केन्द्र में भाजपा की सरकार आने के बाद दलितों पर बढ़े अत्याचार : सुभाषिनी अली

केन्द्र में भाजपा की सरकार आने के बाद दलितों पर बढ़े अत्याचार : सुभाषिनी अली

नई दिल्ली। भारत में महिला, किसान और दलितों की आवाज उठाने के लिए पांच नवंबर को दिल्ली में एक राष्ट्रीय सम्मेलन होने जा रहा, जिसमें अलग-अलग प्रदेशों से लोग आकर हिस्सा लेंगे। दलितों पर लगातार हो रहे अत्याचारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। कार्यक्रम के आयोजन में अहम भूमिका निभाने वाली पूर्व लोकसभा सदस्य और सीपीआईएम की नेता सुभाषिनी अली ने द मूकनायक ने इस बारे में बात की है।

दलितों पर लगातार अत्याचार बढ़ रहा है

सुभाषिनी का कहना है कि देश में लगातार दलितों पर अत्याचार बढ़ रहा है। जिसे हम नहीं बल्कि सरकारी आंकडे बता रहे हैं। दलितों और मुसलमानों पर लगातार बढ़ती मॉब लिंचिंग की घटना इस बात का प्रमाण है कि इस वक्त हम ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जहां इसके खिलाफ आवाज उठाना बहुत जरूरी है। बिलासपुर में गौहत्या के शक में दो दलित युवाओं की लिंचिंग का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि लोगों के अंदर संवेदनाएं खत्म हो गई हैं।

हाथरस वाले मामले को फिर से उठाना चाहिए

यूपी की लखीमपुर खीरी में दो दलित बहनों के साथ रेप के बाद हत्या कर शव को पेड़ पर लटकाने की घटना का जिक्र करते हुए सुभाषिनी अली ने कहा कि महिलाओं पर भी लगातार अत्याचार बढ़ रहा है। उसमें भी दलित महिलाओं पर इसकी दोहरी मार पड़ रही है। साल 2015 से 2020 के बीच देश में 45 प्रतिशत रेप के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। जिसमें प्रतिदिन 10 दलित लड़कियों के साथ रेप हो रहा है। देश के अलग-अलग हिस्से में महिलाओं की प्रताड़ना बढ़ रही है।

वह कहती हैं कि अगर हम हाथरस वाली घटना की बात करें तो चार सवर्ण लड़कों ने दलित लड़की का रेप कर दिया और यूपी सरकार उन्हें बचाने की कोशिश कर रही है। जबकि यह बात किसी से नहीं छुपी है। साल 2020 को याद करते वह कहती हैं कि स्थिति यह थी कि अगर लोग इस जघन्य अपराध के बारे में आवाज नहीं उठाते तो लड़के पकड़े भी नहीं जाते।

<strong>सुभाषिनी अली</strong>
सुभाषिनी अली

सुभाषनी कहती हैं मुझे ऐसा लगता कि लोगों को इस मुद्दे को फिर से उठाना चाहिए। ताकि उस बच्ची को न्याय मिल सके। इस मामले में सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होनी चाहिए थी। लेकिन आज तक यह मामला जिला अदालत में ही चल रहा है और यूपी सरकार उनको बचाना चाह रही है।

किसानों जैसे आंदोलन की जरूरत है

राष्ट्रीय सम्मेलन की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि इसमें देश के अलग-अलग हिस्से से किसान भी शामिल होंगे। ताकि खेतों को बचाया जा सके। उन्होंने किसान आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसे आंदोलन होंगे तभी देश को बचाया जा सकता है। साथ ही कहा कि जरूरी नहीं है कि किसी आंदोलन का परिणाम एक दिन में ही मिल जाए। वह कहती हैं कि इसके लिए हमें प्रयासरत रहना होगा। अगर हम ये सोच लेगे कि ऐसे करना से क्या बदलाव आएगा तो हम कभी भी जुर्म के खिलाफ नहीं लड़ सकते हैं।

देश आजाद तो हुआ लेकिन दलितों की स्थिति जस की तस

देश में लगातार आरक्षण पर होते प्रहार की बात करते हुए उन्होंने कहा कि जो लोग कहते हैं कि आरक्षण खत्म कर देना चाहिए ,उन्हें मैं यह कहना चाहती हूं कि उन लोगों को देश का वह आखिरी आदमी नहीं दिख रहा, जिसके घर से अभी तक एक भी व्यक्ति यूनिवर्सिटी नहीं पहुंच पाया है। वह कहती है कि देश को आजाद हुए भले ही 75 साल हो गए हैं, लेकिन आज भी बड़े पदों पर एससी-एसटी और ओबीसी पहुंच नहीं पाए हैं। अगर आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा तो इनके आगे आने की उम्मीद और भी कम हो जाएगी।

