बिहार: ‘जश्न -ए –बचपन’ की पहली प्रस्तुति में ही दलित और वंचित वर्ग के बच्चों ने दिखाई अभिनय प्रतिभा

समर चैरिटेबल ट्रस्ट 'थिएटर इन एजुकेशन' की प्रक्रिया के तहत नाटकों का मंचन किया गया. निर्देशन उदय प्रताप सिंह और उत्तम कुमार ने किया और परिकल्पना भी उन्हीं की थी.
बिहार: ‘जश्न -ए –बचपन’ की पहली प्रस्तुति में ही दलित और वंचित वर्ग के बच्चों ने दिखाई अभिनय प्रतिभा

पटना: बिहार की राजधानी पटना रंगमंच से जुड़ी गतिविधियों के लिए बहुत ही जीवंत और समृद्ध शहर है. ऐसे शहर के लिए 10 सितंबर का दिन बहुत खास रहा. ऐसा इसलिए नहीं कि किसी नाटक की शानदार प्रस्तुति हुई बल्कि इस दिन को खास बनाया नाटक के स्टेज पर उतरने वाले बच्चों ने.

दरअसल बीते रविवार 'जश्न-ए-बचपन' के आयोजन में पटना के झुग्गी बस्तियों के बच्चों ने पहली बार मंचीय प्रस्तुति दी. इनमें से लगभग सभी बच्चे दलित और वंचित वर्ग के परिवारों से थे. पटना के कालिदास रंगालय में जिन बच्चों ने दर्शकों को अपनी प्रतिभा से रू-ब-रू कराया वे कमला नेहरू नगर, चैली ताल और मंगल अखाड़ा स्थित झुग्गी बस्तियों में रहते हैं. इन बच्चों ने क्रमशः तू छुपी है कहाँ (लेखक- इश्तियाक अहमद), छुट्टी का दिन (लेखक -उत्तम कुमार) और अंधेर नगरी (लेखक - भारतेंदु हरिश्चंद्र) नाटकों में शानदार अभिनय कर दर्शकों का दिल जीत लिया. 'जश्न-ए-बचपन' नामक आयोजन समर चैरिटेबल ट्रस्ट 'थिएटर इन एजुकेशन' की प्रक्रिया के तहत किया गया. इन नाटकों का निर्देशन उदय प्रताप सिंह और उत्तम कुमार ने किया और परिकल्पना भी उन्हीं की थी.

बच्चों ने सीखा जीवन का पाठ

इन बच्चों को करीब एक साल तक अभिनय सिखाया गया. इस लंबे शिक्षण-प्रशिक्षण के दौरान बच्चों ने अभिनय के बहाने बेहतर जिंदगी जीने के दूसरे हुनर भी सीखे. अंधेर नगरी नाटक में गोवर्धनदास की भूमिका निभाने वाले सम्राट कुमार, जो मंगल अखाड़ा में रहते हैं, ने बताया, "नाटक की तैयारी मिल-जुल कर करनी पड़ती है. एक अकेला बच्चा नाटक नहीं कर सकता. इससे मैने यह सीखा और जाना कि जीवन में कैसे हमें मिल-जुल कर रहना चाहिए और साथ मिल कर काम करना चाहिए."

वहीं मंगल अखाड़ा के ही कृष्णा कुमार ने कहा, "पहले मैं किसी के सामने एक शब्द नहीं बोल पाता था. नाटक सीखने से मुझमें कॉन्फिडेंस आया है."

कार्यक्रम के अंत में जब सभी बच्चों को मेडल और प्रमाणपत्र देकर प्रोत्साहित और सम्मानित किया गया तो यह न सिर्फ बच्चों बल्कि उनके परिवार के लिए भी गौरव का यादगार पर बन गया.

