SC/ST ACT में मुकदमे के बाद समझौता होता है तो लौटानी पड़ेगी सरकार से मिली आर्थिक मदद : इलाहाबाद हाईकोर्ट

SC - ST एक्ट के तहत एक मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने कहा है कि एक्ट के तहत दर्ज कराए गए आपराधिक मामलों में दोनों पक्षों ने समझौता किया तो फिर पीड़ित पक्ष को सरकार से मिली सहायता राशि लौटानी होगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्टPhoto : Live Law

लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज मुकदमे पर सुनवाई करते हुए,अनुसूचित जाति के व्यक्ति को सरकार द्वारा दी गई आर्थिक मदद लौटाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि एक्ट के तहत दर्ज कराए गए आपराधिक मामलों में दोनों पक्षों ने समझौता किया तो फिर पीड़ित पक्ष को सरकार से मिली सहायता राशि लौटानी होगी।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि एक्ट के आपराधिक केस को यदि समझौते के आधार पर समाप्त किया जाता है तो पीड़ित को सरकार से मिली आर्थिक मदद वापस करनी होगी। किसी को भी अपने विरुद्ध अत्याचार की शिकायत कर सरकार से धन की कमाई का जरिया बनाने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने पीड़ितों को 20 दिन में सरकार से मिली रकम ट्रेजरी में जमा करने का भी निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने दिया है। उन्होंने भविष्य में आने वाले इस प्रकार के मामलों में आदेश का अनुपालन कराने को भी कहा है।

जानिए क्या है पूरा मामला

यूपी में ललितपुर के जखौरा क्षेत्र आता है। इस क्षेत्र में ही अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति के साथ मारपीट की घटना को लेकर एससी- एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज कराया गया था। अन्य मामले भी इसी प्रकार के हैं। कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए इसकी प्रति सेशन कोर्ट को भेजने का आदेश दिया। भविष्य में इसका पालन करने इस प्रकार के अन्य मामलों में भी कराने का आदेश दिया गया है। अपील करने वालों ने सेशन कोर्ट में अर्जी देकर केस समाप्त करने की मांग की थी। अपील करने वालों का कहना था कि दोनों पक्षों के बीच समझौता हो चुका है। इसलिए अब एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामलों को समाप्त कर दिया जाए।

अत्याचार की शिकायत कर सरकार से पैसे की कमाई का अधिकार नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़े फैसले में कहा है कि एससी एसटी एक्ट के तहत आपराधिक केस को अगर समझौते के आधार पर समाप्त किया जाता है तो पीड़ित को सरकार से मिली आर्थिक मदद वापस करनी होगी। कोर्ट ने कहा कि किसी को भी अपने खिलाफ अत्याचार की शिकायत कर सरकार से पैसे की कमाई का जरिया बनाने का अधिकार नहीं है। केस में बिना दबाव समझौता के मामलों में सरकार से मिली सहायता राशि वापस करनी होगी। कोर्ट ने कहा कि यह टैक्स अदा करने वालों की गाढ़ी कमाई है।

हाईकोर्ट ने विभिन्न अदालतों में आए चार आपराधिक अपीलों की सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया। कोर्ट ने पीड़ितों को 20 दिन में सरकार से मिली राशि समाज कल्याण विभाग के माध्यम से ट्रेजरी में जमा करने का आदेश दिया है। साथ ही, वेरिफिकेशन कराकर अदालत को उचित आदेश पारित करने का निर्देश दिया है। जस्टिस राहुल चतुर्वेदी ने झब्बू दुबे उर्फ प्रदीप कुमार दुबे, विश्वनाथ यादव एवं अन्य, धर्मेंद्र उर्फ बउवा बाजपेई एवं अन्य और राकेश एवं अन्य की आपराधिक अपील पर यह आदेश जारी किया।

एससी-एसटी एक्ट में दोष साबित होने के बाद मुआवजा देने का फैसला भी दे चुकी है कोर्ट

बीते 4 अगस्त 2022 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एससी-एसटी एक्ट में दोष साबित होने के बाद मुआवजा देने का फैसला भी सुनाया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में अभियुक्त की दोषसिद्धि के बाद ही पीड़ित को मुआवजा मिले। कोर्ट ने कहा कि हम यह ट्रेंड देख रहे हैं कि एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामलों में मुआवजा मिलने के बाद पीड़ित अभियुक्त से समझौता कर लेते हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने इसरार अहमद व अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। याचियों ने एससी-एसटी एक्ट के तहत रायबरेली की विशेष अदालत में दाखिल चार्जशीट और पूरे मुकदमे को खारिज किए जाने की मांग की थी। याचियों का कहना था कि उनकी वादी के साथ सुलह हो चुकी है।

लखनऊ से अधिवक्ता इंद्र पाल सिंह इन दोनों ही आदेश को लेकर कहते हैं-

"दलित लोगों को हर तरह से तोड़ने का प्रयास किया जाता है। मुकदमे के बाद दी जाने वाली राशि घटना के दौरान हुई तकलीफों से उबारने में सहायता करती है। यदि समझौता भी होता तो इस राशि को वापस करने का आदेश चिंताजनक है। समझौते विभिन्न तरीके का प्रलोभन देकर करा लिए जाते हैं। बाद में वही व्यक्ति दलित समुदाय पर हावी हो जाता है।

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