संत रविदास: जातिप्रथा के विरूद्ध सदियों पहले आवाज़ उठाने वाले संत, जिन्होंने समाज को दिया एकजुट होने का संदेश

संत रविदास का नाम भारत के उन महान संतों में गिना जाता है, जिन्होंने पूरा जीवन समाज सुधार के कार्य करते हुए व्यतीत किया। वो ईश्वर को पाने का एक ही मार्ग जानते थे और वो है- ‘भक्ति’। उनका एक मुहावरा आज भी बहुत प्रसिद्ध है, ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’।
संत रविदास.
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नई दिल्ली। जातिप्रथा की वजह से होने वाले सामाजिक भेदभाव का इतिहास बहुत पुराना है। आज़ादी के बाद संविधान के जरिए इसके उन्मूलन के प्रयास शुरू हुए जो कुछ हद तक दलितों और हाशिए पर रह रहे समुदायों को समान अधिकार के लिए जागरूक करने में कामयाब रहे हैं। हालांकि, देश में कई ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने सदियों पहले ही जाति की इस कुप्रथा के विरूद्ध समाज में जागरूकता फैलाने का काम शुरू कर दिया था। संत रविदास उन्हीं में से एक हैं जिनकी जयंती आज देशभर में मनाई जा रही है।

1377 ई. में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में जन्मे संत रविदास को रैदास, रोहिदास और रूहिदास के नाम से भी जाना जाता है। रविदास का जन्म जिस जाति में हुआ उसका पारंपरिक व्यवसाय जूते बनाने का काम था, जो उस काल में निम्न जाति का माना जाता था। उनके पिताजी भी यही पारंपरिक काम करते थे।

समाज से जाति विभेद को दूर करने में संत रविदास का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वह एक भक्तिकालीन संत और महान समाज सुधारक थे। एक निम्न जाति माने जाने वाले गरीब परिवार में जन्म लेने के बावजूद, संत रविदास ने अपना जीवन मानव अधिकारों और समानता के उपदेश के लिए समर्पित कर दिया। संत रविदास का नाम भारत के उन महान संतों में गिना जाता है, जिन्होंने पूरा जीवन समाज सुधार के कार्य करते हुए व्यतीत किया। वो ईश्वर को पाने का एक ही मार्ग जानते थे और वो है- ‘भक्ति’। उनका एक मुहावरा आज भी बहुत प्रसिद्ध है, ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’।

संत रविदास एक समाज सुधारक संत के साथ ही बहुत प्रसिद्ध कवि भी थे। उनकी कुछ कविताएँ सिख समुदाय के सबसे पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब जी का हिस्सा हैं। भक्तिकालीन रहस्यवादी कवियित्री और भगवान श्रीकृष्ण की प्रबल भक्त, मीरा बाई ने भी गुरु रविदास को अपना आध्यात्मिक गुरु माना। रविदास भक्ति आंदोलन, हिंदू धर्म में भक्ति और समतावादी आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में उजागर हुए। 15वीं शताब्दी में रविदास जी द्वारा चलाया गया भक्ति आंदोलन उस समय का एक बड़ा आध्यात्मिक आंदोलन था।

समाज के लिए गुरु रविदास का योगदान

संत रविदास जी वह संत थे, जिन्होंने लोगों को प्रेम और सौहार्द का पाठ पढ़ाया। रविदास जी ने अपना संपूर्ण जीवन समाज से जाति भेदभाव को दूर करने और समाज सुधार व समाज कल्याण कार्यों में समर्पित कर दिया। भक्ति आंदोलन के माध्यम से संत रविदास ने मानव अधिकारों और समानता के महत्व के बारे में शिक्षा दी और उपदेश दिया। उनकी शिक्षाओं ने लोगों के दृष्टिकोण को बदल दिया और उन्हें जीवन में सही रास्ते पर लाया। संत रविदास जाति का भेदभाव मिटाकर लोगों को एकजुट करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। रविदास जी की शिक्षाएं विशेषकर रविदासिया समुदाय को बहुत प्रभावित करती हैं और वे जाति, पंथ या लिंग की परवाह किए बगैर सभी लोगों की समानता में विश्वास करते हैं।

भक्ति और ध्यान में ही गुरु रविदास का जीवन समर्पित रहा। उन्होंने भक्ति के भाव से कई गीत, दोहे और भजनों की रचना की, आत्मनिर्भरता, सहिष्णुता और एकता उनके मुख्य धार्मिक संदेश थे। हिंदू धर्म के साथ ही सिख धर्म के अनुयायी भी गुरु रविदास के प्रति श्रद्धा भाव रखते हैं। रविदास जी की 41 कविताओं को सिखों के पांचवे गुरु अर्जुन देव ने पवित्र ग्रंथ आदिग्रंथ या गुरुग्रंथ साहिब में शामिल कराया था।

