उत्तर प्रदेश: लखनऊ केजीएमयू में एक बार भी नहीं बना दलित-आदिवासी कुलपति!

कर्मचारी एसोसिएशन ने पीएम को लिखा पत्र, सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की अपील
उत्तर प्रदेश: लखनऊ केजीएमयू में एक बार भी नहीं बना दलित-आदिवासी कुलपति!

लखनऊ। यूपी की राजधानी में मौजूद केजीएमयू (किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय) को 2002 में चिकित्सा विश्विद्यालय घोषित करने के बाद से आज तक किसी भी दलित वर्ग के चिकित्सक को कुलपति नहीं नियुक्त किया गया। इसे लेकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति चिकित्सा शिक्षक एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में अगले कुलपति के रूप में किसी दलित- पिछड़े वर्ग के प्रोफेसर को नियुक्त करने की मांग की है।

जानिए क्या है पूरा मामला?

यूपी की राजधानी लखनऊ में शुक्रवार को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति चिकित्सा शिक्षक एसोसिएशन की तरफ से प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि दलितों के साथ लगातार अन्याय हो रहा है। एसोसिएशन द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है कि किंग जार्ज मेडिकल कालेज की स्थापना सन् 1905 में हुई। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सन् 2002 में इसे उच्चीकृत करते हुए किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया।

एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने लिखा, "अत्यंत कष्ट के साथ सूचित करना है कि भारत की स्वतंत्रता के पहले और स्वतंत्रता के बाद अब तक इस संस्थान के सभी प्रधानाचार्य और कुलपति सामान्य वर्ग से नियुक्त किए गए, किंतु दलित-पिछड़े वर्ग के किसी प्रोफेसर को संस्थान का मुखिया नियुक्त नहीं करके वंचित वर्ग के साथ अन्याय किया गया। विश्वविद्यालय बनने के बाद नियुक्त ग्यारह कुलपतियों में से कोई भी कुलपति दलित-पिछड़े वर्ग से नियुक्त नहीं किया गया, जबकि प्रतिनिधित्व के अनुसार कम से कम पांच कुलपति होने चाहिए थे। केंद्र और राज्य सरकार की सभी चयन समितियों में एवं पदों पर दलितों और पिछड़ों का प्रतिनिधित्व होता है, परन्तु कुलपति की नियुक्ति में उनके समाज का प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण वंचित वर्ग के लोग हाशिए पर रख दिए जाते हैं। पत्र में यह भी अपील की गई है कि किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ के अगले कुलपति के रूप में किसी दलित-पिछड़े वर्ग के प्रोफेसर को नियुक्त के लिए निर्देश जारी किया जाए।"

पुरानी पेंशन की मांग को लेकर धरने पर बैठेंगे फार्मासिस्ट

पुरानी पेंशन बहाली, राष्ट्रीय वेतन आयोग, ठेकेदारी प्रथा को बंद करने की मांग को लेकर 30 जुलाई को फर्मासिस्ट धरने पर बैठेंगे। इस धरने में सभी विधाओं और अलग-अलग संस्थानों के फार्मेसिस्ट बड़ी संख्या में भागीदारी करेंगे। यह धरना दिल्ली के जंतर-मंतर पर होगा।

फार्मासिस्ट फेडरेशन के अध्यक्ष सुनील यादव और महामंत्री अशोक कुमार ने सभी विधाओं के फार्मेसिस्ट संघों से भागीदारी करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग में 6000 से अधिक फार्मेसिस्टों को पुरानी पेंशन योजना नहीं मिल पाई है, जबकि इनकी नियुक्ति अगर समय से हुई होती तो यह 2005 के पूर्व ही सेवा में होते। बैच वाइज नियुक्ति के अनुसार अभी तक केवल 2002 तक के फार्मेसिस्टो की नियुक्ति हुई है। उच्च न्यायालय द्वारा भी अपने आदेश में कहा गया है कि नवनियुक्त फार्मेसिस्टों को पूर्व की भांति सभी लाभ दिए जाएं, इसलिए पुरानी पेंशन की मांग को लेकर फार्मेसिस्ट एकजुट है।

वहीं प्रदेश में कई हजार फार्मेसिस्ट राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना एवं अन्य योजनाओं में संविदा पर कार्य कर रहे हैं, जिन्हें उचित वेतन नहीं मिल रहा है, उनके स्थाईकरण की कोई योजना नहीं है और ना ही उन्हें नौकरियों में कोई अतिरिक्त लाभ दिया जा रहा है। फार्मासिस्ट बहुत परेशान है। अनेक विभागों में पद रिक्त हैं श्रम विभाग, समाज कल्याण विभाग, कारागार, बैटनरी, होम्योपैथ, आयुर्वेद में कई हजार पद रिक्त बने हुए हैं।

उपाध्यक्ष राजेश सिंह ने बताया कि सभी जनपदों के पदाधिकारियों से दूरभाष पर समीक्षा भी की गई है। जनपदों के पदाधिकारियों ने बताया कि 30 के धरने को पूर्णरूपेण सफल बनाया जाएगा। पुरानी पेंशन बहाली वर्तमान समय में कर्मचारियों की सबसे प्रमुख मांग है, वही निजीकरण, संविदा और ठेकेदारी प्रथा कर्मचारियों के भविष्य के लिए अत्यंत घातक है, देश के युवाओं को ठेकेदारी प्रथा में धकेला जा रहा है जिससे देश का युवा वर्ग अत्यंत निराश है।

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