आंबेडकर जयंती विशेष: बाबा साहब व महात्मा गांधी के बीच क्यों थी असहमति ?

महात्मा गांधी और बाबासाहेब अंबेडकर दोनों ने समाज सुधार के लिए अथक प्रयास किए। लेकिन कई मुद्दों पर इनके विचार काफी अलग थे। सबसे बड़ा मतभेद यह था कि गांधीजी जाति व्यवस्था से छुआछूत मिटाना चाहते थे, जबकि अंबेडकर पूरी जाति व्यवस्था को खत्म करना चाहते थे।
आंबेडकर जयंती विशेष: बाबा साहब व महात्मा गांधी के बीच क्यों थी असहमति ?

नई दिल्ली। 14 अप्रैल बहुत बड़ा दिन माना जाता है। क्योंकि आज बाबा साहब की जयंती है। मध्य प्रदेश के महू में 14 अप्रैल 1891 को जन्मे बाबासाहेब आंबेडकर ने सामाजिक बराबरी और समानता के लिए जो काम किया, उसे आज तक कोई दोहरा न सका। उनके विचार आज करोड़ों भारतीयों के आदर्श हैं।14 अप्रैल को भीम जयंती, अंबेडकर स्मृति दिवस, समानता दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

बाबा साहब के कार्य को भारतीय राजनीतिक इतिहास की सबसे बड़ी देन कहा जा सकता है। उन्होंने देश को संविधान दिया। उनको भारत का संविधान निर्माता कहा जाता है। वे संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन थे। जिसने संविधान का पूरा खाका बनाया। डायबिटीज और ब्लड प्रेशर से पीड़ित होने के बाद भी अंबेडकर ने संविधान तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वे अपने जमाने के सबसे पढ़े लिखे व्यक्तियों में से एक थे।

उनका विशाल ज्ञान संविधान निर्माण में काम आया। आज इसी संविधान से पूरे देश की व्यवस्था चल रही है। डॉ. अंबेडकर एक महान राजनीतिक नेता, दार्शनिक, लेखक, अर्थशास्त्री, न्यायविद्, बहु-भाषाविद्, धर्म दर्शन के विद्वान और एक समाज सुधारक थे, जिन्होंने भारत में अस्पृश्यता और सामाजिक असमानता के उन्मूलन के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया। अंबेडकर का असल नाम अंबावाडेकर था। यही नाम उनके पिता ने स्कूल में दर्ज भी कराया था। लेकिन कथित तौर पर उनके एक अध्यापक ने उनका नाम बदलकर अपना सरनेम 'अंबेडकर' उन्हें दे दिया। इस तरह स्कूल रिकॉर्ड में उनका नाम अंबेडकर दर्ज हुआ।

जिस बच्चे को कक्षा में जाने से रोका, वह बना देश का पहला कानून मंत्री

जात‍िगत भेदभाव से जूझने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर के लिए शुरुआती दौर की पढ़ाई आसान नहीं रही। स्‍कूल में एडमिशन के बाद इन्‍हें कक्षा में बैठने से कई बार रोका गया, वजह थी इनका निचली जाति से ताल्‍लुक रखना। यह भेदभाव स्‍कूल में सिर्फ पढ़ने-लिखने तक ही सीमित नहीं था। इन्‍हें सार्वजनिक मटके से पानी पीने के लिए भी रोका गया। इस भेदभाव के कारण समाज में इन्‍हें हर उस चीज के करीब जाने से रोकने की कोशिश की गई जो उन्‍हें पसंद थी। जैसे- मंदिर जाना, किताबें पढ़ना. ऐसी कई बातें उनके जेहन में घर कर गईं और यही से ऊंच-नीच का फर्क मिटाने के संघर्ष की नींव पड़ी। तमाम संघर्ष के पड़ाव को पार करने के बाद वही बच्‍चा देश का पहला कानून मंत्री बना।

गांधी जी से क्यों नहीं बनती थी, क्यों नहीं मानते थे उन्हें महात्मा

महात्मा गांधी और बाबासाहेब अंबेडकर दोनों ने समाज सुधार के लिए अथक प्रयास किए। लेकिन कई मुद्दों पर इनके विचार काफी अलग थे। सबसे बड़ा मतभेद यह था कि गांधीजी जाति व्यवस्था से छुआछूत मिटाना चाहते थे, जबकि अंबेडकर पूरी जाति व्यवस्था को खत्म करना चाहते थे। गांधी जी वर्ण-व्यवस्था के समर्थक थे। हालांकि दोनों ही दलितों की स्थिति सुधारने के पक्षधर थे।

