दिल्लीः कौन है रामकुमार, जिन्होंने बदल दी कई दृष्टिहीन लड़कियों की जिंदगी?

बैटल फॉर ब्लाइंड्स फाउंडेशन के संचालक दृष्टिहीन लड़कियों को पढ़ाने में करते है मदद, ज्यादातर लाभार्थी लड़कियां अनुसूचित जाति से हैं।
फाउंडेशन संचालक रामकुमार दृष्टिहीन लड़कियों के साथ।
फाउंडेशन संचालक रामकुमार दृष्टिहीन लड़कियों के साथ।The Mooknayak

नई दिल्ली। मेघा की 6वीं क्लास में ही आंखों की रोशनी चली गई, जैसे-तैसे उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की। परिवार के लोग उन्हें आगे नहीं पढ़ाना चाहते थे, लेकिन एक एनजीओ के सम्पर्क में आने के बाद उन्हें कॅरियर गाइडेंस और पढ़ाई में मदद मिली। उन्होंने प्रतियोगी परीक्षा पास की। अब वे रक्षा मंत्रालय में लोवर डिवीजन क्लर्क के पद पर नौकरी कर रही है। वे अपनी सफलता का श्रेय 'बैटल फॉर ब्लाइंड्स फाउंडेशन' के संचालक रामकुमार को देती है। द मूकनायक अपनी मूक से मुखर श्रेणी में इस नायक की कहानी लेकर आया है।

रामकुमार बिहार से हैं। दिल्ली में पढ़ाई के बाद कम्पनी चला रहे थे। 2022 में बैटल फॉर ब्लाइंड फाउंडेशन एनजीओ शुरू किया। द्वारका इलाके में 8 ब्लाइंड्स लड़कियों की कैपेसिटी का एक छोटा सा शेल्टर होम भी खोला। वे दृष्टिहीन लड़कियों को पढ़ाई लिखाई से लेकर कॉम्पिटिटिव एग्जाम प्रिपरेशन और इंटरव्यू तक की तैयारी में सपोर्ट करते हैं।

रामकुमार.
रामकुमार.

द मूकनायक को राम कुमार बताते हैं- "मेरे पिता आर्मी में थे। बचपन से ही हमें डिसिप्लिन में रहने की आदत थी। मुझे भी पापा की तरह बड़े होकर फौज में जाना था। मैं ज्वाइन भी किया, लेकिन स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों की वजह से वहां पर ढंग से काम नहीं कर पाया।"

कोरोना ने दी सीख

राम आगे बताते हैं कि-"कोरोना के समय में सभी अपनी जान बचाना चाहते थे। उस समय मुझे भी कोरोना हुआ था। घर वाले मुझे वापस बुला रहे थे। लोग पैदल, साइकिल अन्य साधन के जरिए, बस अपने घर पहुंचना चाहते थे। ऐसा लगता था कि शायद ही मैं घर पहुंच पाऊंगा। क्योंकि कोरोना ने उस समय सबको डरा रखा था। एक दिन मैं मेडिकल स्टोर पर दवाई लेने के लिए गया। वहां मैंने एक ब्लाइंड कपल को देखा जो भीख मांग रहे थे। तभी से सोचा कि मुझे दृष्टिहीन लोगों के लिए कुछ करना चाहिए।"

दृष्टिहीन लोगों को ढूंढा

"कोरोना से ठीक होने में 10 से 15 दिन का समय लग गया। ठीक होने के बाद दृष्टिहीन लोगों को ढूंढना शुरू किया। कोरोना के समय में दृष्टिहीन लोग ज्यादातर अपने घर पर ही थे। बाहर निकलना उनके लिए मुश्किल था। उनके राशन भी चाहिए था। मैंने राशन इकट्ठा करके, उनके पास तक पहुंचाने का काम किया। इस दौरान मैं बहुत सारे दृष्टिहीन लोगों से मिला।"

दृष्टिहीन लड़कियों को पढ़ाते रामकुमार।
दृष्टिहीन लड़कियों को पढ़ाते रामकुमार।The Mooknayak

