क्या है ‘ऑपरेशन समानता’, जिसमें सवर्ण निकाल रहे हैं दलित दूल्हों की बिंदौरी?

दलित दूल्हों की घोड़ी पर बिन्दौरी (बारात) / फोटो साभार - Twitter
दलित दूल्हों की घोड़ी पर बिन्दौरी (बारात) / फोटो साभार - Twitter
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राजस्थान। हाल ही में दलितों को शादी में घोडी न चढ़ने देने की कई खबरें आई, जिसके बाद प्रदेश के बूंदी ज़िले में पुलिस प्रशासन द्वारा एक नई पहल की गई है। जिसमें दलितों की शादी के दौरान पुलिस की निगरानी में बिंदौरी (बारात) निकाली जा रही है। इस पहल को 'ऑपरेशन समानता' नाम दिया गया है।

बूंदी ज़िले की डीएम रेनू जयपाल ने द मूकनायक को बताया कि समाज में व्यापत ऐसी बुराईयों को खत्म कर समानता और जागरुकता लाना 'ऑपरेशन समानता' का मुख्य उद्देश्य है। ज़िले के एसपी जय ने बताया कि, हमने "समानता समिती" का भी गठन किया है। ज़िसमें सभी समाज के लोगों को जोड़कर उन्हें यह काम शांति पूर्वक करवाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।

बीते कई महीनों में, प्रदेश के कई हिस्सों से ऐसी घटनायें सामने आई थी। ज़िसमें शादी-विवाह के दौरान दलितों के घोड़ी चढकर बिन्दौरी निकालने पर कथित सवर्ण जाति के लोगों ने विरोध जताया था। जिसके बाद पुलिस प्रशासन हरकत में आया और किसी भी प्रकार की कोई अप्रिय घटना न हो इसके लिए 'ऑपरेशन समानता' की शुरुआत की ।

ऑपरेशन समानता की सूत्रधार रही बूंदी ड़ीएम रेनू जयपाल से द मूकनायक ने बात की, और ये जानने की कोशिश की कि, इक्कीसवीं सदी में भी इस तरह के ऑपरेशन की ज़रुरत क्यों पड़ रही है।

"समाज में आज भी दोहरी मानसिकता वाले लोग रहते हैं, ऐसे लोगों में जागरुकता फैलाना हमारा मुख्य मकसद है। जिस भी दलित परिवार को शादी के दौरान ऐसा लगता है कि उनके साथ कुछ गलत हो सकता है उनको पुलिस की सहायता से बिंदौरी निकलवाई जाती है। इसके लिए एक कमेटी का भी घठन किया गया है जो ऐसे मामलों पर अपनी पैनी नज़र बनाये हुए हैं। शादी के दौरान ऐसी कोई भी घटना होती है तो उसपर तुरंत प्रभाव से कार्रवाई के निर्देश दिये गये हैं।" डीएम रेनू जयपाल ने बताया।

ज़िले के एसपी जय यादव ने बातचीत में बताया कि, हमारी कोशिश है कि पुलिस की निगरानी की ज़रुरत न पड़े इसलिये हमने समानता समिती का भी गठन किया है। ज़िसमें सभी समाज के लोगों को जोडा गया है और उनको ये ज़िम्मेदारी सौंपी गई है कि वो लोग खुद दलितों की शादी में हो रही ऐसी घटनाओं को रोके और बिना विवाद के शादियां करवायें।

"इस समिती में अलग-अलग इलाकों के सरपंच, वार्ड मेंबर, पटवारी सम्बंधित इलाके के थाना अध्यक्ष को जोडा गया है। इसके तहत हमारी कोशिश है कि इस काम के लिए पुलिस की ज़रुरत न पड़े। ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है कि लोगों को बड़ी संख्या में जागरुक किया किया जा सके।" एसपी जय यादव ने ये भी बताया कि, उनके ज़िले में इसके काफी अच्छे परिणाम भी दिख रहे हैं, और आशा है कि जिले में इस प्रकार की कोई भी घटना भविष्य में सामने न आये ज़िसमें पुलिस प्रशासन को कोई कार्रवाई करनी पड़े।

बीते कुछ महीने पहले, पुलिस प्रशासन की मुस्तैदी में कोटा ज़िले में फूलों की बौछार के बीच घोड़ी पर सवार 24 वर्षीय दूल्हे मनोज बैरवा की नीम का खेड़ा गांव की संकरी गलियों में सभी सामाजिक बंदिशों को तोड़ते हुए बिंदौरी निकली। जहां पहले दलित वर्ग के दूल्हों को अपने विवाह समारोह में घोड़ी पर चढ़ने की अनुमति नहीं थी।

तीन दशक पहले मनोज बैरवा के चाचा से उसी गांव में ऊंची जाति के पुरुषों ने इसलिए मारपीट की थी कि वो अनुसूचित जाति से थे और उन्होंने अपनी शादी के दिन घोड़ी की सवारी करने की हिम्मत दिखाई थी।

आपको बता दें कि, कुछ महीने पहले ही जयपुर में एक दलित आईपीएस को भी डर था कि उनकी शादी में व्यवधान न हो या किसी प्रकार की घटना हो, इसलिये आईपीएस दुल्हे को भी पुलिस की सुरक्षा में बिंदौरी निकालनी पड़ी थी।

प्रदेश में भले ही 'ऑपरेशन समानता' जैसी पहल की शुरुआत की गई हो लेकिन सवाल ये है आज भी दलितों-वंचितों और आदिवासियों के खिलाफ जातिवादी लोगों की मानसिकता इस समाज के दोहरे चरित्र को बेनकाब करती है।

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