राजस्थान में दलित उत्पीड़न के मामलों में प्रभावी कार्रवाई न होने की क्यों उठ रहीं आशंकाएं!

जोधपुर हाईकोर्ट के 2015 आदेश के करीब आठ साल बाद 2023 में हुई राज्य स्तरीय कमेटी की बैठक। समिति के मुख्यमंत्री हैं पदेन अध्यक्ष।
राजस्थान में दलित उत्पीड़न के मामलों में प्रभावी कार्रवाई न होने की क्यों उठ रहीं आशंकाएं!

जयपुर। राजस्थान के सिरोही जिले में कार्तिक भील की हत्या। जालौर में 9 साल के इंद्र मेघवाल और पाली जिले में मूंछ रखने पर जितेन्द्र मेघवाल की हत्या। ये ऐसे मामले थे जिन्होंने प्रदेश में हो रहे दलित व आदिवासियों पर अत्याचार की कलई खोल कर रख दी थी। इन मामलों की गूंज प्रदेश की विधानसभा से लेकर दिल्ली में लोकसभा तक सुनाई दी। उस समय राज्य सरकार ने दलित उत्पीड़न के मामलों पर रोकथाम के सार्वजनिक तौर पर वादे भी किए लेकिन इन वादों की हकीकत कुछ और ही है।

प्रदेश में दलित, आदिवासी अत्याचार कम हो, ऐसे मामलों में प्रभावी कार्रवाई हो, इसके लिए राजस्थान में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति निवारण अधिनियम के तहत राज्य स्तरीय सतर्कता एवं मॉनिटरिंग समिति गठित की गई है। जिसके मुख्यमंत्री अध्यक्ष है। इस समिति की बैठक जोधपुर उच्च न्यायालय के 2015 के आदेश के बाद अब जाकर अगस्त 2023 में हुई है।

47 प्रकार के अपराधों पर हुई चर्चा

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1969 यथासंशोधित 2015 तथा नियम 1995 यथा संशोधित 2016 के नियम 16 में गठित उच्च शक्ति राज्य स्तरीय सतर्कता एवं मॉनिटरिंग समिति की बैठक 8 अगस्त को हुई थी। जिसमें शासन सचिव सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण नियम 1995 यथा संशोधित 2016 के नियम 12 (4) के अन्तर्गत पीड़ित आश्रितों को 47 प्रकार के अपराध घटित होने पर न्यूनतम 0.85 लाख रुपए से अधिकतम 8.25 लाख रुपए तक की राहत राशि उपलब्ध कराने की योजना की जानकारी दी थी। योजनान्तर्गत केन्द्र एवं राज्य सरकार 50-50 प्रतिशत राशि का भार वहन करती हैं।

33 जिलों में 36 अनुसूचित जाति जनजाति प्रकोष्ठों का गठन

शासन सचिव ने बताया कि राज्य के 33 जिलों में 36 अनुसूचित जाति व जनजाति प्रकोष्ठों का गठन किया गया है। जिसका प्रभारी उप अधीक्षक स्तर के पुलिस अधिकारी को बनाया गया है। अधिनियम के पैरा 8 के अन्तर्गत पुलिस मुख्यालय पर अनुसूचित जाति व जनजाति संरक्षण कक्ष की स्थापना की जानकारी भी दी गई। साथ ही विभागीय वेबपोर्टल का पुलिस विभाग के सीसीटीएनएस पोर्टल से इंटीग्रेशन के बारे में बताया गया।

महानिदेशक पुलिस, उमेश मिश्रा ने बताया कि प्रदेश में जिला स्तर पर 41 अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक महिला अत्याचार एवं अनुसूचित जाति व जनजाति के प्रकरणों का पर्यवेक्षण करते हैं। 137 उपाधीक्षक पुलिस के अधीन अनुसूचित जाति व जनजाति प्रकोष्ठ गठित हैं। राज्य में त्वरित निर्णय के लिए 37 विशेष अनुसूचित जाति व जनजाति न्यायालय कार्यरत हैं। राज्य स्तरीय विधि सलाहकार के रूप में अतिरिक्त निदेशक अभियोजन (न्याय) एवं जिला स्तर पर 36 फील्ड लेवल काउन्सलर के रूप में सहायक निदेशक अभियोजन नियुक्त किए हुए हैं। अनुसूचित जाति व जनजाति के परिवादों के पंजीकरण एवं निस्तारण हेतु पुलिस मुख्यालय जयपुर के स्तर पर टोल फ्री हैल्पलाईन नम्बर 18001806025 स्थापित है। उत्पीड़न के मामलों में अत्याचारों के निवारण के लिए राष्ट्रीय हैल्पलाइन नम्बर 18002021989 एवं टोल फ्री टेलीफोन 14566 कार्यरत है।

चिंता का विषय

महानिदेशक के अनुसार 156 (3) सीआरपीसी के अंतर्गत दर्ज अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार के प्रकरणों की संख्या वर्ष 2016 में 29.56 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2023 में 12.42 प्रतिशत रह गयी है। हालांकि समग्र आंकड़ों को देखें तो दलित और आदिवासियों पर अत्याचार के मामले बढ़े हैं।

सीएम ने दिए निर्देश

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के समस्त उपबंधों के अनुसार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के पीड़ितों को न्याय उपलब्ध करवाने के लिए समुचित कदम उठाने, नवीन जिलों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज प्रकरणों की जांच के लिए उपाधीक्षक पुलिस की अध्यक्षता में सेल स्थापित करने, महिलाओं एवं बाल अपराधों के निवारण के लिए अतिरिक्त अधीक्षक पुलिस के नेतृत्व में स्काउ यूनिट गठित करने, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत पंजीबद्ध मुकदमों का स्वतंत्र निष्पक्ष अन्वेषण सुनिश्चित करने, दोषसिद्धि दर बढ़ाने के के लिए पुलिस एवं अभियोजन विभाग को समुचित प्रयास करने के निर्देश दिए।

इसके लिए सीएम ने आवश्यकतानुसार कार्मिकों की नियुक्ति करने की बात भी कही। लोकसेवकों को समुचित प्रशिक्षण करवाने एवं एक्ट की जानकारी देने। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के अंतर्गत संचालित छात्रावासों में निवासरत छात्र-छात्राओं की संख्या को 50 हजार से दोगुनी कर 1 लाख करने। बालिकाओं की संख्या को वर्तमान संख्या 15 हजार से बढ़ाकर 50 हजार एवं बालकों की संख्या वर्तमान 35 हजार से बढ़ाकर 50 हजार करने के निर्देश भी सीएम ने बैठक में दिए।

दलित संगठन नहीं संतुष्ट

दलित अधिकार केन्द्र राजस्थान निदेशक एडवोकेट सतीश कुमार ने बताया कि जोधपुर न्यायालय के 2015 के आदेश के बावजूद 8 साल बाद राज्य समिति की बैठक होना पुरानी व वर्तमान सरकार की कार्यशैली को दर्शाता है। यह स्पष्ट संदेश है कि राज्य सरकार दलितों के मुद्दों को लेकर गंभीर नहीं है। इसी का नतीजा है कि बीते कुछ सालों में दलितों पर अत्याचार के मामले बढ़े है। हालांकि दलित समाजिक संगठनों ने एकजुट होकर अत्याचारों को खत्म करने के लिए कोशिशें शुरू कर दी हैं।

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