
जयपुर। राजस्थान के कोचिंग हब कोटा शहर में रहकर पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी असफलता के भय से या फिर मां बाप की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरने की वजह से अवसाद में आकर मौत को गले लगा रहे हैं। शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में आत्महत्या की बढ़ती संख्या अभिभावकों के साथ सरकार को भी चिंताग्रस्त कर रही है।
विधानभा क्षेत्र अटरू ( बारां ) विधायक पानाचंद मेघवाल के एक सवाल के जवाब में राजस्थान सरकार ने सदन के पटल पर बताया कि बीते 4 साल में कोचिंग हब कोटा में 52 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की है। सरकार ने आत्महत्या के कारणों की जानकारी भी सदन में दी है।
शिक्षण के दौरान सुसाइड के कारणों को कम करने के राज्य सरकार इसी विधानसभा सत्र में कोचिंग संस्थानों की मनमानी रोकने व व्यवहारिक माहौल में शिक्षा प्रदान करने के लिए नया बिल भी पेश करने वाली है।
2022 में सर्वाधिक 25 आत्महत्याएं
आपको बता दे कि अटरू विधायक पानाचंद मेघवाल ने राज्य सरकार से पूछा था कि 2019 से 2022 तक कोटा में स्टूडेंट्स की आत्महत्या के कितने मामले आए हैं। साथ ही आत्महत्या के कारणों की जानकारी भी मांगी थी। विधायक के सवाल के जवाब में सरकार ने सदन को बताया कि कोटा में बीते 3 सालों के मुकाबले 2022 में सर्वाधिक 25 विद्यार्थियों ने सुसाइड किया है। इनमे 15 कोचिंग स्टूडेंट्स, 2 स्कूल व 8 कॉलेज छात्र शामिल है। एक वर्ष में यह आंकड़ा चिंताजनक है।
इसी तरह राज्य सरकार ने 2019 में 8 कोचिंग स्टूडेंट्स, 1 स्कूल छात्र व 5 कॉलेज छात्रों के सुसाइड की जानकारी दी। सरकार के अनुसार 2020 में 4 कोचिंग स्टूडेंट्स, 2 स्कूल व 2 कॉलेज छात्रों ने सुसाइड किया। 2021 में कोचिंग स्टूडेंट्स के सुसाइड का आंकड़ा शून्य रहा जबकि 4 स्कूल छात्रों व 1 कॉलेज छात्र ने सुसाइड किया।
प्रेम प्रसंग को भी बताया सुसाइड का कारण
सरकार ने सदन में बताया कि विद्यार्थी कोचिंग में टेस्ट में पिछड़ने के कारण छात्रों में आत्मविश्वास की कमी होती है। माता-पिता की छात्रों से बहुत महत्वकांक्षा होती है, लेकिन छात्र मा बाप की अपेक्षा पर खरे नहीं उतरने से भी अवसाद में आकर यह कदम उठाते हैं। इसके अलावा भी लाखों की भीड़ में खुद को अव्वल रखने की होड़ में छात्रों में हमेशा शारीरिक / मानसिक, एवं पढ़ाई सम्बन्धित तनाव रहता है। आर्थिक तंगी, प्रेमप्रसंग व ब्लैकमेलिंग को भी सुसाइड के लिए राज्य सरकार ने मुख्य कारण माने हैं।
12 दिसम्बर को एक दिन में हुई 3 घटना
कोटा में 12 दिसम्बर 12 घण्टे में 3 सुसाइड के केस सामने आए। यह हर किसी के लिए चिंताजनक था। अगर दिसम्बर महीने के 10 दिन की बात करें तो 4 छात्रों ने सुसाइड किया है। कोटा के साथ बारा, झालावाड़ व बूंदी जिले को शामिल किया जाए तो छात्रों के सुसाइड का आंकड़ा और अधिक हो जाता है।
तनाव कम करने के भी कर रहे उपाय
