
हरियाणा: दुनिया में आज भी ऐसे लोग हैं जो अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए जीते हैं। उद्योगपति और कारोबारी तो दान करते ही हैं लेकिन चंद ऐसे लोग भी हैं जो खुद मुफलिसी में जीवन बिताकर दूसरों में लिए अपना सबकुछ अपर्ण कर देते हैं । रतन टाटा को सभी जानते हैं जो अपनी कमाई का 60 फीसदी हिस्सा चैरिटी और देश के विकास के लिए खर्च करते हैं लेकिन हरियाणा के कैथल के रहने वाले फकीर चंद गर्ग खामोशी से वर्षों से समाज सेवा करते आए हैं । सोशल मीडिया की वजह से फकीरचंद की दरियादिली लोगों के सामने आई है।
खास बात यह है कि फकीर चंद कोई उद्योगपति या धन्ना सेठ नहीं बल्कि दिनभर कबाड़ इकठ्ठा करने और बेचने का काम करने वाले एक साधारण आदमी हैं। और रद्दी का काम करके उन्होंने जो पैसा अब तक इकट्ठा किया है, उससे वे 5 गरीब बेटियों की शादी का खर्चा उठाकर उनका घर बसा चुके हैं। फकीरचंद के परिवार में पांच भाई-बहन थे। गरीबी के कारण किसी का विवाह नहीं हुआ। सभी का एक-एक कर देहांत हो गया।
अब फकीर चंद अपने परिवार में एकमात्र जीवित सदस्य हैं। वह जो कुछ कमाते हैं ,उसका कुछ हिस्सा अपने गुजर बसर के लिए छोड़कर, बाकी सबकुछ दान कर देते हैं। फकीरचंद ने अपनी मृत्यु के बाद रिहायशी इलाके में बने अपने 200 गज के घर को भी दान करने की बात कही है। इस मकान की कीमत एक करोड़ से अधिक है।
हरियाणा में कैथल के अर्जुन नगर के खनौरी रोड बाईपास की गली नम्बर एक में टूटा-फूटा मकान बना हुआ है। एक कमरे के इसी मकान में फकीर चंद गर्ग (53) रहते हैं। फकीर चंद ने द मूकनायक प्रतिनिधि को बताया -'मैं बहुत ही गरीब परिवार से हूं। मेरी दो बहनें और दो भाई समेत हम लोग थे। गरीबी के कारण किसी का विवाह नहीं हो सका। सभी का देहांत हो चुका है। पिछले साल मेरे छोटे भाई का देहांत फरवरी 2022 में हुआ था। वह तीन साल से लंबी बीमारी से लड़ रहा था। उसके ईलाज के लिए मैने तीन साल पैसा जोड़ा था। इसके साथ ही भाई-बहन के द्वारा जोड़े रुपये भी मेरे पास ही थे। उनकी मौत के बाद मुझे मिल गए। मेरे छोटे भाई की मौत के बाद मेरे खाते में 22 लाख की रकम बची थी। इसलिए मुझे समझ नहीं आ रहा था मैं इस रकम का क्या करूँ? "
फकीरचंद द मूकनायक प्रतिनिधि को बताते हैं-'मैं चाहता तो बैठकर भी पूरी उम्र खा सकता था और सभी एशो-आराम कर सकता था, लेकिन मैं मेहनत में विश्वास करता हूं। जब तक मेहनत करता रहूंगा, शरीर भी ठीक रहेगा और शायद जन्म में किए गए पुण्य का फल मुझे अगले जन्म में मिल जाए। मैं पिछले 25 वर्षों से गत्ता व कबाड़ चुगने का काम कर रहा हूँ। मैं पैदल ही दुकानों से गत्ता खरीदता हूँ और फिर उसे कबाड़ी को बेच देता है। गत्ता बेचकर उसे जो भी बचता है, उसे वह दान में दे देता है।
फकीर चंद बताते हैं-' मैं एक दिन में 600 से 700 रुपए कमा लेता हूँ। पहले मैं इन पैसों को बैंकों में जमा करवा देता है, फिर जब पैसे इक्ट्ठा हो जाते हैं तो उसे दान या सामाजिक कार्यों में लगा देता हूं।'
फकीर चंद कि इस रवैये के लोग भी कायल हैं। फकीर चंद जैसा समाज सेवी व दान करने वाला शायद ही कोई देश में हो। फकीर चंद द्वारा दिए गए दान की बात की जाए तो अब तक वे 5 गरीब लड़कियों की शादी करवा चुका हैं। प्रत्येक लडक़ी को शादी में करीब 75 हजार रुपए का सामान भी दिया। फकीरचंद की छवि एक शरीफ और भोले इंसान की है। वे आज भी मेहनत में विश्वास रखते है। लाखों रुपये दान करने वाले फकीरचंद के पास आज भी कीपैड वाला फोन है।
सम्पति के नाम पर शहर की मुख्य सड़क पर 200 गज का प्लॉट है जिसमे सिर्फ 1 कमरा बना हुआ है। बाहर छोटा सा लोहे का गेट बना हुआ है, जिसपर ताला नहीं लगा है। कमरे में लगभग इकट्ठा किया हुआ कबाड़ पड़ा है. एक पंखा एक पलंग, एक पुराना संदूक, कुछ बर्तन व दीवारों पर लगी ढेर सारी भगवानों की मूर्तियां कमरे में है।
फकीरचंद ने कैथल गोपाल धर्मशाला में भी गऊओं के लिए एक शैड बनवाया, जिस पर करीब 3 लाख रुपए खर्च आया। नंदीशाला गौशाला कैथल में भी गायों के शैड के लिए 4 लाख रुपए दान दे चुके हैं। नई अनाज मंडी कैथल के नजदीक बनी गौशाला में भी 4 लाख रुपए दान दे चुके हैं। अरुणाय मंदिर पिहोवा में बनी कैथल वालों की धर्मशाला में भी 1 लाख 70 हजार रुपए की लागत से शैड बनवा चुके हैं।
निर्माणाधीन नीलकंठ मंदिर कैथल में भी फकीर चंद अब तक 12 से 13 लाख रुपए दान दे चुके हैं। वृद्ध आश्रम कमेटी चौक कैथल में 2 लाख 30 हजार रुपए से कमरा बनवा चुके हैं। खाटू श्याम मंदिर कैथल में भी 3 लाख 60 हजार रुपए से शैड बनवाया है।
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