बॉम्बे हाई कोर्ट ने दलित Phd छात्र की टीआईएसएस से निलंबन को रखा बरकरार

कोर्ट ने कहा कि संस्थान की कार्रवाई न तो भेदभावपूर्ण थी और न ही यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ थी।
बॉम्बे हाई कोर्ट
बॉम्बे हाई कोर्टA. Savin
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नई दिल्ली— बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को दलित पीएचडी छात्र रामदास के एस द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) द्वारा "बार-बार अनुशासनहीनता और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों" के आरोप में किए गए निलंबन को चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा कि संस्थान की कार्रवाई न तो भेदभावपूर्ण थी और न ही यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ थी।

न्यायमूर्ति चंदुरकर और एम एम साथाये की पीठ ने टीआईएसएस के स्कूल ऑफ डेवलपमेंटल स्टडीज से रामदास को दो वर्षों के लिए निलंबित करने के 18 अप्रैल, 2024 के आदेश को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा, "हम इस मामले में हस्तक्षेप करने की कोई वजह नहीं पाते हैं। याचिका में कोई दम नहीं है और इसे खारिज किया जाता है।"

रामदास ने टीआईएसएस की सशक्त समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की थी, जिसमें उनके निलंबन की सिफारिश की गई थी। उनका तर्क था कि जांच मनमानी तरीके से की गई थी, उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और उन्हें व्यक्तिगत रूप से अपनी बात रखने का अवसर नहीं दिया गया। उन्होंने समिति के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल उठाया।

इसके जवाब में, टीआईएसएस ने कहा कि उसकी कार्रवाई संस्थान की नीतियों के अनुरूप थी। संस्थान ने 2016-2017 पीएचडी हैंडबुक का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि अनुशासनात्मक फैसलों के खिलाफ अपील निदेशक (अब कुलपति) के पास की जानी चाहिए। टीआईएसएस ने यह भी बताया कि मार्च 2024 में एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया गया था, जो छात्रों द्वारा की गई गंभीर अनुशासनहीनता के मामलों को संभालने के लिए बनाई गई थी।

कोर्ट ने पाया कि रामदास ने जनवरी 2024 में दिल्ली में केंद्र सरकार की कथित छात्र-विरोधी नीतियों के खिलाफ एक प्रदर्शन में भाग लिया था। अदालत ने कहा कि यह टीआईएसएस के उन नियमों का उल्लंघन था, जो छात्रों को सार्वजनिक रूप से संस्थान का नाम लेकर राजनीतिक विचार व्यक्त करने से रोकते हैं। जून 2023 में जारी एक परिपत्र में छात्रों को ऐसी गतिविधियों में शामिल होने पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी गई थी।

हाई कोर्ट ने कहा, "यह जांच उसी परिपत्र के अनुसार की गई है। यह मामला न तो भेदभाव का है और न ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने का, बल्कि संस्थान के नाम का राजनीतिक विरोध प्रदर्शनों में उपयोग करने का है। यदि ऐसी गतिविधियाँ संस्थागत नियमों के तहत प्रतिबंधित हैं, तो उल्लंघन के परिणामस्वरूप आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।"

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि निलंबन आदेश में कोई "अनियमितता या गैरकानूनी तत्व" नहीं है और टीआईएसएस के फैसले को बरकरार रखा।

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