्थानीय लोग और पर्यावरण प्रेमी जंगल को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं दूसरी तरफ जमकर सियासत भी हो रही है। छत्तीसगढ़ विधानसभा ने हसदेव अरण्य को खनन मुक्त रखने के लिए 26 जुलाई 2022 को अशासकीय संकल्प सर्वानुमति से पारित किया था। लेकिन इसके कुछ दिनों बाद ही राज्य सरकार ने खदान को अनुमति दे दी। अब कांग्रेस खदान के लिए भाजपा को जिम्मेदार बता रही है तो दूसरी तरफ भाजपा कांग्रेस पर ठिकरा फोड़ रही है।

तीन राज्यों को जोड़ता है हसदेव अरण्य

हसदेव अरण्य तीन राज्यों के जंगलों को जोड़ता है। एक तरफ इसका एक छोर मध्य प्रदेश के कान्हा जंगल से जुड़ी हुई तो दूसरा छोर झारखंड के पलामू तक फैला है। छत्तीसगढ़ में यह जंगल कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर जिलों में फैला है। इसी जंगली क्षेत्र में हसदेव नदी बहती है। जंगल इस नदी के कैचमेंट एरिया में है। हसदेव नदी पर बना मिनी माता बांगो बांध जिससे बिलासपुर, जांजगीर-चाम्पा और कोरबा के खेतों और लोगों को पानी मिलता है। इस जंगल मे हाथी समेत 25 वन्य प्राणियों का रहवास और उनके आवागमन का क्षेत्र है। करीब 1 लाख 70 हजार हैक्टेयर में फैला यह जंगल अपनी जैव विविधता के लिए जाना जाता है। यहां गोंड, लोहार और ओरांव, पहाड़ी कोरवा जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार लोगों का घर है। 82 तरह के पक्षी, दुर्लभ प्रजाति की तितलियां और 167 प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं। इनमें से 18 वनस्पतियों अपने अस्तित्व के खतरे में है।

राहुल पहुंचे थे आंदोलनकारियों के बीच

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने जून 2015 में सरगुजा का दौरा किया। राहुल हसदेव अरण्य के गांव में गए और पैदल यात्रा भी की। इसके बाद मदनपुर गांव में आयोजित आम सभा में राहुल गांधी ने लोगों से वादा किया था कि वो जंगल नहीं कटने देंगे।

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