यूनिवर्सिटी और बड़े पदों पर लगातार बहुजन सीटों का लगातार खाली रहने और सीट नहीं निकलने की दशा का जिक्र करते हुए सुभाषिनी कहती हैं कि आज बड़े संस्थानों में बहुजनों को नॉट सूटेबल कहकर छांट दिया जाता है। जबकि एनएफएस की सीटों पर लेटर एंट्री कर जाति विशेष को लाभ दिया जा रहा है। ताकि उनकी सत्ता कायम रहे और बहुजन हमेशा पिछड़ा ही रहे।

वह कहती हैं कि आरक्षण का हाल यह है कि सफाई कर्मचारी जिनको आरक्षण मिलना चाहिए। उनकी सरकारी नौकरी पर आरक्षण की मलाई कोई और खा रहा है और दलित कुछ पैसों में उनकी नौकरी की जगह दिडाड़ी कर रहे हैं।

स्थिति यह है कि दलित आदिवासियों को आजतक उनके मूलभूत अधिकारों से दूर रखा गया है।

भाजपा की नीतियों पर बात करते हुए वह बताती है कि साल 2014 के बाद स्थिति एकदम बदतर हो गई है, क्योंकि वह एक ऐसी विचारधारा से चल रही है। जो संविधान के एकदम खिलाफ है। भाजपा के नेता डॉ.अंबेडकर की फोटो तो लगाते हैं, लेकिन उनकी विचारधारा के विरुद्ध काम करते हैं। मंचों से संविधान की बात करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि काम सारे उसके विरुद्ध मनुस्मृति से चलते हैं। इनकी विचारधारा के कारण ही आज बहुजन न तो उच्च पदों पर नौकरियां कर पा रहे हैं और न ही शैक्षणिक संस्थानों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा पा रहे हैं। जिसके कारण दलित आदिवासियों और अल्पसंख्यकों पर चौतरफा हमला हो रहा है।

हिमाचल में आज भी दलितों का मंदिर जाना वर्जित

हाल ही में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी अच्छाई और काम का राग अलाप रहे हैं। फिलहाल हिमाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार है और वहां हर पांच साल में सरकार बदल जाती है। कभी कोई पार्टी ने दोबारा सत्ता में नहीं आती है। सुभाषिनी हाल में ही हिमाचल के दौरे पर थीं। वह कहती हैं कि हिमाचल में बड़ी आबादी दलित और आदिवासियों (अनुसूचित जाति 25.22 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति 5.71 प्रतिशत) की है। लेकिन देश के आजाद होने के 75 साल बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। यहां तक कि वहां के कई मंदिरों के बाहर लिखा होता है यहां शूद्रों का आना वर्जित है। कई सरकारें आई और गईं, लेकिन उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

मीडिया में बहुजनों की अनुपस्थिति

हाल ही में ऑक्सफैम की रिपोर्ट आई थी। जिसके अनुसार देश की मीडिया में 90 प्रतिशत सवर्ण जाति के लोग काबिज है। जिसके कारण दलित आदिवासियों के मुद्दों को उठा नहीं रहा है। सुभाषिनी अली बताती है कि मंडल आयोग के बाद उस दौर में मुझे एक टीबी डीबेट में बात रखने को कहा गया। जब मैं वहां गई तो एक पत्रकार कह रहे थे कि इस ऑफिस में कोई भी ओबीसी नहीं है। ऐसे में उनके सवाल कौन उठाएगा?

अपनी पार्टी में बदलाव पहले

सुभाषिनी अली से जब पूछा गया कि क्या सीपीआईएम पार्टी में उच्च पद पर कोई दलित है? इस बात का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि केरल और बंगाल में हमारे कई ओबीसी कार्यकर्ता संगठन के उच्च पदों पर है। लेकिन फैसला लेने वाली कमेटी में दलित, आदिवासी और ओबीसी नदारद है। लेकिन हम यह प्रयास कर रहे हैं कि हम अपनी ही पार्टी में सबसे पहले बदलाव करें। ताकि हम बाकी जगहों में भी ऐसा परिवर्तन ला पाएं।

Transcribed by Poonam Masih

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