बच्चियों ने समाज के सामने रखी अपनी समस्याएं

भारत के राष्ट्रपति द्वारा 2015 का 'संगीत नाटक अकादमी सम्मान' से सम्मानित रंगकर्मी परवेज़ अख्तर इस आयोजन के विशिष्ट अतिथि थे. उन्होंने नाटकों के मंचन के बाद कहा, "सबसे उपेक्षित और हाशिए पर के बच्चों को इस प्रक्रिया के द्वारा केंद्र में लाने की कोशिश की गई है. रंगमंच लोगों को अच्छा मनुष्य, शहरी और नागरिक बनाता है और उन्हें संस्कारित करता है. समर ट्रस्ट की इस कोशिश ने भी बच्चों में ऐसे मूल्यों का बीजारोपण किया है." उन्होंने आगे कहा, "यह खुशी की और सीखने की बात है कि बच्चों ने अपने अंदाज में, अपनी तोतली जबान में आज के चुनौतीपूर्ण माहौल में समाज के समस्याओं को प्रस्तुत करने की कोशिश की है."

बच्चों के अभिनय कौशल पर इस प्रख्यात रंगकर्मी ने कहा कि बच्चे मेहनत करें तो उनसे और बेहतर प्रदर्शन की जा सकती है बशर्ते उन्हें मार्गदर्शन और मौका मिले.

इन तीनों नाटकों से जुड़ी एक बात खास यह थी कि बाल रंगकर्मियों में लड़कियों की संख्या बहुत ज्यादा थी. इतना ही नहीं कार्यक्रम के आखिरी नाटक "तू छुपी है कहां" में भ्रूण हत्या, बाल विवाह, दहेज जैसी लड़कियों को बड़ी समस्याओं को संबोधित करने की कोशिश की गई. परवेज अख्तर ने लड़कियों के इस भागीदारी पर खुशी जाहिर की और वर्तमान सामाजिक राजनीतिक माहौल में इसे जरूरी बताया.

"गरिमा और अस्मिता के प्रति सजग बनाने की कोशिश"

नाटकों के जरिए बच्चों के शिक्षण-प्रशिक्षण की प्रक्रिया से जुड़े अपने अनुभव साझा करते हुए बच्चों द्वारा अभिनीत नाटकों के निर्देशकों में से एक उदय प्रताप सिंह ने बताया, "बच्चों को प्रशिक्षित करते हुए मैंने पाया कि वे नाटक सीखने हुए वे अपने समाज के अन्य हम-उम्र बच्चों से अलग सोचने की कोशिश कर रहे हैं. इस तरीके से उनकी रचनाशीलता को बाहर आने का मौका मिला." वहीं दूसरे निर्देशक उत्तम कुमार ने कहा कि शुरू में कुछ बच्चियों के पिता ने उनके नाटक सीखने पर एतराज जताया था, लेकिन समय के साथ सब न सिर्फ राजी हो गए बल्कि उन्होंने हौसला भी बढ़ाया. उत्तम कुमार के मुताबिक कई बच्चों में अच्छे अभिनेता बनने के तमाम गुण हैं बशर्ते कि इन्हें मौका मिले और वे मेहनत करें.

यह आयोजन 'समर' के सामुदायिक शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रम का हिस्सा था. समर ट्रस्ट के सचिव सरफराज ने बताया, "थिएटर के माध्यम से झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों के बीच अपनी गरिमा और अस्मिता के प्रति सजग बनाने का भी प्रयास किया जा रहा है." उन्होंने आगे कहा कि 'समर' ने भी यह पाया कि बच्चे पारंपरिक तरीके से पढ़ना ज्यादा पसंद नहीं करते हैं. ऐसे में बच्चों को न सिर्फ पढ़ाने बल्कि उनके समग्र और सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास के लिए 'थिएटर इन एजुकेशन' की रोचक पद्धति का इस्तेमाल किया गया. इसके तहत न सिर्फ बच्चों को अभिनय सिखाया गया बल्कि उन्हें पेंटिंग, गीत-संगीत और कविता एवं कहानी पाठ करने संबंधी प्रशिक्षण भी दिए गए. इस प्रक्रिया का एक मकसद उन्हें अपनी समस्याओं को सामने लाने का तरीका सिखाना भी है ताकि वे भविष्य के कम्युनिटी लीडर बन सकें.

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