MP: 14 साल से जंजीरों में जकड़ा था आदिवासी युवक, परिजनों ने कराई रिहाई

मानवता को शर्मसार करने वाली घटना, अजाक थाना कर रहा जांच शुरू
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भोपाल। मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के मानपुर थाना क्षेत्र के हासलपुर गांव से एक रौंगटे खड़े कर देने वाली घटना सामने आई है। यहां एक 25 वर्षीय आदिवासी युवक को पिछले 14 वर्षों से कथित तौर पर बंधक बनाकर रखा गया था। युवक को दो लोगों—रहीम और इब्राहिम धनिया वाले सेठ—ने अपने घर में कैद कर रखा था, जहां उससे जबरन घरेलू काम करवाया जाता था और रात में जंजीरों से बांध दिया जाता था।

इस दर्दनाक मामले का खुलासा तब हुआ जब युवक के पिता ने बजरंग सेना और केशरिया हिंदू वाहिनी से संपर्क किया। इन संगठनों की मदद से युवक को शनिवार रात को छुड़ाया गया और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई।

कैसे हुआ खुलासा?

बजरंग सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र यादव ने मीडिया को बताया कि युवक के पिता उनके पास पहुंचे और बताया कि उनका बेटा रहीम और इब्राहिम के घर में 14 वर्षों से कैद है। इस सूचना के बाद बजरंग सेना और केशरिया हिंदू वाहिनी के कार्यकर्ता हासलपुर गांव पहुंचे और युवक को वहां से मुक्त कराया। इसके बाद सभी लोग युवक को लेकर अजाक थाना पहुंचे और शिकायत दर्ज करवाई।

जंजीरों में बंधा था युवक

जानकारी के अनुसार, युवक को रात में जंजीरों से बांधकर रखा जाता था ताकि वह भाग न सके। उससे दिनभर खेतों और घर के काम कराए जाते थे। यहां तक कि उसे बुजुर्गों के शौचालय तक साफ करवाए जाते थे।

महेंद्र यादव ने बताया कि एक बार युवक की दादी का देहांत हुआ था, लेकिन रहीम और इब्राहिम ने उसे अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं होने दिया। युवक के अनुसार, विरोध करने पर उसके साथ मारपीट की जाती थी।

11 साल की उम्र में शुरू हुआ बंधुआ जीवन

पीड़ित युवक जब मात्र 11 वर्ष का था, तब उसे हासलपुर लाया गया था। रहीम और इब्राहिम ने उसे खेतों में काम के लिए 1200 रुपये प्रतिमाह मजदूरी पर रखा था। शुरुआत में परिजनों से संपर्क कराया जाता था, लेकिन धीरे-धीरे उसे पूरी तरह अलग-थलग कर दिया गया।

14 वर्षों से वह न अपने घर गया और न ही शहर देखा। उसके लिए दुनिया वहीं तक सिमट गई थी जहां उसे सुबह से शाम तक मजदूरी करनी होती थी और रात में जंजीरों में कैद रहना पड़ता था।

परिजन लाए थाने, पुलिस ने शुरू की जांच

शनिवार को पीड़ित के पिता किसी तरह बेटे को लेकर हासलपुर से निकले और सीधे हिंदू संगठनों से संपर्क किया। संगठन के सदस्यों ने तुरंत थाने पहुंचकर आवेदन दिया। एसीपी सोनू डाबर ने बताया कि मामला अजाक थाना क्षेत्र का है और फिलहाल जांच प्रारंभ कर दी गई है।

एसीपी सोनू डाबर ने कहा, “ सामाजिक संगठन के कुछ लोग युवक और उसके परिजनों के साथ थाने आए थे। उन्होंने एक आवेदन दिया है। मामले की जांच की जा रही है और जल्द ही संबंधितों पर उचित कार्रवाई की जाएगी।”

बंधुआ मज़दूरी और अनुसूचित जनजाति उत्पीड़न पर हो सकती है कार्रवाई

इस मामले में जिस प्रकार आदिवासी युवक को 14 वर्षों तक बंधक बनाकर रखा गया, उससे स्पष्ट होता है कि यह केवल एक व्यक्तिगत शोषण का मामला नहीं, बल्कि कानून और संविधान के उल्लंघन का गंभीर उदाहरण है। युवक से जबरन मजदूरी करवाई गई, उसे बंधन में रखा गया, मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दी गई—यह सभी बातें बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम, 1976 और भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत संज्ञेय अपराध बनते हैं।

सबसे अहम बात यह है कि पीड़ित युवक अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग से संबंधित है, इसलिए इस मामले में अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के प्रावधान भी लागू हो सकते हैं। इस अधिनियम के तहत अगर किसी अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के साथ उसकी जातीय पहचान के आधार पर अत्याचार किया जाता है, बंधक बनाकर शोषण किया जाता है, तो दोषियों को सख्त सजा दी जा सकती है।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए विधि विशेषज्ञ एवं अधिवक्ता मयंक सिंह ने बताया कि इस मामले में निम्नलिखित धाराएं लागू हो सकती हैं:

बंधुआ मज़दूरी उन्मूलन अधिनियम, 1976 के तहत किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध मजदूरी करने के लिए मजबूर करना प्रतिबंधित है। भारतीय न्याय संहिता की किसी व्यक्ति से बलपूर्वक श्रम कराना एक दंडनीय अपराध है। (IPC) धारा 342 और 344: किसी व्यक्ति को अवैध रूप से कैद में रखना या लंबे समय तक बंदी बनाकर रखना। अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धाराएं: अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति का अपमान, शोषण या हिंसा, विशेष रूप से जातीय पहचान के आधार पर, अत्याचार की श्रेणी में आता है।

अधिवक्ता मयंक सिंह ने आगे कहा, "इस प्रकार यह मामला सिर्फ सामाजिक या नैतिक अपराध नहीं, बल्कि कठोर कानूनी दायरे में आने वाला गंभीर अपराध है, जिसमें दोषियों को 5 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है।"

सामाजिक संगठन की मांग

इस घटना के बाद सामाजिक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि यदि 14 साल तक एक आदिवासी युवक को बंधक बनाकर रखा गया और प्रशासन को भनक तक नहीं लगी, तो यह प्रशासनिक लापरवाही का भी गंभीर मामला है।

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