नायिका रोहिणी-मैंने बचपन से उस दर्द को झेला जिससे समाज पिछड़ा रहा है!

रोहिणी विदेश में रहकर पीएचडी कर रही है, उनको मध्यप्रदेश सरकार से विदेश में पढ़ाई के लिए 1 करोड़ का स्कालरशिप मिला है। अबतक उन्होंने 10 अपने जैसे वंचित समाज से आने वाले स्टूडेन्ट को स्कालरशिप प्राप्त करने में मदद की है।
नायिका रोहिणी-मैंने बचपन से उस दर्द को झेला जिससे समाज पिछड़ा रहा है!

भारत में महिलाओं को घर से निकलने के अवसर कम मिल पाते हैं, चाहे फिर वह शादीशुदा हो या फिर कालेज में अपने शहर में रहकर पढ़ाई करने वाली लड़की हो, समाज अभी तक लड़कियों के लिए उस तरह की सोच स्थापित नहीं कर पाया, जिससे वह आजादी से जी सकें। यह विचार है पीएचडी स्कॉलर रोहिणी के। आपको बता दे कि इंदौर मध्य-प्रदेश से आने वाली रोहिणी घावरी के पिता शिव घावरी सामाजिक कार्यकर्ता है। मां नूतन घावरी सफाईकर्मी है। रोहिणी स्विट्जरलैंड के विश्वविद्यालय में शोध छात्रा है।

रोहिणी ने द मूकनायक को बताया कि पापा हमेशा बाबासाहब के संघर्षों की चर्चा करते रहते थे, जिसकी बदौलत उन संघर्षों को समझने के बाद समाज के लिए कुछ सार्थक करने की प्रेरणा मिली।

'द मूकनायक' से रोहिणी ने बताया कि उनकी पढ़ाई केन्द्रीय विद्यालय से हुई। एमबीए करने के बाद मध्यप्रदेश सरकार से एक करोड़ की स्कालरशिप मिली, उसके बाद पीएचडी की पढाई के लिए स्विट्जरलैंड गईं।

वो बताती है मेरे मम्मी मेरे पापा ने जिस दर्द को झेला उसको पार करके हमें यहां तक पहुंचाया। पापा ने हम चारों भाई-बहनों को पढ़ने से कभी नहीं रोका, जिसकी बदौलत आज मेरी बहन डेंटिस्ट और एक बहन LLB कर रही है, भाई IIT से पढ़ाई कर रहे हैं।

सोशल मीडिया पर रोहिणी मुखरता से अपनी बात रखती हैं, साथ ही वह लड़कियों की शिक्षा को लेकर भी अपनी बात रखती है। रोहिणी ने बताया कि जिस जगह से मैं आती हूं। वहां तकरीबन 80 - 90 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 - 20 की उम्र में कर दी जाती है। मगर मैं अब यहां विदेश में जहां अब रह रही हूं। यहां पर 50 प्रतिशत लड़कियां अकेले रहकर पढ़ाई और नौकरी करती है।

रोहिणी आगे कहती है शादी अगर ज़रूरी होती तो 100% लोग दुनिया में शादी करते, शादी अगर उपलब्धि होती तो भारत रत्न,पद्मश्री इसके लिए भी दिया जाता। इस दुनिया में अगर जो सबसे ज़रूरी है वो है अपनी पहचान बनाना। वरना हज़ारों लोग रोज़ मरते है ओर कोई उन्हें याद नहीं रखता।

रोहिणी बताती है कि, भारत में सीवर में होने वाले हादसे गलत है। सरकार 1000 -500 का लालच देकर उनको मरने के लिए उस दलदल में क्यों उतार रही है। ILO कहता है कि ये सब गलत है। जहां मैं अब रहती हूं और अन्य देशों में भी इन सब पर बैन है। मैं लगातार ILO में संपर्क कर रही हूं, मैंने (रोहिणी घावरी), बैजवाडा़ विल्सन और चन्द्रशेखर आजाद हम लगातार इस पर काम कर रहे है। भारत में होने वाली मौतों पर रोक लगनी चाहिए। विदेशों में जिस तरह ये सब काम मशीनों से होता है। अब भारत में भी ये सब मशीनों से होना चाहिए।

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