वंचित समुदाय के बच्चे सबसे ज्यादा आत्महत्या कर रहे,ऐसी घटनाएं भेदभाव के कारण-चीफ जस्टिस

आईआईटी मुम्बई की घटना को बताया दुखद, CJI के बयान के संदर्भ में दलित चिंतकों ने दी तल्ख प्रतिक्रिया
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़

तेलंगाना। भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने हैदराबाद के एक इंस्टिट्यूट में दीक्षांत समारोह के दौरान दलित छात्रों द्वारा कथित आत्महत्याओं की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि पीड़ितों के शोक संतप्त परिजनों के प्रति उनकी संवेदना है। उन्होंने कहा कि मैं सोच रहा हूं कि हमारे संस्थान कहां गलत कर रहे हैं कि स्टूडेंट्स अपनी जान लेने को मजबूर हैं। हाल ही में आईआईटी बॉम्बे में एक दलित छात्र की कथित आत्महत्या की घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हाशिए के समुदायों के साथ ऐसी घटनाएं आम होती जा रही हैं।

जानिए क्या है पूरा मामला

तेलंगाना के हैदराबाद में मौजूद द नेशनल एकेडमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च (एनएएलएसएआर) में 25 फरवरी को आयोजित 19वें दीक्षांत समारोह का आयोजन किया था। इस आयोजन में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चन्द्रचूर्ण बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे। छात्रों को संबोधित करते हुए

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा -"आत्महत्या की ऐसी घटनाएँ भेदभाव के कारण हो रही है। प्रोफेसर सुखदेव थोराट ने नोट किया है कि 'आत्महत्या करने वाले अधिकांश छात्र दलित और अदिवासी हैं। जब इसमें एक पैटर्न दिखे तो हमें सवाल उठाना चाहिए। 75 वर्षों में हमने प्रतिष्ठित संस्थान बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन इससे अधिक हमें संवेदना विकसित करने वाले संस्थान बनाने हैं। मैं इस पर इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि भेदभाव का मुद्दा सीधे तौर पर सहानुभूति की कमी से जुड़ा है।”

सीजेआई ने आगे कहा-"भारत में न्यायाधीशों की अदालत के अंदर और बाहर समाज के साथ संवाद स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है ताकि सामाजिक परिवर्तन पर जोर दिया जा सके। न्यायाधीश सामाजिक वास्तविकताओं से दूर नहीं भाग सकते हैं। CJI ने इसके लिए अमेरिका का भी उदाहरण दिया है। उन्होंने बताया कि कैसे संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय के नौ न्यायाधीशों ने ब्लैक लाइव्स आंदोलन के दौरान एक बयान जारी किया था।"

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “दुनिया भर में न्यायिक संवाद के उदाहरण आम हैं। जब जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन उभरा तो अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के सभी 9 न्यायाधीशों ने ब्लैक लाइव्स के पतन को लेकर संयुक्त बयान जारी किया। हार्वर्ड लॉ स्कूल के प्रोफेसर का कहना है कि लोग भूल जाते हैं कि नागरिक अधिकारों के वकीलों ने काले समुदाय को शिक्षित करने का क्या काम किया था।

CJI चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि वह अपने न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों के अलावा समाज के विभिन्न संरचनात्मक मुद्दों पर भी प्रकाश डालने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हाशिए पर रहने वाले समुदायों के छात्रों के साथ होने वाले सामाजिक भेदभाव को रोकने की दिशा में पहला कदम प्रवेश परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर छात्रावास के कमरे के आवंटन को रोकना होगा। इससे जाति आधारित अलगाव होता है।

उन्होंने यह भी कहा कि सामाजिक श्रेणियों के साथ छात्रों द्वारा प्राप्त अंकों की सूची डालना, दलित और आदिवासी छात्रों को अपमानित करने के लिए सार्वजनिक रूप से अंक माँगना, उनकी अंग्रेजी दक्षता का मजाक बनाना और उन्हें अक्षम के रूप में लेबल करने जैसी प्रथाएँ समाप्त होनी चाहिए।

CJI ने कहा, “दुर्व्यवहार और डराने-धमकाने की घटनाओं पर कार्रवाई नहीं करना, समर्थन नहीं करना, फेलोशिप समाप्त करना, चुटकुलों के माध्यम से रूढ़िवादिता को सामान्य करना ऐसी कुछ बुनियादी चीजें हैं जिन्हें हर शैक्षणिक संस्थान को बंद करना चाहिए।

मैंने दलित छात्र की आत्महत्या के बारे में पढ़ा- CJI

सीजेआई ने कहा, “हाल ही में मैंने IIT बॉम्बे में एक दलित छात्र की आत्महत्या के बारे में पढ़ा। इसने मुझे पिछले साल ओडिशा में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में एक आदिवासी छात्र की आत्महत्या के बारे में याद दिलाया। मैं यह भी सोच रहा हूं कि हमारे संस्थान कहां गलत हो रहे हैं कि छात्रों को अपना कीमती जीवन देने के लिए मजबूर होना पड़ता है।”

गुजरात के रहने वाले प्रथम वर्ष के छात्र दर्शन सोलंकी ने कथित तौर पर 12 फरवरी को IIT बॉम्बे में आत्महत्या कर ली थी। चंद्रचूड़ ने कहा, “हाशिए के समुदायों में आत्महत्या की घटनाएं आम हो रही हैं। ये संख्याएं केवल आंकड़े नहीं हैं। मेरा मानना ​​है कि अगर हम इस मुद्दे का समाधान करना चाहते हैं तो पहला कदम समस्या को स्वीकार करना और पहचानना है।

दलित चिंतक बेजवाड़ा विल्सन चीफ जस्टिस के इस बयान को लेकर कहते हैं-"आम आदमी और सरकार की तरह इस मुद्दे को चिंता का विषय कह देने से दायित्व नहीं पूरा हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट को ऐसी घटनाओं का स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। अन्य घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ऐसा करती है। लेकिन दलितों के मुद्दे पर टिप्पणी करके ही कर्तव्य पूरा कर लिया जाता है। चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट जैसे उच्च स्तर पर ऐसी घटनाओं के आंकड़े एकत्र करवाने चाहिए। उन्हें ऐसी घटनाओं की जांच करवानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट चाहे तो ऐसी घटनाओ के लिए नोटिस भी जारी कर सकता है।

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