बिहारः विश्वविद्यालयों में 'लेटलतीफ' सेशन, अधर में छात्रों का भविष्य!

बिहार के विश्वविद्यालयों में सेशन लेट की परंपरा जो सालों पहले से शुरू हुई वो खत्म होने का नाम नहीं ले रही। यहां 3 वर्ष के ग्रेजुएश की पढ़ाई के लिए छात्रों को 5 से 6 वर्ष का समय देना पड़ता है। इसके चलते हाशिए के समाजों से आने वाले छात्रों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
मगध विश्वविद्यालय।
मगध विश्वविद्यालय।The Mooknayak

पटना। "मैंने वर्ष 2019 में बीएससी मैथ (ऑनर्स) में एडमिशन लिया था। 4 साल गुजर जाने के बाद भी अभी तक ग्रेजुएशन नहीं हो पाया है, थर्ड ईयर की परीक्षाएं अभी भी शेष है, ग्रेजुएशन पूरा होने में अभी दो साल और लग जाएंगे।"

बिहार के रौशन कुमार मगध विश्वविद्यालय के छात्र है। OBC समाज से आने के कारण उनके सामने पहले ही तमाम सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां है। सेशन लेट होने से उनका पढ़ाई पूरा करने का सपना भी टूटता नजर आ रहा है।

"रौशन ने आगे बताया- गया से बाहर जा नहीं सकते थे। परिवार में पढ़ाई का माहौल है नहीं, न ही ज्यादा आर्थिक संसाधन है। इसलिए यही एडमिशन ले लिए थे। किराए पर रूम लेकर पढ़ाई कर रहे थे। सोचे थे साथ में सरकारी नौकरी का तैयारी करेंगे। लेकिन सेशन लेट होने की वजह से घर वालों से दबाव बढ़ता जा रहा की वापस गांव चला जाऊं। रौशन ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद बीएड कर शिक्षक बनना चाहते है।"

मगध विश्वविद्यालय के छात्र रौशन कुमार।
मगध विश्वविद्यालय के छात्र रौशन कुमार।The Mooknayak

मगध यूनिवर्सिटी के ही एक और छात्र आकाश बताते है- "हम तो फंस चुके है यहां एडमिशन लेकर, अब तो हमारे पास यहां से निकलने का भी ऑप्शन नहीं है। आकाश की आवाज ने बेबसी साफ दिख रही थी। वह आगे बताते है। उन्हे एग्जाम करवाने से लेकर एग्जाम परिणाम जारी करवाने के लिएं हर एक चीज के लिए उन जैसे छात्रों को सड़कों पर निकलना पड़ता है, प्रदर्शन करने पड़ते है।"

लेट सेशन को लेकर प्रदर्शन करते छात्र।
लेट सेशन को लेकर प्रदर्शन करते छात्र।The Mooknayak

आकाश आगे बोलते है यहां तो सरकार भी स्थिर नहीं रहती। इस साल विपक्ष मंे जो होता वो अगले साल सरकार में होता, जब तक विपक्ष में होते तब तक हमारी बात सुनते है, सरकार के जाते ही सब एक जैसे ही बन जाते।

आकाश सत्र 2019-22 बीकॉम (ऑनर्स) के छात्र है, 4 साल गुजर जाने के बाद भी हाथ में ग्रेजुएशन की डिग्री नहीं है। आकाश एसएससी की तैयारी कर रहे, लेकिन डिग्री नहीं होने की वजह से वह कई सारे फॉर्म भरने से वंचित रह जाते है।

बिहार के विश्वविद्यालयों में सेशन लेट की परंपरा जो सालों पहले से शुरू हुई वो खत्म होने का नाम नहीं ले रही। यहां 3 वर्ष के ग्रेजुएश की पढ़ाई के लिए छात्रों को 5 से 6 वर्ष का समय देना पड़ता है। लेटलतीफी के बाद छात्र विश्वविद्यालय के चक्कर काटने को मजबूर हैं। बिहार का मगध विश्वविद्यालय इन्ही में से एक है। लगभग 2 लाख छात्र अपने भविष्य को लेकर प्रतिदिन मानसिक तनाव में जी रहे। बिहार में हर वर्ष नियमित रूप से इंटर की परीक्षा तो हो जाती है, लेकिन जैसे ही छात्र ग्रेजुएशन में प्रवेश करते हैं, उनका एक वर्ष तो नामांकन के चक्कर में ही बीत जाता है फिर वे एग्जाम और उसके परिणाम के इंतजार में उलझकर रह जाते। यह हालत सिर्फ एक विश्वविद्यालय की नहीं है, बल्कि प्रदेश के कई विवि की यही हालत है।

पांच साल में भी ग्रेजुएशन नहीं हो रहा पूरा!

