राजस्थान: पांच हजार प्रबोधकों की पदोन्नति, लेकिन वेतन विसंगति व समान पद पर नियुक्ति का दर्द बरकरार

पदोन्नति के बाद वरिष्ठ प्रबोधकों को वरिष्ठ अध्यापक के समान पदों पर नहीं दिया जा रहा नियुक्ति। आरोप है कि पद व काम समान तो फिर प्रबोधकों से भेद क्यों कर रही सरकार। पदोन्नति के बाद प्रबोधकों को उच्च प्राथमिक स्कूलों में हेड मास्टर या फिर सेकेंड्री स्कूल में वरिष्ठ अध्यापक के पद नियुक्ति की मांग।
राजस्थान: पांच हजार प्रबोधकों की पदोन्नति, लेकिन वेतन विसंगति व समान पद पर नियुक्ति का दर्द बरकरार

जयपुर। राजस्थान में शिक्षा का दारोमदार संभालने में अहम भूमिका अदा कर रहे पांच हजार प्रबोधकों की पदोन्नति के प्रस्ताव को शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने मंजूरी दे दी है। बीते दिवस सोमवार को सचिवालय में आयोजित उच्चस्तरीय बैठक में यह निर्णय लिया गया। प्रदेश भर के प्रबोधक लंबे समय से पदोन्नति के साथ वेतन विसंगतियों को दूर करने की मांग कर रहे थे। अब शिक्षा विभाग पांच हजार प्रबोधकों की पदोन्नति के प्रस्ताव को वित्तीय स्वीकृति के लिए वित्त मंत्रालय के पास भेजेगा। इससे पूर्व भी गहलोत सरकार के समय 2021 में प्रबोधकों को वरिष्ठ प्रबोधक के रूप में पदोन्नति किया गया था।

पदोन्नति के बाद भी क्या है प्रबोधकों की पीड़ा

सरकार के प्रबोधक पदोन्नति के निर्णय का प्रबोधक संघ राजस्थान बीएमएस (भारतीय मजदूर संघ) ने स्वागत किया है, लेकिन अभी इनमें विभिन्न मांगो को लेकर पीड़ा है। प्रबोधकों की माने तो पदोन्नति के अलावा वेतन विसंगति व सेवा काल के समय को लेकर लंबित चल रही मांगो को लेकर उनकी पीड़ा बरकरार है। इन मांगो पर सरकार के ध्यान नहीं देने से वह निराश हैं। प्रबोधक संघ के महामंत्री संजय कौशिक ने सरकार से प्रबोधकों की सभी लंबित मांगो पर सकारात्मक निर्णय करने की मांगा की है।

सेवानिवृति पर नहीं मिलेगा पेंशन का पूरा लाभ

कौशिक ने बताया कि, सरकार के प्रबोधक पदोन्नति के निर्णय का हम स्वगत करते हैं, लेकिन हमारी पीड़ा पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है। 1984, 1992 व 1999 से शिक्षा कर्मी, लोक जुंबिश कर्मी, मदरसा पैराटीचर व पैराटीचर गांव व ढााणियों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार ने संविदा पदों पर शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करते हुए उन्हें 2008 में नियमित कर प्रबोधक बनाया था। सरकार ने नियमित करने के साथ उनकी सेवा की गणना 2008 से की है। जबकि वह लंबे अरसे से शिक्षा विभाग में सेवाएं दे रहे हैं। ऐसे में उनकी पिछली सेवा को भी प्रबोधक सेवा में जोड़ा जाए।

उन्होंने कहा कि, किसी भी प्रबोधक की सेवाएं यदि 2008 से जोड़ते हैं, तो राजकीय सेवा के 25 वर्ष पूरे नहीं होते हैं। जबकि सेवानिवृति के बाद पेंशन का संपूर्ण लाभ लेने के लिए 25 वर्ष का सेवा काल पूरा होना जरूरी है। यही कारण है कि सेवानिवृति के समय प्रबोधकों की पूरी पेंशन नहीं बन पा रही है। ऐसे में 95 प्रतिशत प्रबोधक पूरी पेंशन नहीं पा सकेंगे। केंद्र के समान पेंशन योग्य सेवा को 25 वर्ष से घटाकर 20 वर्ष किया जाए या 2008 से पूर्व की सेवाओं को प्रबोधक सेवा में जोड़ा जाए।

"2008 में  नियमित कर 25000 प्रबोधक बनाए गए थे। इनमें 10392 प्रबोधक बीएड, बीपीएड योग्यता धारी प्रबोधक वरिष्ठ प्रबोधक के पद पर पदोन्नति के पात्र माने गए। 14 जून, 2021 को तत्कालीन गहलोत सरकार ने 5000 वरिष्ठ प्रबोधक पदों पर पदोन्नति की थी। शेष पांच हजार पदों पर वर्तमान भाजपा सरकार ने पदोन्नति कर उनकी 6 वर्षों से लंबित मांग पूरी की है", उन्होंने कहा।

