स्मृति शेषः हाशिए के समाज की बुलंद आवाज प्रो. चौथीराम यादव का मौन हो जाना

काशी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रोफेसर चौथीराम यादव का 83 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
साहित्यकार प्रोफेसर चौथीराम यादव. (फाइल फोटो)
साहित्यकार प्रोफेसर चौथीराम यादव. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली। 'इतना सक्रिय, समाज, संस्कृति के लिए इतना फिक्रमंद बेहद कम लोगों को मैंने देखा है, जितना चौथीराम जी थे। उम्र के जिस पड़ाव पर थे, वह और भी आश्चर्य चकित करता था।" स्त्रीकाल पत्रिका के संपादक संजीव चंदन अपनी फेसबुक वॉल पर प्रो. चौथीराम यादव को कुछ इस तरह याद करते है।

इसीप्रकार कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की शोध छात्रा सरिता माली अपनी फेसबुक वॉल पर लिखती है-"कभी-कभी मृत्यु कितना कुछ छीन लेती है। विश्वविद्यालय में पिछड़े समाज से हिंदी अकेडमिक्स में आने वाली पीढ़ी के लोगों के लिए कॉन्फिडेंस थे आप, आप हमारे पुरखे थे।"

काशी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रोफेसर चौथीराम यादव ने गत रविवार को जब 83 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। उनके देहांत का समाचार सार्वजनिक होते ही सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर श्रद्धांजलि संस्मरणों की बाढ़ सी आ गई। श्वांस की समस्या के चलते उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहां कार्डियक अरेस्ट से उनकी मौत हो गई। वे प्रख्यात हिंदी विद्वान आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे। उनके अंतिम बचे शिष्यों में से एक थे।

प्रोफेसर चौथी राम यादव आज पंचतत्व में विलीन हो गए। उनके पुत्र अशोक यादव ने उन्हें मुखाग्नि दी। मौत से महज 2-3 घंटे पहले ही प्रोफेसर चाैथीराम यादव ने फेसबुक पर पोस्ट भी किया था। उन्होंने ज्याेतिबा फूले के आंदोलन पर एक बड़ा लेख लिखा था।

प्रो. काशीनाथ सिंह के साथ गलबहियां करते प्रो. चौथीराम यादव (बाएं)। - फाइल फोटो
प्रो. काशीनाथ सिंह के साथ गलबहियां करते प्रो. चौथीराम यादव (बाएं)। - फाइल फोटो

जौनपुर में पैदा हुए थे चौथी राम

प्रो. चौथीराम यादव का जन्म 29 जनवरी 1941 को जौनपुर के कायमगंज में हुआ था। वाराणसी से ही उनकी कर्मस्थली रही। BHU से शिक्षा लेने के बाद यहीं पर हिंदी विभाग में प्रोफेसर बने। उन्होंने छायावादी काव्य : एक दृष्टि, मध्य कालीन भक्ति काव्य में विरहानुभूति व्यंजना, हिंदी के श्रेष्ठ रेखाचित्र किताबों का संपादन किया। उन्हें साहित्य साधना सम्मान, कबीर सम्मान, लोहिया सम्मान और अंबेडकर सम्मान भी मिल चुका है।

राजनैतिक विसंगतियों पर करते थे करारा प्रहार

प्रोफेसर चौथी राम एक छायावादी काव्य के पुरोधा थे। साथ ही BHU में हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष और एक्टिविज्म में भरोसा रखने वाले इंसान थे। रिटायरमेंट के बाद भी अक्सर ही BHU के सेमिनार और लेक्चर्स में बोलते दिख जाया करते थे। ढेर सारे सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर एक एक्टिविस्ट की तरह लेखकीय दायित्व और स्पीकर का निर्वहन करते थे। साहित्य और समाज में सक्रिय रूप से अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते रहे। उम्र के इस पड़ाव पर भी वो देश भर में घूम- घूम कर सामाजिक और राजनीतिक विसंगतियों के खिलाफ आवाज उठाई।

आलोचना की ठसक आवाज शांत

बीएचयू हिंदी विभाग के प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल कहते हैं कि हिंदी आलोचना की एक ठसक भरी आवाज शांत हो गई। एक भरपूर, स्वाधीन और सक्रिय साहित्यिक जीवन जीते हुए प्रो. चौथीराम यादव ने इस जीवन को अलविदा कहा। एक बौद्धिक के साथ वे आंदोलन धर्मी रहे और स्त्री व दलित से जुड़े आंदोलनों में सक्रिय रहे।

सबसे बीच में नामवर सिंह और सबसे बाईं ओर प्रो. चौथीराम यादव। - फाइल फोटो
सबसे बीच में नामवर सिंह और सबसे बाईं ओर प्रो. चौथीराम यादव। - फाइल फोटो

हाशिए के समाज से लेकर समाज के हाशिए तक को समझने में उनकी समान गति थी। भक्तिकाल में कबीर और आधुनिक काल में हजारी प्रसाद द्विवेदी से जुड़कर उनकी आलोचना का विकास हुआ। बौद्धिक स्तर पर बुद्ध और आंबेडकर को वह एक साथ समझते थे। तकनीकी की दुनिया में भी गजब की रुचि थी। कह सकते हैं वह कि जीवन का पोर-पोर जीते थे।

आचार्य परंपरा की अंतिम कड़ी थे प्रो. चौथीराम

साहित्यकार डॉ. राम सुधार सिंह कहते हैं कि प्रो. चौथीराम यादव काशी की आचार्य परंपरा की अंतिम कड़ी थे। विद्वता के साथ-साथ उनका सहज व्यक्तित्व उन्हें सबसे अलग करता था। भक्ति काल को नए ढंग से देखने की उनके अंदर समझ थी। सेवानिवृत्ति के बाद भी वह सामाजिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भागीदारी करते थे।

कई सम्मान से नवाजे गए थे प्रो. चौथीराम

प्रो. चौथीराम यादव को साहित्य साधना सम्मान, लोहिया साहित्य सम्मान, कबीर साहित्य सम्मान समेत कई सम्मान से सम्मानित किया गया था। उनकी प्रमुख कृतियों में छायावादी काव्य : एक दृष्टि, मध्यकालीन भक्तिकाव्य में विरहानुभूति की व्यंजना, हिंदी के श्रेष्ठ रेखाचित्र, हजारी प्रसाद द्विवेदी का समग्र पुनरावलोकन, लोक और वेद आमने-सामने आदि शामिल हैं।

साहित्यकार प्रोफेसर चौथीराम यादव. (फाइल फोटो)
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