राजस्थान: तार चोरी के शक में दो दलितों की पिटाई में एक की मौत, क्यों नहीं थम रहा उत्पीड़न?

आक्रोषित दलित संगठन कर रहे धरना प्रदर्शन, आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग।
आक्रोषित दलित संगठन कर रहे धरना प्रदर्शन.
आक्रोषित दलित संगठन कर रहे धरना प्रदर्शन.

जयपुर। राजस्थान के चूरू जिले के सरदारशहर के रातूसर गांव में बिजली के तार चोरी करने के शक में आधा दर्जन से ज्यादा लोगों ने दो दलित युवकों की एल्युमिनियम के तार से पिटाई की। घटना की सूचना मिलते ही भानीपुरा पुलिस मौके पर पहुंची और दोनों घायलों को राजकीय अस्पताल में भर्ती करवाया। गत रविवार देर शाम इलाज के दौरान एक युवक की मौत हो गई, जबकि दूसरे का अस्पताल में इलाज चल रहा है। पुलिस ने इस मामले में मुकदमा दर्ज किया है।

राजस्थान के चुरू जिले के रातूसर निवासी कन्हैयालाल मेघवाल (26) और गंगाराम मेघवाल पेशे से किसान हैं। उनके खेत के हाई केवी विद्युत लाइन गुजरती है। 24 दिसम्बर को दोनों कृषि कार्य करने के लिए अपने खेत में गए हुए थे। जब वह खेत पहुंचे तो हाई केवी विद्युत लाइन का तार टूट कर नीचे गिरा हुआ था। यह देखकर वहां पर विद्युत तार चोरी रोकने के लिए लगाए गए आधा दर्जन से ज्यादा गार्ड आए और दोनों पर तार चोरी करने का शक जताया। आधा दर्जन गार्डों ने मिलकर दोनों के साथ बर्बरता पूर्वक मारपीट की। इससे दोनों को गम्भीर चोटें आईं। परिजनों ने दोनों को इलाज के लिए जिला अस्पताल में भर्ती कराया था। इलाज के दौरान 26 वर्षीय कन्हैयालाल मेघवाल की मौत हो गई। दूसरे युवक गंगाराम मेघवाल का राजकीय अस्पताल में उपचार जारी है। कन्हैयालाल की मौत के बाद लोगों ने जमकर हंगामा काटा। लोग शव को लेकर धरना प्रदर्शन करने लगे। मौके पर भारी पुलिस बल बुलाना पड़ा। मौके की गम्भीरता को देखते हुए कई थानों की पुलिस सहित आला.अधिकारी भी मौके पर पहुंच गये। घायल के बयान पर भानीपुरा पुलिस थाने में मामला दर्ज कर लिया है।

घटना के विरोध में सर्व समाज के लोगों ने राजकीय अस्पताल के आगे कई मांगों को लेकर धरना लगा दिया। धरना स्थल पर विधायक अनिल शर्मा भी पहुंचे और उसके बाद अस्पताल में घायल से भी बातचीत की।

परिवार को एक करोड़ रुपए के मुआवजे की मांग

धरना स्थल पर प्रधान प्रतिनिधि मधुसूदन राजपुरोहित नगर परिषद सभापति राजकरण चौधरी, दलित नेता श्रवण चिरानिया, पार्षद सुनील मीणा शाहिद सर्व समाज के लोग मौजूद थे। धरने पर बैठे लोगों की मांग है कि मृतक के परिवार को एक करोड़ रुपए का मुआवजा दिया जाए। परिवार के किसी एक सदस्य को नौकरी दी जाए। अस्पताल में भर्ती घायल को आर्थिक मदद दी जाए। घटना में शामिल सभी आरोपियों की गिरफ्तारी की जाए।

धरने पर बैठे लोगों का कहना है कि जब तक उनकी मांगों को पूरा नहीं किया जाता धरना जारी रहेगा। इसके साथ ही मंगलवार को संपूर्ण सरदारशहर बंद रखा जाएगा और हाईवे जाम किया जाएगा।

बढ़ रहा दलित-आदिवासी उत्पीड़न का ग्राफ

राजस्थान में दलित-आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामले लगातार बढ़ रहे है। राजस्थान पुलिस महकमे से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, के तहत वर्ष 2017 से 2023 के बीच कुल 56879 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें 2017 में 4532, 2018 में 5478, 2019 में 8472, 2020 में 8811, 2021 में 9472, 2022 में 11054 व 2023 में अब तक 9251 मामले सामने आए हैं। 2018 से 2022 तक आलौच्य अवधि में दलित-आदिवासियों के खिलाफ अपराधों में 22.56 औसत वृद्धि दर्ज हुई है।

क्यों बढ़ रहे है अत्याचार के मामले?

दलित सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने बताया कि राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम के पाली, सिरोही, जालौर, जोधपुर, बाड़मेर आदि जिलों में अभी भी छुआछूत और जातीय भेदभाव चरम पर होता है। इसके चलते यहां पर दलित प्रताड़ना के मामले सबसे ज्याद रिपोर्ट किए जाते है। इसके उलट शेखावटी क्षेत्र के चुरू, झुंझुनूं, सीकर आदि जिलों में छुआछूत या जातीय भेदभाव नहीं के बराबर है, लेकिन यहां जमीनों को लेकर विवाद होते है, जिनमें बहुत ही नृशंस तरीके से दलितों की हत्या के मामले सामने आए है।

दक्षिणी-पूर्वी आदिवासी बहुल इलाकों में जातीय अत्याचार के मामले काफी कम है, क्योंकि इन इलाकों की सामाजिक, राजनीतिक परिदृष्य राज्य के अन्य क्षेत्रों से पूरी तरह अलग है। इन इलाकों में दलित जनसंख्या भी कम है।

2011 की जनगणना के अनुसार, राजस्थान में अनुसूचित जातियां- जैसे मेघवाल, वाल्मीकि, जाटव, बैरवा, खटीक, कोली, और सरगारा आदि, कुल आबादी का करीब 17.83 प्रतिशत हैं, जबकि राजपूत और ब्राह्मण क्रमशः 9 और 7 प्रतिशत हैं। जातिगत टकराव की स्थितियां भी अलग-अलग होती है। पश्चिमी राजस्थान में मुख्य टकराव मेघवालों और राजपूतों तथा प्रमुख ओबीसीज के बीच है। पाली, बाड़मेर, जालौर, सिरोही और नागौर, भीलवाड़ा झुंझुनूं में भू संबंध मुख्य कारण है। शिक्षा का स्तर सुधरने के साथ ही दलित युवा में सामाजिक, राजनैतिक चेतना आई है, जिससे वह अपने अधिकारों की बात पूरे आत्मविश्वास के साथ करता है और गैरबराबरी का विरोध करता है। इससे भी टकराव बढ़ा है।

सिर्फ 22 प्रतिशत मामलों में मिल पाती है सजा

वर्तमान में एससी/एसटी कोर्ट में 20492 प्रकरण विचाराधीन है या कोर्ट में लम्बित है, इनमें जून 2023 तक अनुसूचित जाति के 16020 व अनुसूचित जनजाति के 4472 प्रकरण है। सम्पूर्ण न्यायालय का कन्वीकशन प्रतिशत 2020 में 27.49, 2021 में 22.26 एवं 2022 में 22.38 प्रतिशत है।

जयपुर स्थित दलित अधिकार केन्द्र के निदेशक सतीश कुमार ने बताया कि राजस्थान में दो तरीके के लोक अभियोजक है। एक जो अभियोजन विभाग के है, सरकारी है। अनुभवी और प्रशिक्षित है। दूसरे विधि एवं विधिक कार्य विभाग द्वारा राजनीतिक पार्टियों की अनुशंसा से अप्वाइंट किए जाते हैं। ये अधिवक्ता न तो प्रशिक्षित होते है न ही उनकी कोई जवाबदेही होती है। इसके चलते प्रताड़ना के मामलों में प्रभावी पैरवी नहीं हो पाती और आरोपी न्यायालय से बरी हो जाते हैं। इसी के चलते दोषसिद्धी का प्रतिशत कम रहता है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से यह 22 से 24 प्रतिशत है, लेकिन वास्तव में आंकड़ा इससे भी काफी कम है। इसके चलते आरोपियों के हौंसले बुलंद है।

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