वरिष्ठ अध्यापक के समान पद पर दें नियुक्ति

कौशिक ने कहा कि शिक्षा कर्मी, लोक जुंबिश कर्मी, मदरसा पैराटीचर व पैराटीचर से प्रबोधक के पद पर नियमित कर पंचायत राज विभाग के अधीन दिया गया था। प्रबोधक को तृतीय श्रेणी अध्यापक के समान माना गया। पदोन्नति के बाद वरिष्ठ प्रबोधक को वरिष्ठ अध्यापक के समान माना जाना चाहिए, लेकिन सरकार पदोन्नति के बाद भी उन्हें तृतीय श्रेणी के समान मान रही है।

"प्रबोधकों को वरिष्ठ प्रबोधक पद पर पदोन्नति करने के बाद उच्च प्राथमिक स्कूलों में प्रधानाध्यापक के पदों पर नियुक्त करना था, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। हमारी मांग है कि पदोन्नति किए गए प्रबोधकों को सरकार उच्च प्राथमिक स्तर के विद्यालय में प्रधानाध्यापक के पद पर लगाए। या फिर उन्हें सेकेंड्री सेटअप में भेज कर विषयाध्यापक के पद पर लगाया जाए", कौशिक ने कहा।

मार्च 2023 में भी किया था आंदोलन 

प्रबोधक संघ राजस्थान बीएमएस (भारतीय मजदूर संघ) के नेतृत्व में प्रदेश के करीब 25 हजार प्रबोधकों ने पदोन्नति, पेंशन, पदनाम परिवर्तन और वेतन विसंगति जैसी मांगो को लेकर मार्च 2023 में जयपुर में आंदोलन कर प्रदर्शन किया था। हजारों प्रबोधक अपनी मांगो को लेकर सड़कों पर उतरे थे। हालांकि, विधानसभा का घेराव से पूर्व ही पुलिस ने प्रबोधकों को 22 गोदाम के पास रोक दिया था।

प्रबोधक फैयाज खान ने बताया कि प्रबोधक और शिक्षक की एक जैसी सेवाएं होने के बावजूद उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। लोक जुंबिश, पैरा टीचर, मदरसा पैरा टीचर और शिक्षा कर्मी के रूप में कार्यरत प्रदेश के 25000 बीएसटीसी, बीएड कर्मचारियों को 2008 में थर्ड ग्रेड टीचर के बराबर नियमित किया गया था।

प्रबोधक सुनिल शर्मा ने बताया कि, वेतन विसंगति भी उनकी एक प्रमुख मांग है। जिससे सभी प्रबोधक जूझ रहे हैं। हर प्रबोधक को प्रतिमाह 5000 से 8000 रुपए का नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की ओर से पूर्व में गठित सामंत कमेटी और खेमराज कमेटी को प्रबोधक संघ ने वार्ता के दौरान दस्तावेजों के माध्यम से समझाया था, लेकिन सरकार इन दोनों ही कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं कर रही है।

लोक जुंबिशकर्मी से प्रबोधक बने जुबैर अहमद ने बताया कि, पदोन्नति कर वरिष्ठ प्रबोधक बनाया गया। सरकार पद नाम परिवर्तन कर वरिष्ठ प्रबोधक को वरिष्ठ अध्यापक और प्रबोधक को अध्यापक पदनाम करें। ताकि 25 हजार प्रबंधकों को भविष्य में किसी तरह की समस्या न हो। प्रबोधक बनने से पूर्व सभी ने गांव-ढाणी तक जाकर 1992 से शिक्षा की अलख जगानी शुरू की थी। दुर्गम क्षेत्रों में भी जाकर बच्चों को पढ़ाया। इसके बावजूद 2008 से पहले की पुरानी सेवाओं को सरकार मानने को तैयार नहीं है। जबकि उन्होंने नियमित रूप से शिक्षा के क्षेत्र में अध्यापकों के समान ही काम किया है। प्रबोधक के साथ सौतेला व्यवहार होता है, सरकार पदोन्नति के बजाय डिमोशन दे रही है। 

प्रबोधक जफर अहमद ने कहा कि, प्रबोधक शिक्षक का पर्यायवाची शब्द है। जिस तरह शिक्षक छात्रों को ज्ञान देता है, समाज को शिक्षित करता है, उसी तरह प्रबोधक बोध कराने का काम करता है। चूंकि सरकार को 35 हजार लोगों को नियमित करना था, लेकिन केंद्र की गाइड लाइन की बाधा चलते नया नाम देते हुए वसुंधरा सरकार ने 2008 में पंचायती राज प्रबोधक सेवा अधिनियम 2008 को विधानसभा में लाकर 25 हजार बीएसटीसी बीएड योग्यताधारियों को नियमित किया था। हालांकि, शिक्षक और प्रबोधक दोनों ही समकक्ष पद है।

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