ग्राउंड रिपोर्ट: विद्यालय भवन जर्जर, बच्चों की जान को खतरा

सवाईमाधोपुर जिले की पंचायत समिति मलारना डूंगर की ग्राम पंचायत शेषा स्थित राजकीय विद्यालय [फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक]
सवाईमाधोपुर जिले की पंचायत समिति मलारना डूंगर की ग्राम पंचायत शेषा स्थित राजकीय विद्यालय [फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक]
Published on

सवाईमाधोपुर जिले की पंचायत समिति मलारना डूंगर (Malarna Dungar) की ग्राम पंचायत शेषा स्थित राजकीय विद्यालय की व्यवस्थाओं के हाल बदहाल

जयपुर। राजस्थान में कोटा, उदयपुर, अजमेर व जयपुर जैसे बड़े शहरों को शिक्षा की नगरी के नाम से पहचान मिली है। इन शहरों में दूसरे राज्यों के अलावा विदेश के छात्र भी पढ़ने आते है। इसके विपरीत बड़े शहरों से दूर गांवों में शिक्षा व्यवस्था बदहाल स्थिति में है। ऐसा ही एक स्कूल सवाईमाधोपुर जिले (Sawai Madhopur District) की पंचायत समिति मलारना डूंगर की ग्राम पंचायत शेषा में है। द मूकनायक की टीम ने मौके पर पहुंचकर स्कूल के हालात जाने। स्कूल भवन में कक्षा कक्षों की पट्टियां टूटी हैं। छत नहीं गिरे इसलिए लकड़ी का सहारा दिया गया है। स्कूल भवन के सभी कमरे क्षतिग्रस्त हैं। भवन कभी भी भरभरा कर गिर सकता है। इसके बावजूद यहां बच्चों को बैठा कर पढ़ाया जा रहा है। यहां बच्चों के चेहरों पर डर साफ दिखा, वहीं स्कूल प्रबंधन लापरवाह नजर आया।

विद्यालय छत की में दरारें [फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक]
विद्यालय छत की में दरारें [फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक]

यह है सरकारी विद्यालय के हालात

जयपुर शहर से लगभग 130 किलोमीटर दूर सवाईमाधोपुर जिले का राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय (Government Higher Secondary School) अल्पसंख्यक व आदिवासी आबादी वाले शेषा गांव के बीच स्थित एक ऊंचे टीले पर बना है। गांव के लोग बताते है कि सैकड़ों साल पहले यह स्कूल भवन बना था। अब यह भवन दरकने लगा है। एक हॉल की पट्टियां टूट गईं। स्कूल प्रबंधन ने छत को रोकने के लिए लकड़ी की बल्ली ( बैसाखी ) लगा दी। खास बात यह कि अब इस हॉल को विद्यार्थियों की जगह स्कूल के ऑफिस व भंडारण के उपयोग में लिया जा रहा है। स्कूल के कई कार्मिक इसी भवन में बैठ कर काम करते हैं।

कक्षा 8, 9, 10, 11 व 12 के लिए आरक्षित सभी कक्ष कक्षों की दीवारें दरक रही हैं। दीवारों से प्लास्तर उधड़ने लगा है। छत की पट्टियों में भी बड़े गेप है। भवन कभी भी ढह सकता है। इस बात को शिक्षा अधिकारी भी स्वीकारते है। ऐसे में भवन गिरने से जनहानि हुई तो जिम्मेदार कौन होगा।

बरामदे में बैठकर पढ़ते छात्र [फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक]
बरामदे में बैठकर पढ़ते छात्र [फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक]

बरामदे में एक साथ दो क्लास

द मूकनायक की टीम राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय शेषा पहुंची तो एक तरफ बरामदे में दो कक्षाओं के बच्चे पढ़ते दिखे। यहां पढा रहे शिक्षकों की आवाज एक दूसरे से टकरा रही थी। इससे छात्र कन्फ्यूज होते दिखाई दिए। बरामदे में बैठ कर पढ़ रहे कक्षा 12वीं के छात्र शोहेल खान ने द मूकनायक को बताया कि, कक्षा पूरी क्षतिग्रस्त है। दीवारों में दरारें आ रही हैं। कमरे में उमस व गर्मी भी रहती है। यह भवन कभी भी गिर सकता है। इस लिए बाहर बैठ कर पढ़ते है। कक्षा 10 की छात्रा आशा मीना बताती है कि, "कमरे में पढ़ते तो है, लेकिन डर लगता है।"

स्कूल के प्रधानाचार्य फजरुद्दीन खान से द मूकनायक ने क्षतिग्रस्त भवन में शिक्षा को लेकर बात की तो पहले तो उन्होंने भवन की मरम्मत करने के लिए मजदूर नहीं आने की बात कही। बाद में बरसात के मौसम में मरम्मत नहीं होने की बात कहने लगे। उन्होंने माना कि, स्कूल भवन की सभी कक्षा कक्षों की दीवारें क्षतिग्रस्त हैं। छत टपकती है। इस लिए बरामदे में बैठा कर पढ़ाते हैं। उन्होंने कहा कि, इस संबंध में उच्च अधिकारियों को पत्र भी लिखा, लेकिन मरम्मत के लिए बजट नहीं मिला।

छतिग्रस्त हालत में विद्यालय की छत [फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक]
छतिग्रस्त हालत में विद्यालय की छत [फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक]

1932 से संचालित है भवन

पंचायत समिति मलारना डूंगर के उपप्रधान फजलुद्दीन ने द मूकनायक को बताया कि शेषा गांव में अल्पसंख्यक व आदिवासी समुदाय के लोग निवास करते है। गांव में 1932 में राजकीय प्राथमिक विद्यालय खुला था। इसके बाद 1976 उच्च प्राथमिक में क्रमोन्नत हुआ। 1999 में उच्च प्राथमिक से माध्यमिक व 2011 में माध्यमिक से उच्च माध्यमिक विद्यालय में क्रमोन्नत हुआ है, भवन जर्जर है।

अधिकारी बोले बदहाली के लिए गांव वाले जिम्मेदार

इस संबंध में द मूकनायक ने जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक नाथूलाल खटीक से बात की, "विद्यालय की बदहाली के लिए गांव के लोग जिम्मेदार है। गांव की आबादी से दूर स्कूल की अपनी भूमि है। 3 वर्ष पूर्व राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय भवन निर्माण के लिए लगभग 30 लाख रुपए से अधिक की राशि स्वीकृत हुई थी। भवन तक जाने के लिए गांव वालों ने रास्ता नहीं दिया तो भवन निर्माण के लिए आई राशि लैप्स हो गई। अभी मुख्यमंत्री जन सहभागिता योजना के तहत स्कूल का नया भवन बन सकता है यदि स्कूल भूमि तक जाने के लिए ग्रामीण रास्ता उपलब्ध करवा दें।"

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com