समाज में व्याप्त गहरी जातिवादी मानसिकता को ऊजागर करती दलित समाज के बच्चों के साथ भेदभाव की ये खबरें!

स्कूली बच्चे / प्रतीकात्मक चित्र
स्कूली बच्चे / प्रतीकात्मक चित्र

दालितों के साथ भेदभाव की खबरें लगातार बढ़ती जा रही हैं. भेदभाव के रुप भले ही अलग हो, लेकिन उसके पीछे जाति, संप्रदाय को लेकर भेदभाव की मानसिकता ही प्रतीत होती है. इस रिपोर्ट में हम आपको दो ख़बर बतायेंगे. दोनों खबरें लगभग समान ही लेकिन राज्य अलग-अलग हैं.

हरियाणा में स्कूली बच्चों के साथ भेदभाव का मामला

पहला मामला हरियाणा के करनाल का है. जहां घरौंडा के गांव कलहेड़ी के सरकारी स्कूल में ट्रेनी टीचर द्वारा छात्राओं पर अभद्र टिप्पणी करने व जाति अनुसार बच्चों को बैठाने को लेकर विवाद हो गया. अनुसूचित जाति के बच्चों को धमकी दिए जाने के बाद यह मामला और भी गहरा गया है। जिला प्रशासन के आश्वासन व दावों के बावजूद शनिवार को न समय पर स्कूल में पुलिस पहुंची और न ही अभिभावक बच्चों को भेजने के लिए तैयार हुए. जिसके चलते अधिकतर बच्चे स्कूल में नहीं गए. बाद में दोपहर के समय डीएसपी मनोज कुमार व बीडीपीओ गुरलीन कौर स्कूल पहुंची तो उन्होंने विवाद निपटाने को लेकर वहां मौजूद स्टाफ व ग्रामीणों से बात की। वहीं जिला प्रशासन ने आरोपित शिक्षक को इस स्कूल से हटाकर दूसरे स्कूल में लगाने की बात कही है.

दरअसल, कुछ दिन पहले एक ट्रेनी टीचर द्वारा छात्राओं पर अश्लील टिप्पणी करने व जाति अनुसार बच्चों की लाइन बनवाने का मामला सामने आया था. जिसके बाद भड़के ग्रामीणों ने स्कूल में पहुंचकर जमकर हंगामा किया. अगले ही दिन गांव में कुछ लोगों ने ऐलान कर दिया था कि किसी भी अनुसूचित जाति के बच्चों को स्कूल में नहीं घुसने दिया जाएगा।

इसके बाद इन बच्चों के अभिभावकों में भी भय का माहौल बन गया था, जिसके चलते अविभावकों ने अपने बच्चे स्कूल में नहीं भेजे, और जिला उपायुक्त के पास शिकायत लेेकर पहुँच गए. जिला उपायुक्त ने उन्हें भरोसा दिया गया था कि शनिवार से ही स्कूल में पुलिसकर्मी तैनात कर दिए जाएंगे इसलिये अपने बच्चों को स्कूल में अवश्य भेजें. लेकिन शनिवार को सुबह स्कूल के समय पर न तो पुलिसकर्मी पहुंचे और न ही अधिकतर बच्चे आए। बाद में डीएसपी मनोज कुमार व बीडीपीओ गुरलीन कौर पहुंची तो उन्होंने मामला शांत करने के लिए ग्रामीणों को पहल करने का आह्वान दिया. जिसके बाद अभी मामला शांत है.

गुजरात में आंगनवाड़ी में पढ़ने वाले बच्चों के लिए अलग केंद्र

वहीं दूसरा मामला गुजरात के सरपदड गांव है. राजकोट से 21 किमी दूर इस गांव में पांच आंगनवाड़ी हैं, जिनमें एक में सिर्फ दलित समाज के बच्चे पढ़ते हैं जबकि शेष चार में अन्य तमाम समाज और जाति के बच्चे पढ़ते हैं. दलित और अन्य समाज का आंगनवाड़ी केंद्र मुश्किल से 50 मीटर की दूरी पर है. लेकिन फिर भी यहां बच्चे अलग-अलग पढ़ते हैं.

आंगनवाड़ी में पिछले 14 साल से बतौर हेल्पर काम कर रही विजयाबेन परमार ने कहा कि, गांव में 5 आंगनवाड़ी में से क्रमांक-2 में सिर्फ दलित समाज के बच्चे ही पढ़ते हैं. इस आंगनवाड़ी के पिछले हिस्से में दलित समाज की बस्ती है, इसलिए भी यहां दलित समाज के बच्चे आते हैं. लेकिन अन्य समाज के बच्चे इस आंगनवाड़ी में नहीं आते हैं.

वहीं, आंगनवाड़ी 5 की सदस्य प्रज्ञाबेन राणीपा ने बताया कि, दलित समाज के बच्चों के लिए किसी भी आंगनवाड़ी में रोक-टोक नहीं है, लेकिन वे अपने बच्चों को यहां नहीं भेजते.

इस बारे में डीडीओ देव चौधरी ने कहा कि, यदि ऐसा है तो यह गलत है. भेदभाव किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है. सबसे पहले इस पूरे मामले की जांच की जाएगी.

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