बीबीसी को दिए इंटरव्यू में एक उन्होंने कहा था कि गांधी कभी महात्मा नहीं थे। मैं उन्हें महात्मा कहने से इनकार करता हूं। मैंने अपनी जिंदगी में उन्हें कभी महात्मा नहीं कहा। इसके अलावा महात्मा गांधी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की वकालत करते थे। वे पूर्ण विकास के लिए गांव का रुख करने के लिए कहते थे। जबकि अंबेडकर लोगों से गांव छोड़कर शहरों का रुख करने की अपील करते थे। उनका मानना था कि दलितों को बेहतर शिक्षा, तरक्की के लिए शहरों में आना चाहिए।

गांधी और अंबेडकर के बीच समानताएं

दोनों की कुछ गतिविधियों में शामिल प्रतीकवाद में उल्लेखनीय समानता है। गांधी द्वारा विदेशी वस्त्र जलाने और अम्बेडकर द्वारा मनुस्मृति जलाने को भावुकतापूर्ण कार्यों के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इसके बजाय मनुस्मृति और विदेशी वस्त्र भारत की गुलामी और कारावास के प्रतीक थे। गांधी और अम्बेडकर, दोनों नेता व्यक्ति की परिवर्तन, एकीकरण और सुधार की इच्छा को पूरा करने के लिए शिक्षा के विचार में विश्वास करते थे। दोनों ने धर्म की स्वतंत्रता, स्वतंत्र नागरिकता आदि में विश्वास करते थे। दोनों धर्म को सामाजिक सुधार और परिवर्तन के एजेंट के रूप में मानते थे।

अंबेडकर और गांधी दोनों राज्य की सीमित संप्रभु शक्ति और सरकार के सीमित अधिकार में विश्वास करते थे। उनका मानना था कि लोगों को ही सर्वोच्च संप्रभु होना चाहिए। वास्तव में गांधी जी का मानना था कि सबसे कम शासन ही सर्वोत्तम शासन होता है। गांधी और अंबेडकर दोनों अहिंसा में विश्वास करते थे लेकिन अंबेडकर के लिए अहिंसा का प्रयोग गांधी की अहिंसा की अवधारणा से अलग है। गांधी के लिए हर स्थिति में अहिंसक बने रहना है, लेकिन अंबेडकर आवश्यक होने पर सापेक्ष हिंसा में विश्वास करते थे।

वे कभी भी किसी भी प्रकार के हिंसक तख्तापलट में विश्वास नहीं करते थे। गांधी और अंबेडकर दोनों शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीकों से सामाजिक परिवर्तन के विचार में विश्वास करते थे। ये दोनों दमित/दलित वर्गों के शांतिपूर्ण पुनर्वास के माध्यम से समाज में व्याप्त विघटन एवं असामंजस्य की समस्या का समाधान करना चाहते थे।

कुछ बातें बाबा साहब के जीवन के बारे में

बीआर अंबेडकर अपने जमाने के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे महान विद्वान लोगों में से एक थे। उनके पास अलग-अलग 32 विषयों की डिग्रियां थीं। एलफिंस्टन कॉलेज मुंबई से बीए करने के बाद वह एमए करने अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी चले गए। वहीं से पीएचडी भी की। इसके बाद लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एमएससी, डीएससी किया। ग्रेज इन (बैरिस्टर-एट-लॉ) किया। एलफिंस्टन कॉलेज में वह अकेले दलित छात्र थे।

डॉ. अंबेडकर को खूब किताबे पढ़ने का शौक था। उनके पास किताबों का विशाल व बेहतरीन संग्रह था। जॉन गुंथेर ने इनसाइड एशिया में लिखा है कि 1938 में अंबेडकर के पास 8000 किताबे थीं। उनकी मृत्यु के समय वो 35000 हो गई थीं। बाबासाहेब अंबेडकर को बागबानी का भी शौक था। उनके बगीचे की काफी तारीफ होती थी। उन्हें अपने कुत्ते से भी बेहद प्यार था। वह कई बार खुद खाना बनाकर अपने दोस्तों को खाने पर बुलाते थे।

