नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) की एक छात्रा द्वारा 1 नवंबर को आत्महत्या करने का मामला सामने आया है। छात्र संगठन बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन (BAPSA) ने आरोप लगाया है कि संस्थागत दबाव ने छात्रा को यह कदम उठाने पर मजबूर किया।
मकतूब मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, 19 वर्षीय यह छात्रा देशबंधु कॉलेज की दलित छात्रा थी और वह गोविंदपुरी स्थित अपने फ्लैट में मृत पाई गई। वह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (JNUSU) के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार राज रतन राजोरिया की बहन थीं। राजोरिया JNUSU चुनाव में BAPSA का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
BAPSA ने कहा कि यह आत्महत्या दिल्ली विश्वविद्यालय में हाशिए पर मौजूद छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य समर्थन और उनके साथ होने वाले व्यवस्थागत भेदभाव के प्रति निरंतर उपेक्षा को दर्शाती है। मकतूब मीडिया ने राजोरिया के हवाले से कहा, "पुलिस का इस मामले को संभालने का तरीका बेहद असंवेदनशील था। अधिकारी मौके पर डॉक्टर के बिना पहुंचे और डॉक्टर को बुलाने के अनुरोध को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि बहुत देर हो चुकी है।"
छात्र संगठन ने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने राजोरिया से ही अपनी बहन की नब्ज (vitals) जांचने के लिए कहा और मौखिक रूप से उसे मृत घोषित कर दिया। छात्रा का शव 2 नवंबर को परिवार को सौंपा गया, जिसके बाद परिवार मध्य प्रदेश के लिए रवाना हो गया।
राजोरिया को 2 नवंबर को अध्यक्षीय भाषण (presidential address) देना था, लेकिन इस घटना के कारण वह ऐसा नहीं कर सके। इस संवेदनशील स्थिति को देखते हुए, JNU के छात्र संगठनों, DUSU चुनाव समिति (DUSU Election Committee) और अन्य अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों ने एकजुटता दिखाते हुए बहस को स्थगित करने का फैसला किया, ताकि राजोरिया बाद में इसमें भाग ले सकें।
राजोरिया ने अपनी बहन की आत्महत्या के बाद की प्रारंभिक जांच के दौरान एक भी महिला अधिकारी के मौजूद नहीं होने पर चिंता जताई। BAPSA ने बयान दिया कि दिल्ली विश्वविद्यालय अपने केवल 1 प्रतिशत छात्रों को ही छात्रावास (hostel) की सुविधा प्रदान करता है।
संगठन ने कहा कि छात्रावासों की ऊंची फीस, इंटरव्यू-आधारित चयन और 'स्थानीय अभिभावक' (local guardian) जैसी आवश्यकताएं, इन छात्रावासों को हाशिए के समुदायों के छात्रों के लिए काफी हद तक पहुंच से बाहर बना देती हैं। इसके कारण छात्रों को तंग और महंगे, छत वाले या एक-कमरे वाले आवास किराए पर लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
एसोसिएशन के अनुसार, मृतका एक खराब रखरखाव वाले फ्लैट में रहती थी, जिसमें न तो उचित वेंटिलेशन (ventilation) था और न ही वहां का माहौल सुरक्षित था। APSA ने कहा कि यह घटना दिल्ली विश्वविद्यालय की हाशिए पर पड़े छात्रों, विशेषकर दलित और बहुजन पृष्ठभूमि के छात्रों के प्रति चल रही "संस्थागत उदासीनता" (institutional apathy) को उजागर करती है।
एसोसिएशन ने इस बात पर भी जोर दिया कि DU के पास अपने सात लाख से अधिक छात्रों और हजारों कर्मचारियों के लिए नॉर्थ कैंपस में केवल एक विजिटिंग मनोचिकित्सक (psychiatrist) है, और कोई भी क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक (clinical psychologist) नहीं है।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.