दृष्टिहीन लड़कियों को ज्यादा जरूरत है

राम आगे बताते हैं कि -"अगर दृष्टिहीन लड़के हैं, तो उनको कहीं भी रूम मिल सकता है। लड़कियों की सुरक्षा को लेकर हर जगह थोड़ी परेशानी होती हैं। वह लड़कियां जो देख नहीं सकती। उनकी थोड़ी परेशानी बढ़ जाती है। हमें लगा कि हमें दृष्टिहीन लड़कियों के लिए ज्यादा काम करना होगा। मैंने कुछ कोचिंग सेंटरों के साथ टाइ अप किया। रिजल्ट बहुत अच्छा रहा। मेरी एक विद्यार्थी मेघा है। जिनकी 6वीं क्लास में ही आंखों की रोशनी चली गई। उन्हें कॅरियर गाइडेंस के साथ एग्जामिनेशन हॉल तक सपोर्ट मिला। अब रक्षा मंत्रालय में लोवर डिवीजन क्लर्क के पद पर नौकरी पाई है।"

मंथली स्कॉलरशिप भी

द्वारिका इलाके में 8 दृष्टिहीन गर्ल्स की कैपेसिटी का एक छोटा सा शेल्टर होम खोला। जिनके पैरेंट्स नही हैं, उन्हें 1200 रुपए मंथली स्कॉलरशिप उपलब्ध कराते हैं। रेलवे, बैंकिंग, एसएसबी जैसे प्रमुख प्रतियोगी परीक्षाएं देने में उनकी मदद करते हैं। उनकी संस्था द्वारा लगभग 40 दृष्टिहीन मदद पा रहे हैं। वह कहते हैं कि हर साल 5 से 7 बच्चों को सरकारी जॉब में सेलेक्शन होता है।

सेल्टर होम पर भोजन करती दृष्टिहीन लडकियां।
सेल्टर होम पर भोजन करती दृष्टिहीन लडकियां।The Mooknayak

राम ज्वाइनिंग होने पर लेते हैं 1 रुपया

राम जी अपने यहां पढ़ने वाली लड़कियों से कोई पैसा नहीं लेते। हॉस्टल में तो बहुत सारे बच्चे रहते हैं। उनका कोई पैसा नहीं होता। बस जब किसी का भी सेलेक्शन होता है, तब वह उनसे 1 रुपया लेते हैं। उनके पास अब तक चार सिक्के आ चुके हैं। पांचवां सिक्का उनके पास आने वाला है। वह इनको संजोकर रखना चाहते हैं।

नहीं रखते कोई पुरुष सहायक

राम जी बताते हैं कि सहायता के लिए मैंने हर स्टेट में एक सहायक रखा हुआ है, लेकिन परीक्षा दिलवाने के लिए मैं खुद लड़िकयों के साथ जाता हूं। क्योंकि मैं किसी पर भरोसा नहीं कर सकता। यह लड़कियां देख नहीं सकती हैं। ऐसी स्थिति में मैं उनके साथ ही परीक्षा केंद्र तक जाता हूं। मैंने कोई पुरुष सहायक भी नहीं रखा है। अपने शेल्टर होम में, मैं खुद 7ः30 बजे तक ही रुकता हूं। उसके बाद में केंद्र पर नहीं जाता है।

90 प्रतिशत लड़कियां अनुसूचित जाति से हैं

राम ने एक बड़ी बात बताई कि जब मैं सेंटर के लिए कुछ लोगों के पास गया, तो मुझे वहां बोला गया कि आप अगर किसी मुस्लिम लड़की या किसी अनुसूचित जाति की लड़की को सिखाएंगे तो मैं आपको यह अनुमति नहीं दे सकता। मुझे यह बात सुनकर बहुत अजीब लगा। मैंने उनसे कहा कि आप कौन होते हैं यह सब कहने वाले। मैं ब्लाइंड लड़कियों के लिए काम करता हूं। मेरा काम जाति-धर्म से ऊपर है।

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