मध्य प्रदेशः दलितों के 10 घरों पर चला बुलडोजर, पीड़ित कर रहे 'मुआवजे की मांग'-ग्राउंड रिपोर्ट

बस्ती में दलित समुदाय के करीब 150 लोग 40 घर बनाकर लगभग 50 साल से निवास करते आ रह हैं, जिनमें से 10 मकानों को बुलडोजर द्वारा तोड़ा जा चुका है।
बुलडोजर से मकान गिराने के बाद मौके पर फैला मलबा।
बुलडोजर से मकान गिराने के बाद मौके पर फैला मलबा।सतीश भारतीय

मध्यप्रदेशः सागर जिले में बीते दिनों दलितों के मकानों पर स्थानीय वन विभाग ने बुलडोजर चला दिया, जिसमें 10 दलितों के मकान और 4 लोगों की दुकानें ध्वस्त हो गईं। यह मामला सुरखी विधानसभा के रैंपुरा गांव का है, जहां 21 जून को दलितों के घर पर वन विभाग का बुलडोजर चला। इस कार्रवाई में 6 दलितों के पीएम आवास, 4 दलितों के निजी मकान जमींनदोज कर दिए गए। वहीं, प्रशासन के बुलडोजर ने एक आदिवासी सहित चार लोगों की दुकानें भी धाराशायी कर दीं।

दलितों के घरों को धाराशायी करने के बाद यह बात भी सामने आयी कि वन विभाग ने बुलडोजर से घरों को तोड़ने से पहले, कोई नोटिस, सूचना पत्र पीड़ितों, गांव की पंचायत, सरपंच अन्य को नहीं दिया। सीधे दलितों के घरों को बुलडोजर से तहस-नहस कर दिया। जबकि, दावा किया गया है कि दलित समुदाय के करीब 150 लोग 40 घर बनाकर लगभग 50 साल से निवास करते आ रह हैं, जिनमें से 10 मकानों को बुलडोजर द्वारा तोड़ा जा चुका है।

घरों को रौदें जाने की घटना के बाद राजनीतिक सरगर्मी भी तेज हो गई। ऐसे में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह जब पीड़ितों से मिलने पहुंचे। तब उन्होंने ने कहा कि किसके आदेश पर मकान तोड़े गए उसकी जांच और कार्यवाही होनी चाहिए।

बुलडोजर से मकान गिराने के बाद मौके पर फैला मलबा।
बुलडोजर से मकान गिराने के बाद मौके पर फैला मलबा।सतीश भारतीय

द मूकनायक की टीम ने दलितों के घरों को बुलडोजर से ध्वस्त करने की इस घटना का जायजा लिया और पीड़ितों से बातचीत की। पहले हमारा संवाद कमल अहिरवार से हुआ जो कि मजदूर हैं। वह बताते हैं कि, "21 जून के दिन मैं और मेरे घर वाले सब बाहर थे। ऐसे में वन मंडल ने बिना कोई सूचना दिए, हमारे घर को बुलडोजर से ढहा दिया। घर में मेरी मोटरसाइकिल से लेकर घर का तमाम सामान दब गया।"

कमल आगे कहतें हैं कि, "वन विभाग द्वारा मेरे घर को गिराना, मुझे 6-7 लाख रुपए के नुकसान में ढकेलना है। इस घटना के बाद अभी तब हमारे मुआवजे, उचित निवास की कोई चर्चा नहीं। बस हमें कुछ खाना और कम्बल दिया गया है।"

डेलनसिंह अहिरवार
डेलनसिंह अहिरवार

गांव के ही डेलनसिंह अहिरवार हमें बताते हैं कि, "कोई सूचना दिए बगैर एक घंटे में हमारे मकान की दिशा और दशा बदल दी गई। हमारी करीब 8 लाख रुपए के सामान सहित क्षति हुई है। हमें आश्वासन के आलावा कुछ मिला नहीं, अभी तक मदद के रूप में एक भी रुपए हाथ में नहीं आया है। हमारी मांग है कि नुकसान का मुआवजा दिया जाए।"

आगे हमें इस घटना के साक्षी चौनसिंह अहिरवार बताते हैं कि, "अभी बरसात शुरू होने को है, ऐसे में घरों को तोड़ना, हमारे बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ है। वहीं, हमारी और पशुओं के रहने की कोशिश ढंग की व्यवस्था नहीं है। अभी हम लोगों को स्कूल में ठूस दिया है। पशु बाहर घूम रहे हैं।"

चौनसिंह बताते हैं कि, "सभी पीड़ितों को मिलाकर करीब एक करोड़ का नुकसान हुआ है। हमें नेताओं द्वारा यह आश्वासन भी मिला कि, आवास दिया जाएगा, लेकिन एक-ढेड़ लाख रुपए के आवास से हमारी कई लाखों की भरपाई नहीं होगी।"

स्कूल परिसर में रहने को मजबूर चंद्ररानी अहिरवार।
स्कूल परिसर में रहने को मजबूर चंद्ररानी अहिरवार।सतीश भारतीय

फिर, जब हमने पीड़ित चंद्ररानी अहिरवार से बात की, तब वह बोलती हैं कि, " घरों के तोड़े जाने से हम रोड पर आ गए हैं। हमारा दसों लाख का नुकसान होने के बाद हमें प्रशासन से महज एक बरसाती (तिरपाल) मिली और दो वक्त का भोजन ही दिया जा रहा है।"

अनिल कुमार हमें बताते हैं कि, "हमने मजदूरी की 5-6 लाख रुपए जमापूंजी से चाय-पान की दुकान शुरू की थी। लेकिन, फारेस्ट प्रशासन के बुलडोजर ने एक झटके में दुकान को जमीन पर पसार दिया। अधिकारियों और पुलिस ने हमारा सामान तक दुकान से बाहर ना निकालने दिया।"

आगे हम दीपक आदिवासी के उस ढाबे की तरफ बढ़ते हैं, जिसे वन मंडल के बुलडोजर ने मलबे में तब्दील कर दिया। तब हमें ढाबे के मलबे में दीपक कुछ सामान ढूँढते मिलते हैं। दीपक कहते हैं- "ढाबा हमारी जीविका का साधन था, उसके तोड़े जाने के बाद लाखों नुकसान हुआ, वहीं रोजगार का संकट सिर पर है।"

रैंपुरा गांव के कुछ पीड़ित दलित लोग.
रैंपुरा गांव के कुछ पीड़ित दलित लोग.सतीश भारतीय

इसके बाद हम रैंपुरा गाँव की उस स्कूल में पहुंचे, जहाँ पीड़ितों को रखा गया है। तब दशरथ अहिरवार से हम बातचीत करते हैं। वह कहते हैं कि, "हमारे पुरखों के जमाने से हम इस जगह पर रहते आ रहे हैं, हमारी 5 एकड़ जमीन पर हम खेती भी करते आ रहे हैं। ऐसे में हमारे घरों पर जो हमला हुआ, इसमें प्रशासन का ही हाथ है, प्रशासन ने ही हमें आवास दिया और उसी ने बुलडोजर से धवस्त कर दिया।"

दशरथ आगे बताते हैं कि- "बुलडोजर से हुए इस हमले में राजनीतिक षड्यंत्र है। जब हमने वन विभाग से यह कहा कि, घरों पर बुलडोजर मत चलाइए, तब वन अधिकारियों ने कहा मंत्री को फोन लगा लीजिए, यह कार्यवाई रुक जायेगी।"

आगनबाड़ी में पीड़ित बबीता अहिरवार का परिवार कम सुविधाओं में रहने को मजबूर.
आगनबाड़ी में पीड़ित बबीता अहिरवार का परिवार कम सुविधाओं में रहने को मजबूर.सतीश भारतीय

स्कूल से सटी आंगनबाड़ी में जब हमने प्रवेश किया, तब हम बबीता अहिरवार मिट्टी के चूल्हे में गोबर के ऊबलों के सहारे रोटियां सेंकतीं मिली। बबीता अपना दर्द ऐसे बताती हैं," बरसात के इस मौसम में हमारे घरों को तोड़ना हमारे सामने कई समस्याएं खड़ी करना है। हमारा गैस सिलेंडर खाली है। जलाऊ लकड़ी नहीं है। गोबर के ऊपलों के सहारे खाना बनाना पड़ रहा है।"

आगे, तेज तर्रार लहजे में शांतिबाई अहिरवार कहतीं हैं- "जिस दिन मेरी शादी हुयी है, तब से 50 साल हो चुके हैं, आजतक हमें कभी ऐसा दिन नहीं देखना पड़ा कि, हम रोड पर खड़े हो। लेकिन, आज हमारा घर तोड़े जाने से हम बेघर ही नहीं हुए। हमारा भविष्य अंधकार में घुस गया है। अभी तक हमें केवल मकान और पट्टे का आश्वासन ही मिला है। नेताओं ने लिखित में कुछ नहीं दिया कि, कब हमारा मकान बनेगा, पट्टा मिलेगा और हम पुनः ढंग से स्थापित हो पाएंगे।"

हेमराज अहिरवार .
हेमराज अहिरवार .

वहीं, हेमराज अहिरवार कहना हैं कि, "मैं ढाबा से अपनी रोजी-रोटी चलाता हूँ, लेकिन अब मेरा ढाबा टूट गया। हमने जब ढाबा पर बुलडोजर चलाए जाने का विरोध किया, तब हमें धमकी दी गयी कि, वाहन में बैठाकर जेल भेज देंगे। "

बलराम अहिरवार अपने शब्दों में कहते हैं कि- हम जब 50 साल पहले यहां बसे थे, तब हमें प्रशासन ने क्यों नहीं रोका गया और तब नहीं रोका तो कम से कम जब पीएम आवास बन रहा था, तब रोकना चाहिए था। पीएम आवास बनने के बाद सीधे घरों को धाराशायी कर दिया गया।

वन विभाग के बुलडोजर से पीडि़त लोगों ने हमें यह भी बताया कि, मकान तोड़े जाने के बाद, जब प्रशासनिक अधिकारी हमसे मिलने आये, तब उन्होंने कहा कि, आप लोगों ने पट्टे की मांग क्यों नहीं की? तब हम लोगों ने कहा कि, हम कई साल से पट्टों की मांग करते आ रहे हैं। हमने पट्टा प्राप्ति के लिए कई ज्ञापन पत्र भी प्रशासनिक अधिकारियों को सौंपें। लेकिन, पट्टा तो छोडि़ये, हमें ज्ञापन पत्रों का कोई जवाब तक नहीं मिला।

एक ऐसा ही ज्ञापन पत्र 9 दिसम्बर 2022 को पीडि़त दलितों ने पट्टा प्राप्ति के लिए सागर कलेक्टर को लिखा था। पत्र में वर्णित अंश इस प्रकार है, पटवारी हल्का नंबर 57 मौजा रैंपुरा खसरा नंबर 54/1 रकबा 7 हैक्टेयर के पट्टे दिये जानेबात पत्र में आगे उल्लेखित है कि, ग्राम रैपुरा में 90-95 परिवार भूमिहीन और आवासहीन हैं। उपरोक्त भूमि पर ग्रामीणों को पट्टे दिया जाना अतिआवश्यक है। जिससे प्रधानमंत्री आवास एंव मुख्यमंत्री योजना का लाभ ग्रामीणों को मिल सके। सभी परिवार आदिवासी और दलित है। इसी तरह के पत्रों की प्रतिलिपियाँ मुख्यमंत्री, राजस्व मंत्री और अन्य अधिकारियों को सौंपी गईं।

वन विभाग के बुलडोजर द्वारा दलितों के घरों पर हुआ यह हमला नहीं, दलितों की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक स्थिति पर भी हमला है।

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