मीडिया रिपोर्टस की माने तो कोटा के कोचिंग संस्थानों में छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के तनाव और चिंता से बाहर निकालने में मदद के लिए योग सत्रों, जुम्बा क्लासेस से लेकर परामर्शदाताओं की एक टीम को तैनात किया गया है। इसके अलावा 24 घंटे सातों दिन कार्यरत हेल्पलाइन की व्यवस्था की गई है। कोटा के एक प्रमुख कोचिंग संस्थान में विभिन्न मेडिकल और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में फिलहाल 2 लाख से अधिक छात्र कोचिंग हासिल कर रहे है। संस्था छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए नियमित योग सत्र व जुम्बा क्लासों के अलावा “तुम होगे कामयाब” और “विंग्स ऑफ विजडम” जैसे विशेष कार्यक्रम चला रही है।
1983 के बाद कोटा बना कोचिंग हब
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कोटा में 1983 के बाद कोचिंग इंडस्ट्री की शुरुआत हुई थी। समय और अनुभव के साथ बड़ी होती कोचिंग इंडस्ट्री आज 4000 करोड़ का टर्नओवर हासिल करती है। कोटा की इकोनॉमी हर साल बूस्ट होती जा रही है।
ध्यान रहे कि कोटा में अपने सपनों को पूरा करने के लिए इस साल 2 लाख विद्यार्थी के यहां अलग अलग कोचिंग संस्थानों में प्रवेश लेने का अनुमान है। देश के कोने-कोने से लाखों रुपये खर्च कर यहां विद्यार्थी आते हैं। मा बाप को भी इनसे कामयाबी की अपेक्षा होती है, लेकिन भीड़ में खुद को स्टैंड रख पाने में असफल विद्यार्थी अवसाद में आकर मौत को गले लगा लेते हैं। राजस्थान सरकार ने निजी कोचिंग संस्थानों की मनमानी पर अंकुश लगाने व छात्रों में पढ़ाई के तनाव को कम करने के लिए प्रदेश में राजस्थान निजी शिक्षण संस्थान विनियामक प्राधिकरण विधेयक 2022 लागू करने की तैयारी में है।
अवसाद में तब्दील होते सपने
राजस्थान का कोटा शहर इंजीनियरिंग और मेडिकल क्षेत्र में करियर का सपना देखने वाले स्टूडेंट्स के लिए पहली पसंद है। लेकिन छात्र छात्राएं अवसाद में आकर आत्महत्या करने वाले स्टूडेंट्स की वजह से सुसाइड पॉइंट के रूप में चर्चा में है। यह भी सच है कि कोचिंग संचालक प्रशासन व स्थानीय मनोचिकित्सको के साथ मोटिवेशनल कार्यक्रमो तथा हेल्प डेस्क के माध्यम से स्टूडेंट्स की हौसला अफजाई करते रहते हैं। कोटा शहर के मनोरोग विशेषज्ञ एवं स्टूडेंट्स के लिए काम कर रही मोटिवेशनल समिति के प्रमुख डॉ. एम.एल. अग्रवाल से द मूकनायक ने बात की तो स्टूडेंट्स सुसाइड के कई चोंकाने वाले कारणों के साथ ही इस तरह की घटनाओं को रोकने के महत्वपूर्ण सुझाव भी निकल कर सामने आए।
आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास की जरूरत
डॉ. एम.एल. अग्रवाल ने द मूकनायक से बात करते हुए सुसाइड रोकने में अभिभावकों के साथ ही स्टूडेंट्स के डवलपमेंटल कोपिंग स्किल , बायोलॉजिकल कारण, होस्टल्स के लिविंग कंडीशन व मीडिया आदि का भी अहम रोल बताया है। डॉ. अग्रवाल आगे कहते हैं कि नेशनल एवरेज एक लाख मौत पर 12 सुसाइड केस होते हैं। वर्तमान में कोटा में दो लाख स्टूडेंट्स है। बायोलॉजिकल व साइकेट्रिक कारणों की वजह से भी ऐसी दुर्घटनाएं होती है जो दुखद है।
उन्होंने कहा कि इसके लिए हम एक टीम के साथ पिछले 12 साल से कार्य कर रहे हैं, कि किस तरह हम इन्हें रोक सके।
डॉ. अग्रवाल ने कहा मजब सुसाइड की घटनाएं होती है तो हम चर्चा कर लेते हैं, बाद में फिर भूल जाते हैं। इसमें निरंतर प्रयास की जरूरत है। उन्होंने कहा कि फेकल्टी भी बदलती है, छात्र भी बदल जाते हैं। हमारी जो हेल्प लाइन नम्बर है उनका डिस्प्ले भी बार बार होना चाहिए।
