जाति सूचक टिप्पणी अगर पब्लिक के सामने हो तभी बनेगा SC-ST केस: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा एससी एसटी एक्ट की धारा-3 कहती है कि जानबूझकर विक्टिम को जाति के आधार पर अपमानित किया गया है, और यह पब्लिक के सामने हुआ हो।
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट फोटो साभार- इंटरनेट

नई दिल्ली: एससी एसटी एक्ट में से जुड़े एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा जाति सूचक टिप्पणी अब पब्लिक के सामने होगी, तभी एससी एसटी एक्ट के तहत मामला बनेगा। नवभारत टाइम्स में छपी खबर के अनुसार इससे जुड़ा एक केस सबसे पहले लोअर कोर्ट में पहुंचा था। वहां से अर्जी खारिज कर दी गई थी। फिर केस हाई कोर्ट में पहुंचा तो FIR के आदेश जारी कर दिए गए। इसके बाद आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए यह फैसला दिया।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमएम सूंदरेश की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, कि अगर मामले में आप स्पष्ट नहीं हैं, और अपराध के लिए जो फैक्ट होने चाहिए, उसे बारे में डिटेल नहीं है। तो ऐसे मामले में कैस दर्ज कर छानबीन का आदेश जारी किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा एससी एसटी एक्ट की धारा-3 कहती है कि जानबूझकर विक्टिम को जाति के आधार पर अपमानित किया गया है, और यह पब्लिक के सामने हुआ हो।

क्या था मामला पूरा मामला?

29 अप्रैल 2018 को आरोपी ने दिल्ली के फतेहपुर बेरी थाने में शिकायत की थी। पीड़ित ने कहा कि आरोपी ने उनके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध किया है। 9 मई 2018 को पीड़ित साकेत कोर्ट पहुंचा था, जहां अर्जी खारिज हो गई। फिर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में केस पहुंचा था।

झूठे फंसाए गए मामले कम होगे

16 अगस्त 1989 को एससी एसटी कानून बनाया गया था। यह कानून एससी और एसटी समुदाय से जुड़े लोगों को स्वाभिमान और हितों की रक्षा व सम्मान के लिए बनाया गया था। यह मामले गैर जमानती अपराध की श्रेणी में आते हैं। इस तरह देखा जाए तो यह कानून है ताकि विक्टिम को प्रोटेक्ट किया जा सके। मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो व्यवस्था दी है। वह बेहतर अहम है। इससे इस तरह के मामले झूठे फंसाए जाने के अंदेशे को कम किया जा सकेगा। और यह नजीर के तौर पर पेश हो सकेगा।

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