उत्तर प्रदेश: प्राथमिक स्कूलों की स्थिति चिंताजनक, मिड-डे मील में दूध कम पानी ज्यादा और राशन भी खत्म

बस्ती जिले का एक प्राथमिक विद्यालय
बस्ती जिले का एक प्राथमिक विद्यालय [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

प्राथमिक स्कूलों की पड़ताल और द मूकनायक की ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आया कि बस्ती जिले के प्राथमिक स्कूल बदहाली की कगार पर हैं. बच्चों के लिए पर्याप्त किताबें मुहैया नहीं कराई गई हैं. मिड-डे मील में बच्चों के दूध में अधिक मात्रा में पानी की मिलावट की जा रही है, और विद्यालय प्रबंधन व कोटेदार की उदासीनता में महीने भर से स्कूल के चूल्हे नहीं जले.

बस्ती। जिला मुख्यालय से लगभग 18 किमी0 पूरब में स्थित साऊंघाट ब्लॉक में ओड़वारा क्षेत्र के कुछ प्राईमरी विद्यालयों की पड़ताल के बीच जो सामने आया वह हैरान करने वाला था. यहां आसपास में मिलाकर लगभग 5 से 6 प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालय मौजूद हैं. द मूकनायक टीम इन विद्यालयों की पड़ताल में बच्चों के मध्यान्ह भोजन के समय स्कूल में पहुंची।

प्राथमिक विद्यालय कुर्थियां वि.ख. साऊंघाट बस्ती [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
प्राथमिक विद्यालय कुर्थियां वि.ख. साऊंघाट बस्ती [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

प्राथमिक विद्यालय कुर्थियां वि.ख. साऊंघाट में बच्चे मिड-डे मील का भोजन कर अध्ययन में जुटे हुए थे. कक्षा 5 में, समूह में पढ़ रहे विद्यालय के बच्चों से द मूकनायक टीम ने पूछा कि आज भोजन में आप लोगों ने क्या खाया है!… बच्चों ने एक स्वर में कहा.. "दाल और रोटी" (दैनिक मिड-डे मील तालिका के अनुसार). विद्यालय की हेडमास्टर ने बताया कि, हमारे यहां बच्चों की कुल संख्या 97 है. विद्यालय में सभी व्यवस्थाएं लगभग सुचारु रूप से चल रहीं हैं.

कुर्थियां प्राथमिक विद्यालय से कुछ दूर स्थित द मूकनायक ने संविलियन विद्यालय ओड़वारा II का रुख किया। विद्यालय पर पहुंचते ही देखा गया कि, बच्चों के लिए नई सरकारी किताबें आई हुईं हैं. विद्यालय के मुख्य गेट पर गाड़ी में लदी किताबों को वहां की हेडमास्टर बच्चों से ढुलवाकर स्कूल में ले जाने का निर्देश दे रहीं थीं. स्कूल के ही एक सहायक अध्यापक ने बताया कि, "सितम्बर माह की शुरुआत हो चुकी है, अब जाकर हमारे बच्चों को नई सरकारी किताबें मिल रहीं हैं. किताबें इतनी देर से मिली तो, लेकिन ये किताबें बहुत कम हैं, सभी बच्चों में बांटने के लिए ये पर्याप्त नहीं हैं."

संविलियन विद्यालय ओड़वारा II <em>साऊघाट</em> बस्ती [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
संविलियन विद्यालय ओड़वारा II साऊघाट बस्ती [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

बच्चों के लिए सरकारी किताबें गाड़ी से निकलवा रहीं हेडमास्टर प्रियंका मिश्रा से द मूकनायक ने विद्यालय की व्यवस्थाओं के बारें में और जानने के लिए मिड-डे मील के बारे में पूछा तो, उनके स्वर यही थे कि, "आप लोग जाइए, यहां मीडिया की कोई जरुरत नहीं।"

हेडमास्टर के इस जवाब से कोई भी अंदाजा लगा सकता था कि विद्यालय के बारे में कुछ भी बताने की उनकी इक्षा नहीं थी. जैसे वह मन-ही-मन कह रहीं हों कि हमसे सवाल न पूछा जाए!

