दलित अपने वोट की ताकत को पहचाने: डॉ. आरएस प्रवीन

R. S. Praveen Kumar
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कांग्रेस, भाजपा, तेलंगाना राष्ट्रीय समिति और कम्युनिस्ट पार्टियों ने दलितों-आदिवासियों को छला है। मात्र एक वोट बैंक समझा है। हमारे वोट लेकर ये पार्टियों सत्ता में आईं। इनके लोगों ने अकूत संपत्ति अर्जित की। बड़े आराम से रहते हैं और दलितों को खुद के हाल पर छोड़ दिया है। बहुजन अधिकार यात्रा से हम समाज के लोगों को एकजुट होने व अपने वोट की कीमत पहचानने की अपील कर रहे हैं। यह विचार भूतपूर्व आईपीएस अधिकारी व तेलंगाना बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. आरएस प्रवीण ने द मूकनायक वरिष्ठ उपसंपादक प्रतीक्षित सिंह से साक्षात्कार में व्यक्त किए। पेश है साक्षात्कार के प्रमुख अंशः-

प्रश्नः डॉ. प्रवीण, क्या आप बहुजन अधिकार यात्रा के बारे में बता सकते हैं कि यह कब शुरू की। यात्रा ने अब तक किन-किन गांव-शहरों को कवर किया है?

जवाब- बहुजन अधिकार यात्रा का मकसद बहुजन आंदोलन के महापुरुषों के सन्देश को लोगों तक पहुँचाना है। गौतम बुद्ध से लेकर बहन कुमारी मायावती तक किए गए कामों को बताना है। बहन मायावती द्वारा मुख्यमंत्री रहते हुए किए गए कार्यों को लोगों तक पहुंचाना है। वहीं तेलंगाना में भी वैसे ही कार्य करने की आवश्यकता है। हम इसी इरादे के साथ आगे बढ़ रहे हैं। हमने 1200 गांव तक का सफर पिछले 147 दिनों में तय किया है। हम 18000 किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं। हमें लोगों से ऐतिहासिक समर्थन मिल रहा है।

प्रश्नः तेलंगाना में बसपा की खास पैठ नहीं बना पाई है, इसके क्या कारण हैं। कम्युनिस्टों ने दलित आंदोलन को हाईजैक कर लिया है?

जवाब: इसके कई कारण हैं। एक प्रमुख कारण है कि दलित और बाकी गरीब तबके की उग्रता को कम्युनिस्ट और उच्च जाति के सुधारकों ने हाईजैक कर लिया है। इन वर्गों की उग्रता को या तो दमन के जरिए दबा दिया गया या बहला-फुसला कर को-ऑपरेट कर लिया गया है। शासक वर्ग द्वारा चाहे वह कांग्रेस में हो या तेलंगाना राष्ट्रीय समिति हो, जबकि उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं था। वहां पर एक सशक्त वाम आंदोलन नहीं था। नक्सलवादी सक्रियता भी नहीं थी। मान्यवर कांशीराम तेलंगाना आंध्र प्रदेश में 1989 में आए थे। उनको बहुत अच्छा समर्थन मिला था। यहाँ तक की शासक पार्टियां भी बहुजन समाज पार्टी का समर्थन प्राप्त करने के लिए घुटने पर आ गई थीं।

ऐसा नहीं है कि बसपा की पैठ नहीं बनी है। 2014 तक आंध्र प्रदेश में 1 विधायक था और तेलंगाना में भी दो विधायक थे, लेकिन बहुजन समाज पार्टी का तेलंगाना राज्य में कोई स्थिर नेतृत्व नहीं था। इसके अलावा कई विभाजनकारी आंदोलन भी हुए और कई उप आंदोलन भी हुए। जैसे अनुसूचित जाति में वर्गीकरण का आंदोलन। बैकवर्ड कास्ट आंदोलन और जाति पहचान मूवमेंट और यह सारे आंदोलन केवल अपने समुदाय की जरूरत पूरा करने तक ही सीमित रह गए और अपने राजनीतिक ताकत का आंकलन नहीं कर सके। जैसा की मान्यवर कांशी राम चाहते थे। इन लोगों को राजनीतिक महत्वाकांक्षा के बारे में बताने में काफी देर हुई। सत्ता की आवश्यकता के बारे में भी बताने में भी देर हुई, जिसकी वजह से बसपा कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाई। इसीलिए हमने यह यात्रा शुरू की है ताकि यह बता सकें की बहन मायावती ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में प्रदेश में क्या-क्या किया है और यह बताना है कि मान्यवर कांशी राम ने बहुजनों से क्या उम्मीदें की थीं। हमें इस यात्रा में काफी समर्थन मिल रहा है। हमें निरंतर प्रयास करना है। हमें रुकना नहीं है। हमें रुकना नहीं चाहिए और लोगों को मान्यवर कांशीरामजी के कार्यों और संदेश से लोगों को प्रभावित करना चाहिए।

प्रश्नः बसपा उत्तर प्रदेश का गत विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन काफी खराब था। क्या इससे दूसरे राज्यों या खासकर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर फर्क पड़ा है?