हेल्पलाइन सुलझाए उलझन
डॉ अग्रवाल ने बताया कि हमने हमारी हेल्पलाइन के माध्यम से अब तक 11 हजार बच्चों से अधिक की मदद कर उनमें आत्मविश्वास का संचार किया है।। इनमे 200 बच्चे ऐसे है जिन्हें हमने सुसाइड पॉइंट से पिकप किया। जब इनकी काउंसलिंग की गई तो कई विचित्र कारण सामने आए। एक मामला प्रेम प्रसंग का था। समझाईश कर उस लड़के को सुसाइड से बचाया। इसी तरह दो लड़के भटिंडा के थे। सुसाइड करने वाले थे । डॉ अग्रवाल ने बताया कि जब हमारी टीम ने इनसे कई घण्टे बात की तो उन बच्चों ने बताया कि उनके अभिभावकों ने कहा है कि नीट क्लियर नहीं हो तो घर मत आना। सितंबर चल रहा है। कैसे होगा। इस पर उनकी होंसला अफजाई कर उन्हें बेस्ट करने के लिए मोटिवेट किया। जान भी बची सफल भी हुए।
अभीभावकों की बढ़ती अपेक्षाएं भी मुख्य कारण
डॉ. अग्रवाल ने द मूकनायक से बात करते हुए आगे कहा कि आत्महत्या के कारण एक दिन में पैदा नहीं हो जाते हैं। हम आजकल न्यूक्लियर फेमिली सिस्टम में है। परिवार में एक या दो बच्चे होते हैं, फिर उनकी हर डिमांड पूरी करते हैं। कभी उनसे ना नहीं कहते हैं। जब कभी ना कहते हैं तो ऐसे में वे चिड़चिड़े हो जाते हैं। हमें बचपन से उनमें स्किल डवलप करना चाहिए। उनकी डिमांड को भी नकारे। फेलियर फेस करते हुए सक्सेज के लिए कैसे जाएं। इसके लिए भी बच्चों को तैयार करना अभिभावक की जिम्मेदारी है।
उन्होंने कहा कि पेरेंट्स यहां छोड़ने आते हैं। यह नहीं देखते कि बच्चे की रूचि व अभिरूचि क्या है ? उसकी मर्जी के बिना उसे सब्जेक्ट सलेक्शन करवा देते हैं। यहां बात घर वालो के ऐसे अनर्गल प्रेशर की है। पहले बिना सोचे समझे उन्हें सब्जेक्ट दिलाया फिर उनसे बेहतर परफॉर्मेंस की अपेक्षा करना भी सुसाइड की तरफ ले जाता है।
परिवार से बच्चों को अलग रहना सिखाएं अभिभावक
पेरेंट्स बच्चे को कोटा छोड़ कर चले जाते हैं। लेकिन कई बार ऐसे बच्चे जो कभी परिवार से अलग नहीं रहे हैं, अकेलेपन को झेल नहीं पाते हों। इन बच्चों की कोपिंग स्किल्स कमजोर होने से वे नए माहौल में स्वयं को ढाल नही पाते हैं। अकेले रहकर पढ़ने और खाने पीने की व्यवस्था उन्हें मुश्किल लगती हैं। इन सब के ऊपर पढ़ाई की फिक्र और बेस्ट करने की महत्वाकांक्षा। जानकर कहते हैं कि कुछ बच्चे तो सेटल हो जाते हैं, लेकिन कुछ पेरेंट्स ही बच्चों को सेटल नहीं होने देते। बार बार मिलने आते और फोन करके बच्चे को डिस्टर्ब करते हैं तो वो सेटल नहीं हो पाता। मनोविज्ञानियों के अनुसार 15 से 28 वर्ष की यह उम्र का ऐसा पड़ाव होता है इसी समय बॉडी में साइक्लोजिकल व हार्मोन्स में चेंजेज आते हैं। पेरेंट्स इस बदलाव के लिए बच्चों को कोई शिक्षा नहीं देते हैं। इससे भी वह डिप्रेशन एंजाइटी में आ जाते हैं। उन्हें यहां व्यवहारिक शिक्षा की आवश्यकता होती है। यही महत्वपूर्ण समय होता है जब बच्चे को यहां आकर अकेले फेस करना होता है। अपना कैरियर भी बनाना होता है। मानसिक डिप्रेशन की बीमारी भी इसी समय पनपती है। मानसिक रोग की 75 प्रतिशत बीमारियां 15 से 28 साल की उम्र में ही होती है।
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