मध्यप्रदेशः दो साल की कानूनी लड़ाई लड़ अतिक्रमण मुक्त कराई जमीन, लगाई दलित-आदिवासी क्रांतिकारियों की प्रतिमा

देवास में खातेगांव तहसील के हरण गांव में अंतरराष्ट्रीय आदिवासी क्रांतिवीर गाथा स्थापना और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आगाज किया गया। इस दौरान पहली बार एक साथ 6 क्रांतिवीरों की प्रतिमाएं उस जमीन पर स्थापित की गईं, जहां पहले अतिक्रमण हुआ करता था।
दलित आदिवासी क्रांतिकारियों की प्रतिमाएं।
दलित आदिवासी क्रांतिकारियों की प्रतिमाएं।

सतीश भारतीय

भोपालः देवास में खातेगांव तहसील के हरण गांव में अंतरराष्ट्रीय आदिवासी क्रांतिवीर गाथा स्थापना और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आगाज किया गया। इस दौरान पहली बार एक साथ 6 क्रांतिवीरों की प्रतिमाएं उस जमीन पर स्थापित की गईं, जहां पहले अतिक्रमण हुआ करता था।

अब इस जमीन पर, बिरसा मुन्डा, डॉ. भीमराव आंबेडकर, रेगा कोरकू, टंटया भील, शंकर शाह और रघुनाथ शाह जैसे क्रांतिकारियों की प्रमिमाएं विद्यमान हैं।

इस कार्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे आदिवासी समुदाय के नेता और सामाजिक कार्यकर्त्ता रामदेव ककोड़िया से इस अवसर पर द मूकनायक की बात हुयी। वह बताते है कि,

"आज जिस शासकीय (10 हजार वर्ग फिट) जमीन पर महापुरुषों की मुर्तियां स्थापित की गयीं, पहले वहां बीजेपी के कुछ नेता लोगों का कब्जा था। जिसे हटाने के लिए हमने दो साल लड़ाई लड़ी। तब ये मूर्तियां स्थापित कर पाए।"

कार्यक्रम में उमड़ी लोगों की भीड़।
कार्यक्रम में उमड़ी लोगों की भीड़।

द मूकनायक के इस सवाल पर कि, यह मूर्तियां क्यों लगाई गईं ? के जबाव में रामदेव कहते हैं कि, "जिस प्रकार से हमारे क्रांतिकारियों को भुलाया जा रहा हैं। उन्हें इतिहास के पन्नों में ढंग से जगह नहीं दी गयी। ऐसे में हमने अपने क्रांतिकारियों को और उनके विचारों को, याद रखने, ऐतिहासिक बनाने, के लिए ये प्रतिमाएं स्थापित कीं

आगे वे कहते हैं: "इन प्रतिमाओं के अनावरण से यहां आदिवासी समुदाय में काफी खुशी का माहौल है। कार्यक्रम में कई जिलों और छत्तीसगढ़, महाराष्ट, राजस्थान, गुजरात जैसे अन्य राज्यों से लोग और विभिन्न सामाजिक संगठन भी शामिल हुए। जिन्होनें आदिवासी वर्ग पर हो रहे अत्याचारों पर विमर्श किया। आज मध्यप्रदेश आदिवासी अत्याचार में नंबर 1 है। ऐसे में समाज को आज क्रांतिकारियों के विचारों द्वारा कैसे बचाया जाए, इस जनजाग्रति के लिए भी यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। क्योंकि हमारे नेता लोग है, चाहे वह कांग्रेस के हो या बीजेपी के हो। उन्हें न तो समाज की चिंता है और न हमारे महापुरुषों की। वह केवल राजनैतिक रोटियां सेकने में लगे हुए हैं।"

कार्यक्रम आयोजन समिति के सदस्य।
कार्यक्रम आयोजन समिति के सदस्य।

फिर आगे द मूकनायक ने एक और सामाजिक कार्यकर्ता करन नाग्बेल से कांतिवीरों की प्रतिमाओं और कार्यक्रम को लेकर बातचीत की। वह कहते है कि, "1857 में जो आदिवासी क्रांतिवीरों ने आजादी की लड़ाई लड़ी थी। अपना बलिदान दिया था। वास्तविकता में आज दिखाई नहीं देता कि इनकी क्रांति क्या थी? इसलिए हमने इन प्रतिमाओं को महत्व दिया, ताकि इन्हें देखकर समाज में जाग्रति पैदा हो।"

वह आगे कहतें हैं: "इस आयोजन में विभिन्न प्रदेशों से आये सर्वआदिवासी लोगों ने अपनी-अपनी बोली, भाषा में विचार रखते हुएआदिवासी होने का प्रमाण दिया।" अंत में करन कहते हैंः "हमारे क्रांतिवीरों के विचार ही हमारे अधिकार है।"

वहीं, इस कार्यक्रम में सेवा डांस ग्रुप भोपाल, जय सेवा डांस, ग्रुप कन्नौद, सीहोर और बैतूल से आए कलाकारों ने सांस्कृतिक प्रतुतियों का भी प्रदर्शन किया। इस अंतरराष्ट्रीय आदिवासी क्रांतिवीर गाथा स्थापना और सांस्कृतिक कार्यक्रम में करीबन 50-60 हजार आदिवासी आवाम ने शिरकत की। देवास में क्रांतिकारियों को लेकर हुआ यह कार्यक्रम अब तक का देवास का सबसे व्यापक कार्यक्रम भी माना गया। कार्यक्रम में आदिवासी! आदिवासी!, संविधान की रक्षा कौन करेगा, हम-हम करेंगे! हम करेंगे! जैसे अन्य नारे भी लगाये गये। इस कार्यक्रम से आदिवासी एकतत्व को भी दृढ़ता मिली।

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