जवाब- अन्य किसी राज्य की बात तो नहीं कर सकता पर तेलंगाना में किसी भी प्रकार से पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर इसका असर नहीं पड़ा है। हम राजनीति को एक व्यापक नजर से देखते हैं। राजनीति में हार-जीत चलती रहती है। उतार-चढ़ाव होते हैं। सूर्योदय के बाद सूर्यास्त होता है और सूर्यास्त के बाद फिर सूर्योदय होता है तो हमें निराश नहीं होना चाहिए।

बहुजन समाज पार्टी केवल पार्टी नहीं है यह एक सामाजिक बदलाव का मिशन भी है। इसकी प्रासंगिकता तब तक रहेगी जब तक समाज में अन्याय है। भेदभाव है और कमजोर वर्गों का दमन है। चुनाव तो हमारे विस्तृत मिशन का एक हिस्सा है। हमारे मनोबल पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है और हम पहले से ज्यादा मजबूती से काम कर रहे हैं ताकि मान्यवर कांशीराम के सपनों को सच कर सकें।

प्रश्नः क्या आप तेलंगाना और इसके पूर्वज राज्य आंध्र प्रदेश में दलित आंदोलन पर प्रकाश डाल सकते हैं?

जवाबः राज्य में दलित आंदोलन काफी बदलावकारी रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सारे आंदोलन विभाजनकारी रहे हैं। उन्होंने दलित नरसंहार के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। उन्होंने रोजगार की लड़ाई लड़ी है। उन्होंने अनुसूचित जाति /जनजाति अधिनियम में बदलाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। शासक वर्ग के बलात्कार, हत्या के खिलाफ लड़ाई लड़ी है तो वह काफी सफल रहे हैं। जैसा मैंने शुरू में बताया उग्रता को वाम आंदोलन ने हाईजैक कर लिया है। वाम आंदोलन ने काफी निराश किया है। केवल दलितों को नहीं बल्कि अन्य वंचित वर्गों को भी और उन्होंने कम्युनिस्ट ने चुनाव बाद शासक वर्ग से हाथ मिला लिया है।

उन्होंने आरोप लगाया कि कम्युनिस्ट काफी हद्द तक दलित आंदोलनों में दरार लाने में सफल रहे हैं। इसी कारण से दलित जातियां और उप जातियों ने एक दूसरे से लड़ना शुरू कर दिया और यहाँ तक की एक दूसरे से नजरें भी नहीं मिलाते थे। लेकिन कुछ समय बाद वह नफरत कम हुई है और दलित जातियों ने हाथ मिला लिया। उन्हें यह एहसास है की नुक्सान हो गया है। एक दूसरे से लड़ने में उन्होंने काफी समय व्यर्थ गंवाया है।

बहुजन समाज पार्टी ने दलितों सहित अन्य पिछड़ी जातियों के पर हुए अन्याय के खिलाफ मूवमेंट शुरू किए हैं जैसे उनकी आबादी राज्य में 52 प्रतिशत है, लेकिन आरक्षण केवल 27 प्रतिशत है और हम अनुसूचित जाति और जनजाति और धार्मिक अल्पसंख्यक के लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी इसमें अग्रणी है और हमें यह आपके साथ साझा करने में बहुत हर्ष हो रहा है।

प्रश्नः आप राज्य शासित पार्टियों द्वारा हाल में ही दलितों को लुभाने के प्रयासों को किस प्रकार देखते हैं?

जवाब: यह महज दिखावा है। तेलंगाना के लोगों ने मूर्ति की मांग नहीं की है बल्कि उन्होंने छात्रवृत्ति की मांग की है और ज्यादा से ज्यादा स्कूल की मांग की है। लोगों ने विदेश में पढ़ने के लिए स्कालरशिप की मांग की है और अपने पैरों पर खड़े होने के लिए ऋण की मांग की है। पर यह सब करने की जगह सरकार मूर्ति खड़ा कर रही है। 150 करोड़ से मूर्ति बनाई है। इतने पैसे से हम 10 से 15 स्कूल खोल सकते हैं। जहाँ हजारों आंबेडकर हजारों ज्योतिबा फूले और हजारों कांशीराम और हजारों बहनजी पैदा कर सकते हैं, लेकिन शासक वर्ग यह नहीं चाहता। वह केवल मूर्ति खड़ा करना चाहता है। वह दलितों की मूलभूत सुविधा को नजरअंदाज करना चाहता है।

दलितों को घरों की जरूरत है। कॉलोनी में अच्छी सड़कों, मुफ्त शिक्षा की जरूरत है। न केवल तेलंगाना में बल्कि पूरे भारत में हम दलितों के साथ हैं। हमें शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं व आवास चाहिए। विदेशों में शिक्षा चाहिए। मूर्ति से दलितों का जीवन नहीं बदलने वाला।

प्रश्नः आप यात्रा के जरिए लोगों को क्या सन्देश देना चाह रहे हैं?

जवाब: हम लोगों को यह बता रहे हैं कि कांग्रेस, भाजपा और तेलंगाना राष्ट्रीय समिति और कम्युनिस्ट्स ने हमें छला है। मात्रा एक वोट बैंक समझा है। वह चुनाव के समय लालच देते है। वोट लेकर सत्ता में आते है। अपने लिए अकूत संपत्ति अर्जित करते हैं। बड़े आराम से रहते हैं और हमें खुद पे छोड़ देते हैं। अब वक्त आ गया है कि हम अपनी राजनीतिक शक्ति पहचाने और वोट की ताकत पहचाने, जिसका अधिकार हमें बाबा साहब भीम राव आंबेडकर ने दिया है। हम अपनी पार्टी यानी बहुजन समाज पार्टी के लिए वोट करें क्योंकि यह पार्टी संविधान बचने के लिए प्रतिबद्ध है।

R. S. Praveen Kumar
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