छात्रों की बड़ी जीत: Bombay हाईकोर्ट की फटकार के बाद MGAHV ने छात्रों का निष्कासन-निलंबन लिया वापस

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, जो शिक्षा, शोध और सामाजिक न्याय के मूल उद्देश्यों के साथ स्थापित किया गया था, आज उन मूल्यों से भटकता प्रतीत हो रहा है।
वर्ष 2024 में पाँच छात्रों के अवैध निष्कासन ने विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर विवादों के केंद्र में ला खड़ा किया था। (राजेश कुमार यादव और रामचंद्र)
वर्ष 2024 में पाँच छात्रों के अवैध निष्कासन ने विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर विवादों के केंद्र में ला खड़ा किया था। (राजेश कुमार यादव और रामचंद्र)द मूकनायक
Published on

वर्धा- महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय (एमजीएएचयू), वर्धा में प्रशासनिक भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले छात्रों को पिछले दो वर्षों से झेलना पड़ रहा अवैध निष्कासन एवं निलंबन का मामला अब बॉम्बे उच्च न्यायालय, नागपुर खंडपीठ के हस्तक्षेप के बाद समाप्त हो गया है। यह छात्र आंदोलन की एक बड़ी जीत मानी जा रही है। उच्च न्यायालय के निर्देश पर विश्वविद्यालय प्रशासन को छात्रों का निष्कासन और निलंबन वापस लेना पड़ा, जिसे प्रभावित छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण न्यायिक राहत के रूप में देखा जा रहा है।

वर्धा स्थित इस केंद्रीय विश्वविद्यालय में पिछले कुछ वर्षों से प्रशासनिक अव्यवस्थाओं, भ्रष्टाचार और छात्र उत्पीड़न से जुड़े गंभीर आरोप लगातार सामने आते रहे हैं। वर्ष 2024 में पाँच छात्रों के अवैध निष्कासन ने विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर विवादों के केंद्र में ला खड़ा किया था। यह मामला केवल प्रशासनिक विफलता तक सीमित नहीं रहा, बल्कि दलित-बहुजन छात्रों के साथ संस्थागत भेदभाव की गंभीर आशंकाओं को भी उजागर करता है।

वर्ष 2024 में पाँच छात्रों के अवैध निष्कासन ने विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर विवादों के केंद्र में ला खड़ा किया था। (राजेश कुमार यादव और रामचंद्र)
वर्धा विश्वविद्यालय में दलित-बहुजन शोधार्थियों के शोषण का आरोप, आठ माह से न्याय की आस में भटक रहे छात्र

दिनांक 27 जनवरी 2024 को विश्वविद्यालय प्रशासन ने डॉ. रजनीश कुमार आंबेडकर (डिप्लोमा), रामचंद्र (शोधार्थी), राजेश कुमार यादव (शोधार्थी), निरंजन कुमार (शोधार्थी) एवं विवेक मिश्रा (स्नातक छात्र) को बिना किसी औपचारिक जांच प्रक्रिया और बिना उनका पक्ष सुने अवैध रूप से निष्कासित/निलंबित कर दिया। यह कार्रवाई गणतंत्र दिवस समारोह के उपरांत तत्कालीन कार्यवाहक कुलपति भीमराव मैत्री के अभिभाषण के दौरान उनकी कथित अवैध नियुक्ति के विरोध में हुए छात्र प्रदर्शन और उससे संबंधित रिपोर्टिंग को सोशल मीडिया पर साझा किए जाने के आधार पर की गई। महज़ कुछ घंटों में लिया गया यह निर्णय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन था।

उसी प्रकरण में उच्च न्यायालय ने प्रो. कारुण्यकारा की याचिका पर सुनवाई करते हुए तत्कालीन कार्यवाहक कुलपति भीमराव मैत्री की नियुक्ति को अवैध करार दिया और उनकी नियुक्ति रद्द कर दी।

इस अवैध निष्कासन और निलंबन के खिलाफ छात्र निरंजन कुमार एवं विवेक मिश्रा ने तत्काल बॉम्बे उच्च न्यायालय, नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर की, जिससे उन्हें राहत प्राप्त हुई। हालांकि, इसी प्रकरण में शामिल अन्य दो छात्र, राजेश कुमार यादव और रामचंद्र, समान परिस्थितियों में भी किसी प्रकार की राहत प्राप्त नहीं कर सके। इन छात्रों ने राष्ट्रपति कार्यालय से लेकर शिक्षा मंत्रालय तक और अन्य संबंधित विभागों को लिखित शिकायतें भेजकर न्याय की गुहार लगाई, लेकिन कई महीनों तक किसी प्रभावी कार्रवाई की प्रतीक्षा रही।

आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण तत्काल न्यायालय न जा पाने वाले राजेश कुमार यादव और रामचंद्र ने अंततः नवंबर 2024 में अधिवक्ता निहाल सिंह राठौर के माध्यम से उच्च न्यायालय, नागपुर में याचिका दायर की। इस प्रकरण की सुनवाई लगभग एक वर्ष तक चली। शुक्रवार, 19 दिसंबर 2025 को माननीय उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय प्रशासन को कड़ी फटकार लगाते हुए स्पष्ट किया कि यदि अवैध निष्कासन और निलंबन वापस नहीं लिया गया, तो न्यायालय औपचारिक आदेश पारित करेगा। इसके पश्चात सोमवार को हुई सुनवाई में विश्वविद्यालय प्रशासन ने दोनों छात्रों का निष्कासन एवं निलंबन वापस लेने का शपथ पत्र दाखिल किया, और 22 दिसंबर 2025 को शपथ पत्र के आधार पर उच्च न्यायालय ने आदेश जारी कर दिया।