अंबेडकर के पूर्वज ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में सैनिक थे। पिता ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सूबेदार थे। इस वजह से भी अंबेडकर को स्कूल में पढ़ने का मौका मिला। उस समय एक दलित और अछूत मानी जाने वाली जाति के बच्चे के लिए स्कूल जाकर पढ़ना संभव नहीं था। अंबेडकर को स्कूल में अन्य बच्चों जितने अधिकार नहीं थे। उन्हें अलग बैठाया जाता था। वह खुद पानी भी नहीं पी सकते थे। ऊंची जाति के बच्चे ऊंचाई से उनके हाथों पर पानी डालते थे। अंबेडकर कबीरदास, ज्योतिबा फुले, महात्मा बौद्ध के विचारों से काफी प्रेरित थे। बाल विवाह प्रचलित होने के कारण 1906 में अंबेडकर की शादी 9 साल की लड़की रमाबाई से हुई। उस समय अंबेडकर की उम्र महज 15 साल थी। 

डॉ. अंबेडकर के लिए अमेरिका में पढ़ाई करना बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय से मासिक स्कॉलरशिप मिलने के कारण संभव हो सका था। बाबासाहेब अंबेडकर की कानूनी विशेषज्ञता भारतीय संविधान के निर्माण में बहुत मददगार साबित हुआ। उन्हें संविधान निर्माता व संविधान का जनक कहा जाता है। उन्होंने संविधान बनाने से पहले कई देशों के संविधानों का अध्ययन किया था। काबिलियत के दम पर वह भारत के पहले कानून मंत्री के पद तक पहुंचे। 

अंबेडकर दलितों पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए 'बहिष्कृत भारत', 'मूक नायक', 'जनता' नाम के पाक्षिक और साप्ताहिक पत्र निकालने शुरू किये। 1927 से उन्होंने छुआछूत जातिवाद के खिलाफ अपना आंदोलन तेज कर दिया। महाराष्ट्र में रायगढ़ के महाड में उन्होंने सत्याग्रह भी शुरू किया। उन्होंने कुछ लोगों के साथ मिलकर ‘मनुस्मृति’ की तत्कालीन प्रति जलाई थी। 1930 में उन्होंने कलारम मंदिर आंदोलन शुरू किया। 

आजादी की लड़ाई के बीच आंबेडकर ने 1936 में लेबर पार्टी का गठन किया। अंबेडकर ने 1952 में बॉम्बे नॉर्थ सीट से देश का पहला आम चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे। वह राज्यसभा से दो बार सांसद रहे।

हिंदू कोड बिल पास न होने पर दे दिया था इस्तीफा

सन् 1951 में उन्होने 'हिंदू कोड बिल' संसद में पेश किया। डॉ. आंबेडकर का मानना था कि सही मायने में प्रजातंत्र तब आएगा जब महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उन्हें पुरुषों के समान अधिकार दिए जाएंगे। संसद में अपने हिन्दू कोड बिल मसौदे को रोके जाने के बाद अंबेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। 

संघर्ष की यात्रा के दौरान बाबासाहेब कई बीमारियों से जूझते रहे थे। वो डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, न्यूराइटिस और आर्थराइटिस जैसी लाइलाज बीमारियों से पीड़ित थे। डाइबिटीज के चलते उनका शरीर बेहद कमजोर हो गया था। गठिया की बीमारी के चलते वो कई कई रातों तक बिस्तर पर दर्द से परेशान रहते थे।14 अक्टूबर 1956 को अंबेडकर और उनके समर्थकों ने पंचशील को अपनाते हुए बौद्ध धर्म ग्रहण किया। वह हिंदू धर्म के कई तौर तरीकों से काफी दुखी हो गए थे। 6 दिसंबर, 1956 को अंबेडकर की मृत्यु हो गई। जब संविधान लागू हुओ तो बाबा साहब ने उसी दिन कहा था कि हम सबसे अच्छा संविधान लिख सकते हैं, लेकिन उसकी कामयाबी आखिरकार उन लोगों पर निर्भर करेगी, जो देश को चलाएंगे।

शांतिवन में उनके निजी उपयोग की वस्तुएं

नागपुर जिले के चिचोली गांव में डॉ आंबेडकर वस्तु संग्रहालय 'शांतिवन' में उनके निजी उपयोग की वस्तुएं रखी हैं। संग्रहालय के केंद्रीय कक्ष में उनकी अस्थियां रखी हुई हैं।

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