
भोपाल। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गत शुक्रवार को भोपाल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन में शामिल हुईं। उन्होंने सम्मेलन का औपचारिक आगाज किया। राष्ट्रपति ने इस मौके पर कहा कि राष्ट्रपति भवन हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है। इसके सबसे प्रमुख कक्ष में भगवान बुद्ध की लगभग 1500 साल पहले की एक प्रतिमा शोभायमान है जो अभय मुद्रा में सभी को आशीर्वाद देती है। भगवान बुद्ध से जुड़ी अनेक कलाकृतियां भी हैं।
राजधानी भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में हो रहे 7वें अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन में 15 देशों के 350 से ज्यादा विद्वान और 5 देशों के संस्कृति मंत्री शामिल हुए। नए युग में मानववाद के सिद्धांत पर केंद्रित सम्मेलन 5 मार्च तक चलेगा। पहले दिन सम्मेलन में संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर और सांची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. नीरजा गुप्ता भी शामिल हुईं। धर्म-धम्म के वैश्विक विचारों को मंच प्रदान करने वाले सम्मेलन में भूटान, मंगोलिया, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाइलैंड, वियतनाम, नेपाल, दक्षिण कोरिया, मॉरिशस, रूस, स्पेन, फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन की सहभागिता है।
कार्यक्रम में राष्ट्रपति ने कहा कि महर्षि पतंजलि, गुरु नानक, भगवान बुद्ध ने दुख से निकलने के मार्ग सुझाए हैं। मानवता के दुख के कारण का बोध करना और इस दुख को दूर करने का मार्ग दिखाना पूर्व के मानववाद की विशेषता है। ये आज के युग में और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग की पद्धति स्थापित की। भगवान बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग प्रदर्शित किया। गुरु नानक देव जी ने नाम सिमरन का रास्ता सुझाया, जिसके लिए कहा जाता है. नानक नाम जहाज है, चढ़े सो उतरे पार।
कभी.कभी कहा जाता है कि धर्म का जहाज हिलता-डुलता है, लेकिन डूबता नहीं है। धर्म-धम्म की अवधारणा भारत चेतना का मूल स्तर रही है। हमारी परंपरा में कहा गया है. धारयति. इति धर्मः अर्थात जो सब को धारण करे, वही धर्म है। धर्म की आधारशिला मानवता पर टिकी है। राग और द्वेष से मुक्त होकर, अहिंसा की भावना से व्यक्ति और समाज निर्माण करना पूर्व के मानववाद का प्रमुख संदेश रहा है। नैतिकता पर आधारित व्यक्तिगत आचरण और समाज पूर्व के मानववाद का व्यवहारिक रूप है।
हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में धर्म-धम्म का गहरा प्रभाव
हमारी परंपरा में कहा जाता है कि जिस समाज में धर्म की रक्षा की जाती है वो समाज भी धर्म को प्राप्त करता है। मुझे यह देखकर गर्व होता है कि हमारे देश की परंपरा में धर्म को समाज व्यवस्था और राजनीतिक कार्यकलापों में प्राचीनकाल से ही केंद्रस्थ स्थान प्राप्त है। आज से 2000 साल पहले हमारे देश में धर्म महात्मा के बोध को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता था। स्वाधीनता के बाद हमने जो लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई उस पर धर्म-धम्म का गहरा प्रभाव है। हमारे राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न को सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज में धर्म चक्र सुशोभित है। लोकसभा के अध्यक्ष की कुर्सी के पीछे धर्म चक्र प्रवर्तनाय का प्राचीन देव वाक्य अंकित है। ये सारनाथ में दिए गए भगवान बुद्ध के प्रथम प्रवचन की याद दिलाता है। हमारे लोकतंत्र को उस महान शिक्षा से जोड़ता है।
राष्ट्रपति भवन हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है। इसके सबसे प्रमुख कक्ष में भगवान बुद्ध की लगभग 1500 साल पहले की एक प्रतिमा शोभायमान है जो अभय मुद्रा में सभी को आशीर्वाद देती है। भगवान बुद्ध से जुड़ी अनेक कलाकृतियां भी हैं।
महात्मा गांधी ने बुद्ध के संदेश को प्रसारित किया
राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने कहा कि गया में पीपल के जिस वृक्ष के नीचे समाधिस्थ होकर सिद्धार्थ गौतम भगवान बुद्ध बने थे। उसके दो पौधे मंगवाकर राष्ट्रपति भवन में लगाए गए हैं। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ये पौधे लगाए। राष्ट्रपति भवन के स्टेट कॉरिडोर में धर्म-धम्म का कलात्मक रूप देखा जा सकता है। राष्ट्रपति भवन हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है। इसके सबसे प्रमुख कक्ष में भगवान बुद्ध की लगभग 1500 साल पहले की एक प्रतिमा शोभायमान है जो अभय मुद्रा में सभी को आशीर्वाद देती है। भगवान बुद्ध से जुड़ी अनेक कलाकृतियां भी हैं। उन्होंने कहा महात्मा गांधी ने आदर्श राज्य की अवधारणा को रामराज्य का नाम दिया था। वे भगवान बुद्ध के अहिंसा तथा करुणा के संदेश को अपने जीवन मूल्यों और कार्यों के द्वारा प्रसारित करते थे। उनकी प्रार्थना का आरंभ बोद्ध मंत्र से होता था। गीता और अन्य उपनिषद के श्लोक भी पढ़ते थे।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें व्हाट्सअप पर प्राप्त करने के लिए आप हमारे व्हाट्सअप ग्रुप से भी जुड़ सकते हैं। व्हाट्सअप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें.