डोम समुदाय सीरीज 1: आज भी जातीय भेदभाव का सामना कर रहे डोम समाज के लोग, जानिए कितना पीछे रह गया समाज!

वाराणसी में घाट के किनारे शव का दाह संस्कार [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]
वाराणसी में घाट के किनारे शव का दाह संस्कार [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]

वाराणसी में आधुनिकीकरण के इस दौर में संघर्ष करने वाले डोम समुदाय के लोग आज भी जातीय भेदभाव का शिकार हैं। अब भी यहां सामाजिक स्तर पर जातीवादी प्रथा कायम है। अनुसूचित जाति में आने के बावजूद ये आरक्षण का कोई लाभ नहीं उठा पाते। डोम समुदाय को समाज में अभी भी अस्पृश्य या अछूत समझा जाता है। ऐसे में अगर इनके बच्चे स्कूल जाते हैं, तो उन्हें बाकी बच्चों से अलग बिठाया जाता है।

उत्तर प्रदेश। यूपी के वाराणसी जिले में दलित और अनुसूचित जाति से आने वाले लोगों का अपना ऐतिहासिक महत्व है। यह लोग डोम जाति के नाम से विख्यात हैं। डोम लोगों की जिंदगी लाशों के साथ शुरू होती है और लाशों के साथ खत्म हो जाती है। डोम जाति के लोग सैकड़ों साल से ऐसी जिंदगी जी रहे हैं। यही नहीं शाम और सुबह का खाना भी डोम समाज के लोग अंतिम संस्कार में बची हुई लकड़ियों से ही पकाते हैं। यह काम करने के कारण डोम समाज को अछूत निगाहों से देखा जाता है। समय के अनुसार भले ही जातिय भेदभाव की दीवारों पर आधुनिकीकरण की धूल जम गई हो, लेकिन आज भी यह भेदभाव बरकरार है। लोग डोम व्यक्ति का छुआ आज भी न खाते और न ही उनका दिया पानी पीते हैं। सामने से सबकुछ आसान लगता है लेकिन घाट पर शव का दाह संस्कार करते समय जाति और गोत्र पूछकर ही अग्नि दी जाती है। डोम राजा की मौत के पहले चुनाव में पीएम मोदी ने उन्हें प्रस्तावक बनाया। उन्हें मरणोपरांत पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। आरोप है कि कुछ समय बाद डोम राजा की जमीन कुछ उच्च जाति के लोगों ने कब्जा कर ली। पुलिस और प्रशासन से शिकायत पर भी सुनवाई नही हुई। इस मामले की शिकायत कई बार सीएम योगी से भी की गई। इसके बाद भी न्याय न मिल सका।

चिता के लिए आग लेते हुए दाह संस्कार कराने आए परिजन [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]
चिता के लिए आग लेते हुए दाह संस्कार कराने आए परिजन [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]

जानिए डोम समाज के बारे में?

वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर डोम राजा के नाम से जगदीश चौधरी मशहूर थे। अप्रैल 2020 में उनके देहांत के बाद उनका इकलौता बेटा ओम चौधरी अब डोम राजा हैं। वह अभी मात्र 17 साल के हैं।

जगदीश चौधरी डोम समुदाय से आते हैं। वह वाराणसी में बने घाटों पर अन्त्येष्टि (अंतिम संस्कार) कराने का काम करते थे। डोम समुदाय अनुसूचित जाति में आता है। वाराणसी में गंगा किनारे कई घाट बने हुए हैं। इनमें सिर्फ दो घाटों पर अंतिम संस्कार किया जाता है। झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई का जन्मस्थान वाराणसी था और उनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था, माना जाता है इसी कारण इस घाट का नाम मणिकर्णिका घाट पड़ गया। जबकि दूसरा राजा हरिशचंद्र घाट है। राजा हरिशचंद्र को भारत की एतिहासिक कथाओं में हमेशा सच बोलने और धर्म के रास्ते पर चलने वाला राजा बताया जाता है। इन दोनों घाटों पर अंतिम संस्कार करवाने का काम सिर्फ डोम जाति के लोग करते हैं। इन्हें "डोम राजा" भी कहा जाता है।

डोम समुदाय के लोगों को लेकर अब भी बरकरार है जातीय भेदभाव?

वाराणसी में आधुनिकीकरण के इस दौर में संघर्ष करने वाले डोम समुदाय के लोग आज भी जातीय भेदभाव का शिकार हैं। अब भी यहां सामाजिक स्तर पर जातीवादी प्रथा कायम है।

स्व. डोम राजा जगदीश चौधरी [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]
स्व. डोम राजा जगदीश चौधरी [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]

डोम राजा की सम्पत्ति हड़पने का प्रयास

डोम राजा समुदाय के विवेक चौधरी बताते हैं, "जातीय भेदभाव के कारण ही आज हमें न्याय नहीं मिल पा रहा है। हमारी जमीन पर उच्च जाति के लोगों ने कब्जा कर लिया। पुलिस से शिकायत की गई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। मामा (डोम राजा जगदीश चौधरी) के देहांत के बाद लोग हमारी सम्पत्ति हड़पने में लगे हैं। हमसे घाट छीनने की पूरी कोशिश की जाती है। हम जब इसका विरोध करते हैं तो दलित समुदाय का होने के कारण पुलिस हमें उल्टा ही धमका देती है। इस पर सीएम योगी से भी शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।"

आसान नहीं है डोम होना

डोम का काम अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को सम्पन्न कराना है। उनका समय सिर्फ लाशों के साथ बीतता है। लाश अपने आप में ही एक नकारात्मक चीज है। ऐसे में इसके साथ दिनभर रहना बेहद मुश्किल है। साथ ही, इन्हें ये सुनिश्चित करना होता है कि लाश का हर एक अंग पूरी तरह जल गया हो। कई बार अधजले अंगों को अपने हाथ से ठीक जगह रख पूरा जलाया जाता है। डोम लोग आग के साथ काम करते हैं। ऐसे में उनके लिए काम करते हुए जलना बहुत आम है।

दाह संस्कार के लिए घाट के किनारे रखी गईं लकड़ियाँ, वाराणसी, उत्तर प्रदेश [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]
दाह संस्कार के लिए घाट के किनारे रखी गईं लकड़ियाँ, वाराणसी, उत्तर प्रदेश [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]

बेहद पिछड़ा हुआ समाज है "डोम"

डोम समुदाय सामाजिक रूप से बेहद पिछड़ा हुआ है। अनुसूचित जाति में आने के बावजूद ये आरक्षण का कोई लाभ नहीं उठा पाते। डोम समुदाय को समाज में अभी भी अस्पृश्य या अछूत समझा जाता है। ऐसे में अगर इनके बच्चे स्कूल जाते हैं, तो उन्हें बाकी बच्चों से अलग बिठाया जाता है। उनके पानी पीने, खाना खाने के अलग बर्तन होते हैं। डोम लोगों को ऐसे सामाजिक भेदभाव का सामना रोज करना पड़ता है। शिक्षा ना मिल पाने की वजह से इनके सामाजिक स्तर में कोई सुधार नहीं हो पा रहा है। हालांकि लोगों में अब कुछ बदलाव आया है।

नशा करना आम बात?

डोम लोगों का शराब और गांजा पीना बेहद आम है। इनका मानना होता है कि बिना नशा किए ये अपना काम नहीं कर सकते। स्थिर दिमाग के साथ हमेशा लाशों के साथ रहना संभव नहीं है। ऐेसे में यह नशा कर अपने आप को मानसिक अचेतना की स्थिति में रखकर अपना काम करते हैं। जबकि घर की महिलाएं बस घर का काम करती हैं।

डोम समाज के लोगों की कम उम्र में हो जाती है शादी

डोम समाज से आने वाले लोगों की कम उम्र में ही शादी हो जाती है। परिवार नियोजन जैसी बातें इनके पास नहीं पहुंच पाती हैं। ऐसे में इनके अधिक संख्या में बच्चे होना सामान्य है। इनके घरों की स्थिति भी कोई अच्छी नहीं होती। ये छोटी उम्र से ही लड़कों को इस काम को करवाने की आदत डालते हैं। लड़कियों को घर का कामकाज सिखाकर उनकी शादी कर दी जाती है।

चिता से बची हुई लकड़ियों से भोजन बनाते डोम समाज के लोग, वाराणसी, उत्तर प्रदेश [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]
चिता से बची हुई लकड़ियों से भोजन बनाते डोम समाज के लोग, वाराणसी, उत्तर प्रदेश [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]

अंतिम संस्कार के बाद बची लकड़ियों से बनता है खाना

डोम समाज के लोगों में उनके घर में चूल्हा जलाने के लिए अंतिम संस्कार में बची हुई लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है।

केवल पुरुष की करते हैं यह काम

इस समुदाय के केवल पुरुष ही दाह संस्कार कराने का काम करते हैं। महिलाएं इस काम में नहीं आती हैं। अंतिम संस्कार करवाने के लिए इन्हें रुपये मिलते हैं। वाराणसी में इन दोनों घाटों के पास डोम समुदाय की बस्ती है। अंतिम संस्कार का काम दिन और रात दोनों समय होता है। ऐसे में वाराणसी में डोम समुदाय के लोग शिफ्ट लगाकर काम करते हैं।

जानिए क्या है वाराणसी शहर का महत्व?

वाराणसी शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है— "वरुणा" और "अस्सी"। आनन्दवन नाम से जाने जाने वाले स्थान से दो नदियां गुजरती थी। इस कारण इस शहर का नाम वाराणसी पड़ गया। ये दोनों नदियां आगे जाकर गंगा में मिल जाती हैं। ऐसे ही इनके नामों को मिलाकर वाराणसी बना।

ऐतिहासिक महत्व

हिन्दू पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान शिव और पार्वती एक बार वाराणसी आए थे। पार्वती मणिकर्णिका घाट के पास स्नान करने लगीं और उनका एक कुंडल गिर गया जिसे कालू नाम के एक राजा ने अपने पास छिपा लिया। कई लोग कालू को राजा की जगह एक ब्राह्मण बताते हैं। शिव और पार्वती को तलाश करने पर यह कुंडल नहीं मिला तो शिव ने गुस्से में आकर कुंडल को अपने पास रखने वाले को नष्ट हो जाने का श्राप दे दिया। इस श्राप के बाद कालू ने आकर शिव से क्षमा याचना की। शिव ने नष्ट होने के श्राप को वापस लेकर उसे श्मशान का राजा बना दिया। उसे श्मशान में आने वाले लोगों की मुक्ति का काम करवाने और इसके लिए उनसे धन लेने का काम दिया गया। कालू के वंश का नाम डोम पड़ गया। डोम में हिन्दू मान्यताओं के पवित्र शब्द ओम की ध्वनि होती है।

वाराणसी में एक मंदिर में डोम के रूप में कर की मांग करते हुए राजा हरिश्चंद्र की तस्वीर [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]
वाराणसी में एक मंदिर में डोम के रूप में कर की मांग करते हुए राजा हरिश्चंद्र की तस्वीर [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]

एक दूसरी कथा जो विख्यात है

डोम जाति से जुड़ी एक पौराणिक कथा राजा हरीशचंद्र की भी है। राजा हरीशचंद्र की कोई संतान नहीं थी। भगवान वरुण के आशीर्वाद से उनके रोहिताश्व नाम का एक बेटा हुआ। हरीशचंद्र बहुत दानी हुआ करते थे। एक ऋषि विश्वमित्र ने उनकी परीक्षा लेने के लिए उनसे उनका पूरा राजपाठ दान में मांग लिया। हरीशचंद्र ने इसे दान दे दिया। इसके बाद भी विश्वमित्र ने और दान मांगा तो हरीशचंद्र ने खुद को और अपनी पत्नी और बेटे को भी बेच दिया। हरीशचंद्र ने खुद को वाराणसी के एक डोम को बेचा और पत्नी और बेटे को एक ब्राह्मण को।एक दिन राजा हरिश्चंद्र के बेटे रोहिताश्व की सांप के काटने से मौत हो गई। उनकी पत्नी जब बेटे को अंतिम संस्कार के लिए लेकर गईं तब राजा हरिश्चन्द्र घाट पर मौजूद थे। उन्होने उन्हें अंतिम संस्कार करने से रोक दिया। अंतिम संस्कार से पूर्व भिक्षा मांगी। लेकिन पैसे न होने के कारण हरिश्चंद्र की पत्नी ने अपना आँचल फाड़कर दान कर दिया। इस तरह की पौराणिक कथाएं डोम जाति के बारे में प्रचलित हैं।

हिन्दू वर्ण व्यवस्था में सबसे नीचे आते हैं डोम समाज के लोग

पौराणिक कथाओ और हिन्दू वर्ण व्यवस्था के अनुसार डोम हिन्दू वर्ण व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर आने वाले शूद्र वर्ण की एक जाति हैं। इनका काम मृतकों का अंतिम संस्कार करवाना होता है। यह परंपरा अभी भी चलती आ रही है।

वाराणसी के एक मंदिर में पूजा पाठ करता श्रद्धालु [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]
वाराणसी के एक मंदिर में पूजा पाठ करता श्रद्धालु [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]

वाराणसी से क्यों है खास लगाव?

हिन्दू परंपराओं के मुताबिक वाराणसी भगवान शिव द्वारा बसाया गया एक शहर है। यहां पर मरने और अंतिम संस्कार होने वाले व्यक्ति को मोक्ष मिल जाता है। ऐसे में बहुत सारे हिन्दू मरने के बाद वाराणसी में अंतिम संस्कार करवाना चाहते हैं। वाराणसी में डोम जाति के लोग ये काम करते हैं। हिन्दू धर्म में अंतिम संस्कार के लिए लाश को जलाया जाता है। वाराणसी में डोम ही चिता जलाने के लिए संतान के हाथ में आग देते हैं, साथ ही अंतिम क्रियाकर्म के लिए होने वाला सारा काम डोम करते हैं।

प्रधानमंत्री ने डोम राजा को बनाया था प्रस्तावक

वाराणसी की कुछ पुरानी पहचानों में डोम राजा भी शामिल हैं। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी वाराणसी के साथ अपना भावनात्मक जुड़ाव दिखाने के लिए उन्हें प्रस्तावक बनाकर साथ लेकर गए।

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