हालांकि, द मूकनायक टीम ने ठहर कर उनके जवाब की प्रतीक्षा की. दोबारा उन्होंने सिर्फ यही बताया कि, "हमारे यहां राशन के अभाव में लगभग अगस्त माह से ही मध्यान्ह भोजन नहीं बना है. जिसकी लिखित सूचना खंड शिक्षा अधिकारी और बेसिक शिक्षा अधिकारी को दिया है. मामले की जानकारी अधिकारियों को है."

हेडमास्टर प्रियंका मिश्रा ने उक्त बातों के अलावा और कुछ नहीं बताया। जबकि, पास में ही मौजूद उन्हीं के विद्यालय के सहायक अध्यापक ने हमें और जानकरी देने के लिए विद्यालय परिसर में ले गए. उन्होंने बताया कि आज हमारे विद्यालय में बच्चों की किताबें आईं हैं, जो बहुत पहले ही आ जानी चाहिए थीं. उन्होंने कहा, "कक्षा 4 का एक भी किताब नहीं आया है, कक्षा 5 की सिर्फ 2 किताबें आईं हैं, कक्षा तीन की 1 किताब आई है." उन्होंने बताया कि हमारे यहां बच्चों की कुल संख्या 129 है.

बच्चों के किताबों के अलावा सहायक अध्यापक ने भी मिड-डे मील के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं दी. स्कूल की छुट्टी होने तक हम वहीं रहे. स्कूल के गेट से बाहर निकल रहीं छात्रों से द मूकनायक टीम ने पूछा कि, क्या आज आपने स्कूल में भोजन किया है, क्या मिड डे मील का खाना बना था? बच्चों ने जवाब दिया, "नहीं". 

संविलियन विद्यालय ओड़वारा II <em>साऊघाट</em> बस्ती का परिसर [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
संविलियन विद्यालय ओड़वारा II साऊघाट बस्ती का परिसर [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

विद्यालय के मिड-डे मील की असलियत की पोल तब खुली जब एक रसोईया (विद्यालय में मिड-डे मील का खाना बनाने वाली महिला) ने द मूकनायक को पूरी बात बताई। नाम व पहचान उजागर न करने के निवेदन पर रसोईया ने बताया, "विद्यालय में बच्चों को पिलाने के लिए जो दूध आता है उसमें हमें ज्यादा पानी मिलाने के लिए विवश किया जाता है. जिस दिन बच्चों की उपस्थित 100 की होती है, उस दिन हमें 4 लीटर दूध में डेढ़ बाल्टी पानी मिलाना पड़ता है."

बच्चों को पिलाने के लिए लाए गए दूध में इतना ज्यादा पानी मिलाने के सवाल पर वह कहती हैं कि, "हेड मास्टर कहती हैं कि जो है उसी में काम चलाओ, हम अपने पास से थोड़े ही खर्च करेंगे।" वह कहती हैं कि, "हमारी मज़बूरी है कि हमें जो मिलता है उसी में बना कर देना पड़ता है. 4 किलो आलू और एक पाव सोयाबीन में 100 बच्चों को खिलाना पड़ता है. हमें समझ में नहीं आता कि कितना पानी डालें और कैसे उसे सभी बच्चों में बांटें।"

"स्कूल में राशन नहीं है इस वजह से बच्चों के लिए नियमित भोजन नहीं मिल रहा है," रसोईया ने बताया। 

उसी स्कूल की एक छात्रा ने बताया कि, "मैडम राशन नहीं लेकर आती हैं, और कहती हैं कि घर से खाना खाकर आओ."

"मात्र 200 रुपए के खर्च के डर से स्कूल में नहीं लाया जा रहा राशन"

संविलियन विद्यालय ओड़वारा II से उत्तीर्ण हो चुके एक छात्र ने द मूकनायक को बताया कि, "राशन कोटेदार के यहां पड़ा हुआ है. कोटेदार के यहां से राशन को लाने में लगभग 200 रुपए का किराया लगेगा, जिसका खर्च हेडमास्टर नहीं उठाना चाहती हैं. इसी कारण बच्चों को स्कूल में मिड-डे मील का खाना मिलना बंद हो चुका है."