बिहार के तमाम विश्वविद्यालय में सेशन लेट चल रहे हैं। कोई सेशन एक साल लेट चल रहा तो कोई दो साल तीन साल। मगध विश्वविद्यालय के जिन छात्रों ने अपना नामांकन 2017 में कराया था उनकी डिग्रियां इस साल मिली है। यह सच में बिलकुल हैरान करने वाला है। 3 साल की पढ़ाई को पूरी करने में छात्रों को 6 साल का समय देना पड़ रहा है। किसी सेशन का अभी एग्जाम लटका पड़ा है तो किसी का परिणाम आना बाकी है।

2021-24 सेशन छात्रों जिनके दो वर्ष पूरे हो चुके है, उनका प्रथम वर्ष का एग्जाम इस वक्त शुरू हुआ है। 2019-22 सेशन के बच्चों का जिनका ,स्नातक पूरा हो जाना चाहिए था अब तक 4 वर्ष पूरे होने के बाद भी वे फाइनल ईयर का एग्जाम हो जाने के इंतजार में है। मगध यूनिवर्सिटी के अंतर्गत 44 कॉलेज और 80 से ज्यादा संस्थान इससे मान्यता प्राप्त है, जिनका संचालन हो रहा है। करीब 2 लाख छात्र रजिस्टर्ड हैं। यूनिवर्सिटी के पास 652 करोड़ रुपए का बजट है। 2017 में यूनिवर्सिटी से दबाव कम करने के लिए इसे तोड़कर पाटलिपुत्रा यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई थी।

आखिर क्या है वजह?

अकादमिक सत्र का सही समय पर खत्म न होने के पीछे एक बड़ी वजह है इन विश्वविद्यालयों में एकेडमिक कैलेंडर का न होना। पूरे देश भर के विश्वविद्यालयो में सत्र के आरंभ होते ही एकेडमिक कैलेंडर निकाल दिया जाता है, जिसने पूरे साल में होने वाली क्लासेज, छुट्टियां, एग्जाम व रिजल्ट सारा विवरण तिथियों के साथ होता, लेकिन बिहार में पटना यूनिवर्सिटी को छोड़ किसी भी अन्य यूनिवर्सिटी के पास अपना अकादमिक कैलेंडर नहीं होता।

दूसरी जो सबसे बड़ा कारण है वह ये की सरकारी अधिनियम के तहत यूनिवर्सिटी एक ऑटोनोमस बॉडी है। यहां राज्यपाल का आदेश चलता है। राज्यपाल ही कुलपति को नियुक्त करते हैं और कुलपति ही पूरे विश्वविधालय का संचालन का काम करते हैं।

बता दें की 2021 में मगध विश्वविद्यालय के तत्कालीन वीसी डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भ्रष्टाचार के मामले में बर्खास्त किया गया था। पूर्व कुलपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद पर षड्यंत्र कर ओएमआर शीट प्रश्न पत्र की छपाई और ई-बुक्स की खरीदारी से जुड़े मामले में 20 करोड़ के घोटाले में शामिल होने का आरोप है।

मौजूदा हालात

मगध यूनिवर्सिटी में नए कुलपति शशि प्रताप शाही के आने के बाद परीक्षा का दौर तो शुरू हो गया है, लेकिन अभी भी कई चुनौतियां सामने है, विश्वविधालय में कॉपी की कमी एक बड़ी चुनौती है। सारे लंबित परीक्षाओं को करने के लिए लाखों की संख्या में कॉपियों की जरूरत है, जिसे पूर्ति करना विश्वविधालय प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है।

पिछले बुधवार को राज्यपाल विश्वनाथ आलेंकर ने सभी कुलपतियों के साथ बैठक की व शैक्षणिक सत्र को सुधारने को लेकर निर्देश दिए। स्नातक व स्नातकोत्तर की लंबित परीक्षाओं का आयोजन जल्द कर उसके परीक्षाफल प्रकाशित करने का निर्देश विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को राज्यपाल सह कुलाधिपति राजेंद्र विश्वनाथ अलेंकर ने दिया।

बैठक में सभी कुलपतियों ने इस बात को माना की अधिकांश विश्वविधालयो में परीक्षाएं लंबित हैं। राज्यपाल ने सभी कुलपतियों से एक एक कर उनके संस्थान का पठन-पाठन, लंबित परीक्षाएं, परीक्षाफल समेत तमाम जानकारियां ली व इसे दुरुस्त करने का निर्देश दिया। उन्होंने यह भी निर्देश दिया की विद्यार्थियों को परीक्षाफल समेत सभी आवश्यक प्रमाणपत्र सुविधा से प्राप्त हो।

शिक्षा मंत्री का क्या है कहना?

बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने सेशन लेट मामले पर मीडिया से बात करते हुए कहा कि सरकार का रोल सिर्फ विश्वविद्यालयों को फंड देने तक होता जिसमे की किसी तरीके की कोई कमी नहीं की गई है। बाकी की चीजें विश्वविद्यालय प्रशासन के हाथों में होती है जो की राज्य भवन देखता है। इसमें बिहार सरकार को कोई रोल नहीं होता। शिक्षा विभाग सिर्फ सलाहकार की भूमिका में होता है।

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