यह मामला विश्वविद्यालय में पहले से चल रहे विवादों की कड़ी का हिस्सा है। वर्ष 2023 में तत्कालीन कुलपति रजनीश शुक्ल पर महिला उत्पीड़न और शिक्षक नियुक्तियों में गंभीर अनियमितताओं के आरोप लगे, जिसके कारण उन्हें कार्यकाल पूरा करने से पहले ही पद छोड़ना पड़ा। इसके पश्चात भीमराव मैत्री को अवैध रूप से कार्यवाहक कुलपति नियुक्त किया गया, जिसके विरुद्ध वरिष्ठ दलित प्रोफेसर लैला कारुण्यकारा ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसमें भीमराव मैत्री की नियुक्ति अवैध ठहराई गई। इस याचिका के प्रत्युत्तर में विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रो. कारुण्यकारा पर कथित मिथ्या आरोप लगाकर उन्हें निलंबित कर दिया, जो पिछले लगभग दो वर्षों से निलंबित हैं। यह स्थिति प्रशासन की आलोचना और न्यायिक समीक्षा के प्रति असहिष्णु रवैये को दर्शाती है।

वर्ष 2024 में पाँच छात्रों के अवैध निष्कासन ने विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर विवादों के केंद्र में ला खड़ा किया था। (राजेश कुमार यादव और रामचंद्र)
वर्धा यूनिवर्सिटी में 10 दलित-ओबीसी छात्र हॉस्टल से निष्कासित: कसूर - JNUSU में वाम जीत का जश्न मनाकर लगाये थे 'सॉरी सॉरी सावरकर' और मोदी विरोधी नारे!

विश्वविद्यालय में प्रशासनिक अनियमितताओं का इतिहास लंबा रहा है। बिना सुनवाई छात्रों का निष्कासन, असहमति की आवाज़ को दबाने हेतु प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन, पूर्व कुलपति रजनीश शुक्ल पर महिला शिक्षिका के साथ नौकरी के नाम पर यौन शोषण तथा शिक्षक नियुक्तियों में धांधली के आरोप, पूर्व कुलसचिव धर्वेश कठेरिया पर वित्तीय अनियमितताओं के गंभीर आरोपों के बावजूद ठोस कार्रवाई का अभाव, और पीएचडी प्रवेश प्रक्रियाओं में लगातार विलंब—ये सभी तथ्य संस्थागत पतन की ओर संकेत करते हैं। वर्ष 2022 की पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद परिणाम घोषित नहीं किए गए हैं, जिससे 50 से अधिक छात्रों का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है। जबकि 2023, 2024 और 2025 की प्रवेश प्रक्रिया प्रारंभ ही नहीं की गई।

निष्कासित छात्र राजेश कुमार यादव का कहना है कि यह मामला केवल निष्कासन तक सीमित नहीं है, बल्कि दलित-बहुजन छात्रों की आवाज़ को व्यवस्थित रूप से दबाने की साजिश का हिस्सा है। उनका कहना है कि उच्च न्यायालय द्वारा निष्कासन और निलंबन को अवैध ठहराया जाना इस बात का प्रमाण है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया। दो वर्षों तक झेले गए मानसिक, सामाजिक और शैक्षणिक दुष्प्रभावों की भरपाई संभव नहीं है। फिर भी इस अन्याय के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा। वे मांग करते हैं कि वर्ष 2019 से 2023 के बीच हुई 50 से अधिक शिक्षक नियुक्तियों में धांधलीपूर्ण नियुक्ति के आरोप लगे थे, उन सभी नियुक्तियों की स्वतंत्र समिति, रिटायर्ड जज की निगरानी में, तय समय सीमा के भीतर जांच करे और रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए। इसके अलावा, दोषियों पर विधिक कार्रवाई की जाए और तत्कालीन कार्यकारी कुलसचिव कादर नवाज़ की भूमिका की भी जांच हो।

शोधार्थी रामचंद्र का कहना है कि विश्वविद्यालय अब प्रशासनिक भ्रष्टाचार और तानाशाही का गढ़ बन चुका है। अकादमिक गतिविधियाँ गंभीर रूप से प्रभावित हैं और छात्र-शिक्षक दोनों असंतोष में हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन की तानाशाही से हम डरने वाले नहीं हैं। हम कैम्पस में लोकतांत्रिक स्पेस के निर्माण और छात्रहितों की लड़ाई मजबूती के साथ जारी रखेंगे।

वर्ष 2024 में पाँच छात्रों के अवैध निष्कासन ने विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर विवादों के केंद्र में ला खड़ा किया था। (राजेश कुमार यादव और रामचंद्र)
जामिया में विवाद: मुस्लिम अत्याचार पर सवाल पूछने वाले दलित प्रोफेसर के सस्पेंशन से छात्र उखड़े, सिग्नेचर कैंपेन चलाएंगे!
वर्ष 2024 में पाँच छात्रों के अवैध निष्कासन ने विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर विवादों के केंद्र में ला खड़ा किया था। (राजेश कुमार यादव और रामचंद्र)
राजस्थान में महिलाओं पर नया ताला: 15 गांवों में स्मार्टफोन प्रतिबंध, सेहत के नाम पर स्वतंत्रता पर हमला | जानिये पूरा मामला

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com