संत रविदास ने शिक्षा के महत्व पर जोर दिया और अपने शिष्यों को उच्चतम शिक्षा पाने के लिए प्रेरित किया। अपने शिष्यों को शिक्षित कर उन्हें समाज की सेवा में समर्थ बनाने के लिए प्रेरित किया।

रविदास जयंती और उसका इतिहास

प्रत्येक वर्ष माघ पूर्णिमा के दिन रविदास जी के सम्मान में इनके जन्मदिन को गुरु रविदास जयंती के रूप में मनाया जाता है। रविदासिया सम्प्रदाय के लिए इस दिन का वार्षिक मौलिक महत्व है। गुरु रविदास जयंती भारत के उत्तरी भाग में मनाए जाने वाले सबसे प्रतीक्षित त्योहारों में से एक है। गुरु रविदास जयंती विशेष रूप से पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा राज्यों में मनाई जाती है।

भारत में संत रविदास की जयंती के इस विशेष अवसर को मनाने के लिए विभिन्न देशों से भी लोग आते हैं और अनुष्ठानों को पूरा करने के लिए भक्त पवित्र नदी में डुबकी लगाते हैं। साथ ही कीर्तन-भजन का भी आयोजन किया जाता है। इस दिन रविदास जी के जीवन से जुड़ी घटनाओं को उनके शिष्य याद करते हैं और उससे प्रेरणा लेते हैं।

हालांकि, संत रविदास जी की जन्मतिथि को लेकर कई मत हैं। लेकिन रविदास जी की जन्म की तिथि को एक दोहा प्रचलित है, जिसके अनुसार― ‘चौदस सो तैंसीस कि माघ सुदी पन्दरास। दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री गुरु रविदास’। इसका अर्थ है कि गुरु रविदास का जन्म माघ मास की पूर्णिमा को रविवार के दिन संवत 1433 को हुआ था। इस वर्ष रविदास जयंती आज माघ पूर्णिमा के दिन 24 फरवरी 2024 को मनाई जा रही है।

संत रविदास के कुछ दोहे जो समानता और मेलजोल का पाठ सिखाते हैं

मन चंगा तो कठौती में गंगा

इस दोहे का अर्थ है कि अगर आपका मन साफ है और आप किसी के बारे में गलत नहीं सोचते, तो आपके मन में स्वंय ईश्वर का वास होता है। ऐसे में आपको गंगा या फिर किसी और पवित्र स्थान में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मन पवित्र होने पर ईश्वर आपके साथ सदा होता है।

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,

रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात

इस दोहे में संत रविदास जाति से समाज को होने वाली हानि के बारे में बात करते हैं। इस दोहे का अर्थ है कि जिस तरह केले के तने को छिलते रहने से उसके नीचे से पत्ते ही पत्ते निकलते रहते हैं और अंत में पूरा पेड़ ही खत्म हो जाता है। कुछ इसी तरह लोगों को भी जातियों में बांट दिया गया है। अंत में लोग मर जाते हैं, खत्म हो जाते हैं लेकिन उनकी जातियां खत्म नहीं होती।

रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।

तैसे ही अंतर नहीं, हिंदूअन तुरकन माहि।

इस दोहे के माध्यम से रविदास जी कहते हैं कि जिस तरह सोना जब कंगन बन जाता है, तो दोनों में अंतर नहीं रहता। उसी तरह हिंदू और मुस्लिम में भी कोई अंतर नहीं है।

करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास

इस दोहे में कर्मों का महत्व बताते हुए संत रविदास जी कहते हैं कि मनुष्य को हमेशा अपने कर्मों पर भरोसा रखना चाहिए। इन कर्मों के अनुसार मिलने वाले फल की आशा उसे कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि हमारा धर्म केवल कर्म करते जाना है। यही हमारा सौभाग्य है।

दास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच,

नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच

इस दोहे का अर्थ है कि किसी घर विशेष में जन्म लेने से कोई व्यक्ति नीच नहीं बन जाता है बल्कि इंसान के कर्म ही इस बात का निश्चय करते हैं कि वो असल में क्या है? बुरे कर्म करने वाला व्यक्ति नीच होता है।

कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा, वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा

मेलजोल का संदेश देते हुए संत रविदास जी कहते हैं कि राम, कृष्ण, हरि, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही भगवान के नाम है। यहां तक कि वेद, कुरान, पुराण में भी एक ही भगवान का गुणगान किया हुआ है, बस उनके नाम अलग-अलग है। ये सभी सदाचार का संदेश देते हैं।

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