भोपाल। मध्य प्रदेश में एससी/एसटी समुदाय के उप-वर्गीकरण (सब-कैटेगरी) के मुद्दे को लेकर विरोध की चिंगारी भड़क उठी है। इस मसले पर भारत बंद किए जाने की तारीख 21 अगस्त तय की गई है। एससी-एसटी सगठनों के पदाधिकारियों के मुताबिक देशभर में बंद का असर महसूस किया जाएगा। मध्य प्रदेश में भी बंद को लेकर सभी संगठन एक हो चुके हैं।
SC-ST के उप-वर्गीकरण को अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चर्चा करने के लिए मध्य प्रदेश के समस्त आदिवासी/दलित संगठनों के अध्यक्ष प्रतिनिधियों ने बीते 11 अगस्त को राजधानी भोपाल में एक संयुक्त बैठक आयोजित की थी।
बैठक में शामिल 32 अनुसूचित जाति और जनजाति सामाजिक संगठनों ने एक स्वर में सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी उप-वर्गीकरण के फैसले से असहमति जाहिर की थी। बैठक में 21 अगस्त को भारत बंद आह्वान में सभी संगठनों ने शामिल होने का फैसला लिया था।
अनुसूचित जाति, एवं जनजाति संगठन प्रतिनिधियों की संयुक्त बैठक में आगामी 21 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में मध्यप्रदेश बन्द का आह्वान किया गया था। द मूकनायक से बातचीत करते हुए बैठक के संयोजक सुरेश नंदमेहर ने बताया कि दोनों ही वर्ग के लोग कोर्ट के फैसले से आहात हुए हैं। समाज में आक्रोश पैदा हुआ है। हमने मिलकर बैठक में प्रस्ताव पारित किया है, की हम 21 अगस्त को भारत बंद का समर्थन करते हुए, मध्यप्रदेश में भी इसे सफल बनाकर केंद्र सरकार तक अपनी बात पहुचायेंगे। ताकि सरकार इस फैसले को पलट दे।
सुरेश नंदमेहर आगे कहते है, "बाबा साहब के संविधान में छेड़छाड़ हम कभी बर्दाश्त नहीं कर सकते उन्होंने पिछड़े वंचित शोषित समाज को एकाग्रता के साथ राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक प्रतिनिधित्व देने पर जोर दिया लेकिन, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला क्रमिलियर ढूंढ रहा है। यहाँ आज भी दोनों ही वर्ग के लोगों को समुचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है। चाहें वह राजनीति की बात ही या फिर शासकीय नौकरियों में भर्ती हो।"
सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी उप-वर्गीकरण के फैसले के खिलाफ भारत बंद के समर्थन में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी पूरी ताकत झोंक दी है। बसपा प्रमुख मायावती ने अपने कार्यकर्ताओं, प्रदेश अध्यक्षों और पदाधिकारियों को इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने का निर्देश दिया है।
मध्य प्रदेश बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रामकांत पिप्पल ने द मूकनायक से बातचीत में कहा, "हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असहमत हैं और 21 अगस्त को प्रदेशभर में सड़कों पर उतरकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करेंगे। हम बाबा साहब और संविधान के अनुयायी हैं और सभी कलेक्टरों को ज्ञापन सौंपकर अपनी आवाज़ बुलंद करेंगे।" बसपा का यह समर्थन भारत बंद की सफलता में अहम भूमिका निभा सकता है।
उप-वर्गीकरण के फैसले के विरोध में भीम आर्मी और आजाद समाज पार्टी (आसपा) के कार्यकर्ता भी भारत बंद के समर्थन में सड़कों पर उतरेंगे। भीम आर्मी मध्यप्रदेश के नेता विनोद अंबेडकर ने बताया, "हम सुप्रीम कोर्ट के इस असंवैधानिक फैसले से सहमत नहीं हैं। 21 अगस्त को हम पूरी ताकत के साथ शांतिपूर्ण ढंग से विरोध दर्ज कराएंगे और अपनी बात रखेंगे।"
हालांकि, ग्रामीण इलाकों में बंद का असर सीमित हो सकता है, क्योंकि वहां लोग दैनिक जीवन की आवश्यकताओं को देखते हुए बंद में हिस्सा लेने से बच सकते हैं। इसके अलावा, राज्य सरकार ने कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस बल को अलर्ट पर रखा है, जिससे बंद के दौरान शांति बनाए रखने का प्रयास किया जाएगा।
इस बंद के बाद भी आंदोलन जारी रहने की संभावना है। यदि सरकार उप-वर्गीकरण पर निर्णय लेने में जल्दबाजी करती है, तो विरोध और तेज हो सकता है। कई संगठनों ने यह साफ कर दिया है कि वे अपनी मांगों को लेकर पीछे नहीं हटेंगे। वहीं, दूसरी ओर, सरकार इस मुद्दे पर जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लेना चाहती, क्योंकि यह मामला राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील है।
सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी उप-वर्गीकरण के फैसले के विरोध में मध्यप्रदेश के 32 अनुसूचित जाति और जनजाति संगठनों के प्रतिनिधि एकजुट होकर प्रदर्शन करेंगे। 11 अगस्त को हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में इन संगठनों ने 21 अगस्त को मध्यप्रदेश बंद का आह्वान किया। बैठक में शामिल संगठनों में प्रमुख रूप से मध्यप्रदेश अनुसूचित जाति/जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ, राष्ट्रीय रविदास फाउंडेशन, रविदासियां धर्म संगठन, जयस संगठन, अनुसूचित जाति जनजाति परिसंघ, अहिरवार समाज संघ भारत, भीम आर्मी, वाल्मीकि समाज संघ और अखिल भारतीय कोरी/कोली समाज संगठन जैसे संगठन शामिल थे।
इन संगठनों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संविधान की मूल भावना के खिलाफ है और इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। बैठक के आयोजकों ने बताया कि इन संगठनों का विरोध शांतिपूर्ण होगा, लेकिन इसके माध्यम से सरकार तक एक मजबूत संदेश पहुंचाया जाएगा।
SC/ST श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण (कोटे के अंदर कोटा) की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया है। कोर्ट ने राज्यों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में उप-वर्गीकरण की अनुमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ ने यह फैसला सुनाया है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संविधान पीठ ने तय किया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए उप-वर्गीकरण किया जा सकता है।
सात जजों की संविधान पीठ में CJI डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस बी आर गवई, विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं। CJI ने कहा कि 6 राय एकमत हैं, जबकि जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने असहमति जताई है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में साक्ष्यों का हवाला दिया उन्होंने कहा कि अनुसूचित जातियां एक सजातीय वर्ग नहीं हैं, उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत निहित समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता है। साथ ही उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 341(2) का उल्लंघन नहीं करता है, अनुच्छेद 15 और 16 में ऐसा कुछ भी नहीं है जो राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से रोकता हो।
कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जातियां एक समरूप समूह नहीं हैं और सरकार पीड़ित लोगों को 15% आरक्षण में अधिक महत्व देने के लिए उन्हें उप-वर्गीकृत कर सकती है। अनुसूचित जाति के बीच अधिक भेदभाव है, SC ने चिन्नैया मामले में 2004 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें अनुसूचित जाति के उप-वर्गीकरण के खिलाफ फैसला सुनाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एससी के बीच जातियों का उप-वर्गीकरण उनके भेदभाव की डिग्री के आधार पर किया जाना चाहिए। राज्यों द्वारा सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में उनके प्रतिनिधित्व के अनुभवजन्य डेटा के संग्रह के माध्यम से किया जा सकता है। यह सरकारों की इच्छा पर आधारित नहीं हो सकता।
दरअसल, पंजाब सरकार ने अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों में से 50 फीसद ‘वाल्मिकी’ एवं ‘मजहबी सिख’ को देने का प्रावधान किया था। 2004 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी।
इस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार व अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। 2020 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि वंचित तक लाभ पहुंचाने के लिए यह जरूरी है। मामला दो पीठों के अलग-अलग फैसलों के बाद 7 जजों की पीठ को भेजा गया था।
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