Moma for Daughters – Kailash Chaudhary Foundation ने मामले को उठाया

ओड़वारा क्षेत्र स्थित सामाजिक संस्था "Moma for Daughters – Kailash Chaudhary Foundation", जो क्षेत्र के गरीब, दलित और असहाय बच्चों को निःशुल्क शिक्षा, और बच्चों की शिक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करता है, ने 30 अगस्त को एक वीडिओ के माध्यम से ओड़वारा के प्राइमरी स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील में भोजन न मिलने की जानकारी ट्वीटर पर साझा की थी. जिसमें कई बच्चों ने बताया था कि, उन्हें स्कूल के अध्यापकों द्वारा कहा जाता है कि घर से खाना खाकर आओ, क्योंकि स्कूल में राशन ख़त्म हो गया है.

सामाजिक संस्था Moma for Daughters की शुरुआत 27 जुलाई 2021 को उसकी फाउंडर गरिमा चौधरी ने की थी. जिनका उद्देश्य ग्रामीण अंचल के गरीब, दलित और असहाय बच्चों व बच्चियों को बेहतर और निःशुल्क शिक्षा के माध्यम से उनके व्यक्तित्व को निखारना है. वर्तमान में इस संस्था में कुल 36 बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती है. यहां इन बच्चों के पठन-पाठन की सारी सुविधाएं निःशुल्क उपलब्ध कराईं गईं हैं. 

गरिमा चौधरी बताती हैं कि, "मैं अपनी माँ कैलाश चौधरी की याद में, जो सबसे अधिक लड़कियों की शिक्षा और उनके सशक्तिकरण की पैरोकार थीं, जिन्हें हमने मदर्स डे 2021 पर कोविड के दूसरे लहर के दौरान खो दिया था, उन्हीं की याद में मैंने बेटियों के लिए Moma for Daughters – Kailash Chaudhary Foundation की स्थापना की। बस्ती में मेरे पैतृक गांव में स्थित हमारे फाउंडेशन का लक्ष्य, वंचित तबके के बच्चों की सहायता करना है। हमारे समर्थन के हिस्से के रूप में, हम स्कूली बच्चों को मुफ्त शिक्षा और अन्य आवश्यक सुविधाएं प्रदान करते हैं."

"मामले को दिखवाते हैं"

संविलियन विद्यालय ओड़वारा II की उक्त समस्याओं के बारे में द मूकनायक ने डॉ. इंद्रजीत प्रजापति, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी बस्ती से बात की. उन्होंने बताया, "मामले की जानकारी हमें भेजिए, हम इसे दिखवाते हैं."

एक बड़ा पेंच यह कि कोटेदार के यहां से मिड-डे मील का राशन स्कूल तक लाए कौन?

द मूकनायक टीम ने कोटेदार के यहां से मिड-डे मील का राशन स्कूल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी के बारे में और स्पष्ट जानकारी के लिए बस्ती जिले के रुधौली ब्लॉक स्थित प्राथमिक विद्यालय पचारी कला के हेडमास्टर हरीओम यादव से बात की. वह बताते हैं कि, "बच्चों के मिड-डे मील में बनने वाले भोजन का राशन किसी भी प्राथमिक स्कूल के स्थानीय कोटेदार के राशन की दुकान से सम्बंधित स्कूल में आता है. मिड-डे मील का राशन स्कूल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सही मायने में कोटेदार की होती है, लेकिन पूरे जिले में शायद कोई भी कोटेदार प्राथमिक स्कूल तक राशन नहीं पहुंचाता है. जिससे विवश होकर हेडमास्टर या स्कूल के इंचार्ज को ही अपने खर्चे पर खुद उस राशन को स्कूल में लाना पड़ता है."

ढाई साल बाद भी मिड-डे मील के बजट में कोई बढ़ोत्तरी नहीं, भोजन सामग्री के दाम दोगुना से ज्यादा

सरकार द्वारा 1 जुलाई, 2020 को मिड-डे मील पर खर्च किए जाने वाली लागत प्राथमिक स्तर पर 4.97 रुपये प्रति छात्र और उच्च प्राथमिक स्तर पर प्रति छात्र 7.45 रुपये कर दी गई। पिछले ढाई साल में मिड-डे मील बजट में एक पैसा भी नहीं बढ़ा, जबकि पिछले दो सालों में महंगाई दर में काफी बढ़ोतरी हुई है। मिड-डे मील में इस्तेमाल होने वाली चीजों की कीमत दो गुना से बढ़कर तीन गुना हो गई है। राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत, खाना पकाने की लागत का 60% केंद्र सरकार और 40% राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है।

पूरी वीडिओ रिपोर्ट यहां देखें-

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