बहुजन नायक: राजू केंद्रे ने अथक परिश्रम से तोड़ी विषमताओं की बेड़ियां, टीचर बन समाज में फैला रहे शिक्षा का उजाला

बहुजन नायक: राजू केंद्रे ने अथक परिश्रम से तोड़ी विषमताओं की बेड़ियां, टीचर बन समाज में फैला रहे शिक्षा का उजाला

अभाव युक्त परिवेश में अक्सर लोगों की शिक्षा बाधित होती है जिसके कारण जरूरतमंद लोगों को अक्सर स्कूली स्तर की शिक्षा भी छोड़नी पड़ती है ताकि वह अपने परिवार के जीवन यापन में मदद कर सके। राजू केंद्रे ने भी ऐसी ही परिस्थियों का सामना किया। वह विदर्भ के एक आदिवासी किसान परिवार से आते हैं और उन्हें सीमित शिक्षा प्राप्त हुई है। यहाँ तक की उन्हें मराठी के शब्द पढ़ने में भी दिक्कत होती है। विदर्भ देश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में आता है और यहां लोग लगातार आर्थिक चुनौतियों का सामना करते आ रहे हैं जिसके कारण यहाँ काफी गरीबी है और किसानों की आत्माहत्या का दर बहुत ज्यादा है, लेकिन राजू सारे अवरोधों को पार कर के अपने परिवार के पहले प्रथम पीढ़ी के शिक्षित बने हैं।

चुनौतियों का सामना

स्कूली शिक्षा के बाद राजू स्नातक की पढ़ाई के लिए पुणे आ गए किन्तु यहाँ उन्हें सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा और बढ़ती आर्थिक चुनौतियों के कारण उन्होंने दूरस्त शिक्षा का रास्ता चुना। उन्होंने यशवंत राव चव्हाण मुक्त विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। इसी दौरान उन्होंने एक गैर सरकारी संस्थान "मेलघाट मित्र" के साथ काम किया जो की आदिवासी समूहों के लिए काम करता है।

अपने पोस्ट-ग्रेजुएशन के लिए, केंद्रे ने TISS तुलजापुर (महाराष्ट्र) में और सामाजिक कार्य और ग्रामीण विकास में डिग्री हासिल की, यह कोर्स उनकी रुचियों के साथ जुड़ा हुआ था क्योंकि इसने उन्हें जमीनी स्तर पर काम करने का अवसर प्रदान किया।

एकलव्य अकादमी लर्निंग सर्कल
एकलव्य अकादमी लर्निंग सर्कल

बढ़ता दायरा

केंद्रे ने यह महसूस किया कि उनके जैसे कई लोग हैं, जिनके पास काबिलियत है पर परिस्थितियों के आगे बेबस हैं। 2017 में उन्होंने एकलव्य इंडिया फाउंडेशन की नींव रखी जहां शुरू में उनके पास केवल 7 ही विद्यार्थी थे। उन्होंने यह संस्था महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में स्थापित की। यवतमाल विदर्भ का एक पिछड़ा जिला है। पिछले कुछ वर्षों में यह फाउंडेशन राज्य के कई जिलों में फैल गया है।

द मूकनायक के साथ बातचीत करते हुए राजू केंद्रे ने बताया कि एकलव्य इंडिया फाउंडेशन मुख्यतः उच्च शिक्षा क्षेत्र में काम करता है और फाउंडेशन ने करीब 700 ऐसे बच्चों की मदद की है जो की अपने परिवार में प्रथम पीढ़ी के शिक्षित हैं। ऐसे बच्चों को TISS (टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज), अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय, IIT एवं IIM में दाखिला मिला है। उन्होंने बताया कि उन्होंने ग्लोबल स्कॉलर्स प्रोग्राम नाम का एक प्रोग्राम भी शुरू किया है इसमें यह विद्यार्थियों को विदेशी शिक्षा के लिए प्रशिक्षण देते हैं। इस प्रोग्राम का उद्देश्य अगले दस साल में 2000 वैश्विक स्कॉलर तैयार करना है।

विदर्भ से ब्रिटेन तक आशाओं की उड़ान

केंद्रे को आगे चल कर SOAS, UK में दाखिला मिला पर इसमें पढ़ने के लिए धन की कमी सामने आई। सौभाग्य से उनको प्रतिष्ठित स्कालरशिप मिल गई जिससे उनकी शिक्षा का पूर्ण व्यय निकल गया अन्यथा वह अपनी ज़मीन बेच कर भी फीस भुगतान नहीं कर पाते।

जमीनी कार्य को मिली अंतर्राष्ट्रीय पहचान

केंद्रे के काम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचाना गया है और उन्हें फोर्बेस अंडर 30 तथा हिंदुस्तान टाइम्स अंडर 30 में भी स्थान मिला है। इस वर्ष वह इंडिया-UK Achievers Honors के लिए चुने गए हैं और उनके साथ इस सम्मान को पाने वालों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राज्य सभा सांसद राघव चढ्ढा, अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा शामिल थे। केंद्रे ने बताया की अवार्ड में वंचित समूहों का प्रतिनिधित्व सीमित था किन्तु अवार्ड एक प्रेरणा स्रोत की तरह काम करेगा।

मुफ्त शिक्षा के हिमायती

केंद्रे स्नातकोत्तर और परास्नातक तक मुफ्त शिक्षा के हिमायती हैं। वह निजीकरण को बढ़ावा देने के पक्ष में भी नहीं हैं। विदेशी विश्वविद्यालयों के भारत में आने के सवाल पर वह कहते हैं कि हालाँकि अभी इन यूनिवर्सिटीज में अफर्मेटिव एक्शन की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है किन्तु यदि वह 20-30 लाख की महंगी फीस लेंगे तो वंचित वर्गों के विद्यार्थी कैसे पढ़ पाएंगे?

एकलव्य में छात्रों के साथ राजू
एकलव्य में छात्रों के साथ राजू

अच्छी खबर यह है कि राजू वंचित समूहों के बच्चों को सशक्त करने की इस मुहिम में अकेले नहीं है। नालंदा के अनूप कुमार व लखनऊ के देव प्रताप सिंह भी इसी दिशा में लगे हैं और उन्होंने कई बहुजन स्टूडेंट्स का मार्गदर्शन किया है और सफलता भी दिलाई है।

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